हज़रत शीश अलैहिस्सलाम

इस्लामिक परंपरा में प्रथम पैगंबर के रूप में हजरत आदम अलैहिस्सलाम की प्रतिष्ठा है, जिसे सनातन परंपरा मनु के नाम से जानती है। इन्हीं हजरत आदम की औलादों में हजरत शीश अलैहिस्सलाम दिव्य गुणों से युक्त थे और उन्हें दूसरे पैगंबर का गौरव हासिल है।

जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम, हाबील के ग़म में चूर रहते थे, अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्रील को तसल्ली देने के लिए भेजा और कहलाया, अल्लाह तुझे एक बड़ा ही होनहार और लायक बेटा देगा। इसी बेटे की नस्ल से मुहम्मद रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पैदा होंगे जो आदम की पूरी औलाद के सरदार होंगे।

चुनांचे हाबील के मरने के पांच वर्ष बाद हज़रत शीश अलैहिस्सलाम पैदा हुए। पैगम्बर शीश अलैहिस्सलाम पैगम्बर आदम अलैहिस्सलाम के तीसरे बेटे थे । जब आदम अलैहिस्सलाम की उम्र 130 साल हुई तो हव्वा अलैहिस्सलाम के बदन से शीश अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई, उनकी पैदाइश हाबील के क़त्ल के 50 साल बाद हुई। वह खूबसूरती में और अच्छी आदतों में बाप से बिल्कुल मिलते-जुलते थे । इसीलिए हज़रत आदम अलैहिस्सलाम भी उन से बहुत मुहब्बत रखते थे।

शादी

जब आपकी उम्र 150 साल हुई तो आपकी शादी ह्ज़ूरता बिन्ते आदम से हुई। जिन से आपके यहाँ “अनूष और नाअमा” एक बेटा और बेटी पैदा हुए। इसके बाद आप 500 साल और ज़िंदा रहे और आपके यहाँ बहुत सी औलादें पैदा हुईं ।

हज़रत आदम ने मरने से पहले उनको अपना वली अहद (उत्तराधिकारी) बना लिया था और उन्हें वसीयत की थी कि जब हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के ज़माने में तूफान आये और तू उस ज़माने को पाये, तो मेरी हड्डियों को नाव में रख देना ताकि डूबने न पायें। अगर तू वह ज़माना न पाये तो अपनी औलाद को यही वसीयत कर देना। आदम अलैहिस्सलाम ने शीश अलैहिस्सलाम से कहा कि वे क़ाबील और उसके अनुयायियों से दूर रहें क्योंकि वे काफ़िर थे और मूर्ति पूजा में शामिल थे।

हज़रत शीश अलैहिस्सलाम, हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की जुबान से अक्सर जन्नत के हालात पूछा करते थे और हुक्मे इलाही और आसमानी किताबों का मज़मून भी मालूम किया करते थे।

जीवन

हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ही के ज़माने में उन्होंने दुनिया की लज्जतें छोड़ दी थीं और अलग-थलग अल्लाह की याद और उसकी इताअत में लगे रहते थे। नफ़्स को मारना और अख़्लाक़ को संवारना, यह दोनों बातें उनकी आंखों के सामने हमेशा रहती थीं।

शीश अलैहिस्सलाम की औलाद पहाड़ो पर और क़ाबील की औलाद मैदानी इलाक़ों में आबाद हो गई। हज़रत शीश अलैहिस्सलाम के ज़माने में आदमी की औलाद दो हिस्सों में बंट गयी थी। एक गिरोह था जो हज़रत शीश अलैहिस्सलाम के कहे पर चलता था, दूसरे थे जो काबील की औलाद की ताबेदारी में लगे हुए थे। इस तरह हज़रत शीश अलैहिस्सलाम की नसीहत मानकर कुछ तो सीधा रास्ता पा गये और कुछ उसी तरह नाफरमानी में लगे रहे।

हज़रत शीश अलैहिस्सलाम अपने वालिद के जानशीन बने। अल्लाह तआला ने आपको नुबूवत से सरफ़राज़ किया। आप पर 50 सहीफ़े नाज़िल किये गये।

मौत और औलादे

आपने अपने वालिद पर नाज़िल होने वाले सहीफ़ों को भी जमा किया और इसमें जो अहकाम दिये गये थे उनपर पूरा पूरा अमल भी किया। आप कई साल खाना-ए-काबा में रहे और लगातार हज और उमरे करते रहे। इसके अलावा आपने पत्थर और गारे से खाना-ए-काबा को तामीर भी किया। इस तरह आप अपने नुबूवत के फराइज़ अंजाम देते रहे।

जब आपकी वफ़ात का वक़्त क़रीब आया तो आपने अपने बेटे अनूष को तमाम मामलात सुपुर्द किये जानशीन बनाया और जब वह नौ सौ बारह बरस के हो गये तो रूह बदन मुबारक से निकल कर अर्श पर पहुँच गयी। मणिपर्वत के दक्षिण में हजरत शीश अलैहिस्सलाम की दरगाह है। मणिपर्वत से इस दरगाह की दूरी 100 मीटर से भी कम है।

आपको अपने वालिद के पास जबल-ए-अबी क़ैस ग़ार में दफन किया गया। उलमा-ए-किराम का कहना है कि तूफ़ान-ए-नूह के वक़्त नूह अलैहिस्सलाम ने दोनों के जिस्मे मुबारक को निकाल कर कश्ती में रख लिया था और फिर तूफ़ान ख़त्म होने के बाद बैतुल मुक़द्दस में दफन कर दिया था।

अनूष के यहाँ “क़यान पैदा हुए उनकी पैदाइश के वक़्त अनूष की उम्र 90 साल थी। इसके बाद अनूष 815 साल ज़िंदा रहे और अपनी औलाद को हक़ की तलक़ीन करते रहे। जब अनूष की वफ़ात का वक़्त क़रीब आया तो इन्होने सारे मामलात अपने बेटे क़यान को सौंपे और उनको अपना जानशीन बनाया। इसी तरह क़यान के बेटे “महलाईल” इनके जानशीन बने। क़यान की कुल उम्र 910 बरस हुई। महलाईल के बेटे “यरद”के यहाँ “ख़नूख़ यानि “इदरीस” अलैहिस्सलाम पैदा हुए।

हज़रत शीश अलैहिस्सलाम की कुछ नसीहतें

सच्चा मोमिन वह है जो –

  1. ख़ुदा को पहचानता हो ।
  2. भले-बुरे में फर्क करता हो ।
  3. वक्त के नेक बादशाह का हुक्म पूरा करता हो।
  4. मां-बाप का हक पहचानता हो और उनकी खिदमत करता हो।
  5. रिश्ते-नाते के ताअल्लुक को जोड़ता हो, अपनों से नेकी और मुहब्बत से पेश आता हो ।
  6. गुस्से में हद से ज़्यादा न बढ़ता हो ।
  7. मुहताजों और मिस्कीनों को सद्का देता हो, उन पर दया करता हो।
  8. गुनाहों से बचता हो, मुसीबतों में सब्र करता हो, और
  9. अल्लाह की नेमत पाकर उसका शुक्र अदा करता हो।

पैगम्बर शीश अलैहिस्सलाम के बाद पैगम्बर इदरीस अलैहिस्सलाम को मानव जाति के मार्गदर्शन के लिए भेजा गया।

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