डर की नमाज का बयान

अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ नज्द की तरफ जिहाद के लिए गया, जब हम दुश्मन के सामने खड़े हुये तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमें नमाज पढ़ाने के लिए खड़े हुये। एक गिरोह आपके साथ खड़ा हुआ और दूसरा गिरोह दुश्मन के मुकाबले में डटा रहा। फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने हमराही गिरोह के साथ एक रुकू और दो सज्दे किये। उसके बाद यह लोग उस गिरोह की जगह चले गये, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी थी। जब वह आये तो आपने उनके साथ भी एक रुकू और दो सज्दे अदा किये और सलाम फेर दिया। फिर उनमें से हर आदमी खड़ा हुआ और अपने अपने पूरे किये, एक एक रुकू और दो सज्दे।

फायदे : अलग अलग हदीसों से पता चलता है कि डर की नमाज़ को अदा करने के सत्रह तरीके हैं। लेकिन इमाम इब्ने कय्यिम ने तमाम हदीसों का जाइज़ा लेने के बाद लिखा है कि बुनियादी तौर पर इसकी अदायगी के छः तरीके हैं। हालात और जरूरत के मुताबिक जो तरीका ठीक हो, उसे इख्तियार कर लिया जाये, जम्हूर उलमा ने इसकी मशरूइयत पर इत्तिफाक किया है। (औनुलबारी, 2/61)

पैदल और सवार होकर खौफ की नमाज़ अदा करना।

525: अब्दुल्ला बिन उमर रज़ियल्लाह ‘अन्हु ही की एक रिवायत में इस कदर इजाफा है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अगर दुश्मन इससे ज्यादा हों तो पैदल और सवार जिस तरह भी मुमकिन हों, नमाज़ पढ़ें।
फायदे : लड़ाई की तेजी के वक्त एक रकअत भी अदा की जा सकती है, बल्कि इशारों से अदा करना भी जाइज़ है। (औनुलबारी, 2/25)

पीछा करने वाले और पीछा किये गये का सवारी पर इशारे से नमाज़ पढ़ना।

526: अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब अहज़ाब की जंग से वापस हुये तो हमसे फरमाया कि हर आदमी बनू कुरैजा के कबीले में पहुंचकर नमाज़ पढ़े। कुछ लोगों को असर का वक्त रास्ते में ही आ गया तो उन्होंने कहा, जब तक हम वहां न पहुंचेगे, नमाज़ न पढ़ेंगे। लेकिन कुछ कहने लगे, हम अभी नमाज़ पढ़ते हैं। क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह मकसद नहीं था। फिर उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इस बात का बयान किया तो आपने किसी पर नाराजगी जाहिर न की।

फायदे : कुछ सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाह ‘अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान का यह मतलब लिया कि रास्ते में किसी जगह पर पड़ाव किये बगैर हम जल्दी पहुंचे, उन्होंने नमाज़ कजा न की और उसे सवारी पर ही अदा कर लिया, जबकि दूसरे सहाबा ने आपके फरमान को जाहिर पर माना कि अगर हुक्म के मानने में नमाज़ देर से भी अदा होती तो हम गुनहगार नहीं होंगे। चुनांचे दोनों गिरोहों की नियत ठीक थी। इसलिए कोई भी बुराई के लायक नहीं ठहरा। (औनुलबारी, 2/68)

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