आदाबे ईदैन

ईदैन, (दोनों ईदों) की नमाज़ वाजिब है। ईदैन के दिन ईदगाह जाने से पहले मिस्वाक करना, गुस्ल करना सुन्नत है। ईद के दिन ये काम मुस्तहब है।
  • हजामत (यानि दाढ़ी और बाल) बनवाना।
  • नाखून तरशवाना।
  • गुस्ल करना।
  • मिस्वाक करना।
  • अच्छे कपड़े पहनना नया हो तो नया वरना धुला हुआ।
  • अंगूठी पहनना।
  • ख़ुश्बू लगाना।
  • सुबह की नमाज़ मुहल्ले की मस्जिद में पढ़ना।
  • ईदगाह जल्द जाना।
  • नमाज़ से पहले सदक़ा-ए- फ़ित्र अदा करना (ईदुल फित्र में)।
  • ईदगाह को पैदल जाना।
  • दूसरे रास्ते से वापस आना।
  • ईदुल फ़ित्र के दिन नमाज़ को जाने से पहले कुछ खजूर खा लेना तीन, पाँच, सात या कम या ज़्यादा मगर ताक़ (Odd) हों, खजूरें न हों तो कोई मीठी चीज़ खा ले और ईदुल अज़्हा के दिन नमाज़ से वापस आकर खाना
  • रास्ते में ‘अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर लाइ ला-ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द’ पढ़ते जाना चाहिए। यह तक्बीर ईदुल फ़ित्र के दिन धीमी आवाज़ से और ईदुल अज़्हा के दिन उंची आवाज़ से पढ़नी चाहिए। ईदुल अज़्हा की नमाज़ अदा करके कुर्बानी के लिए जानवर ज़िबह किये जाते हैं।
याद रखिए कि ईदैन की नमाज़ से पहले और बाद में ईदगाह में नफ़ल नहीं पढ़े जाते, ईदुल फ़ित्र के दिन ईदगाह जाने से पहले मालदार के लिए सदक़ा-ए-फ़ित्र देना वाजिब है, फ़क़ीर पर वाजिब नहीं।
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ईद की नमाज़ का तरीका

अल्लाह तआला ने अपने अपने हबीब की उम्मत के लिये दो दिन मुकार्रर किये कि खुशियाँ मनायें। एक ईद तो रमज़ान के रोज़े पूरे होने के बाद मनाई जाती है जिसको ईदुल फ़ित्र कहते हैं और दूसरी ईद उस ज़िलहिज्जाह की दस तारीख़ को मनाई जाती है जिसे ईदुल अज़हा कहते हैं।

ईद की नमाज़ आबादी से बाहर खुले मैदान में जमाअत के साथ पूरी करनी चाहिए। बूढ़े, कमज़ोर अगर शहर की बड़ी मस्जिद में पढ़ लें, तो भी ठीक है।

लोगो को चाहिए की जब सफें ठीक हो जाएं और इमाम ‘अल्लाहु अक्बर’ कहे तो आप दोनों हाथ कानों तक उठा कर ‘अल्लाहु अक्बर’ कहकर हाथ बांध लीजिए, फिर सना पढ़िए।

इसके बार तीन बार ‘अल्लाहु अक्बर’ कहिए और हर बार दोनों हाथ तक्बीर तहरीमा की तरह कानों तक उठाइए, हर तक्बीर के बाद हाथ छोड़ दीजिए, मगर तीसरी तक्बीर के बाद हाथ फिर बांध लीजिए और इमाम अश्रूज़ और बिस्मिल्लाह पढ़ कर किरात शुरू करे और मुक़तदी ख़मोशी से इमाम की किरात सुनें और इमाम की पैरवी में रुकूअव सज्दे करें। रुकूअ व सुजूद के बाद खड़े होकर दुसरी रक्अत की क़िरात ख़ामोशी के साथ सुनिए। किरात पूरी करने के बाद जब इमाम तक्बीर कहे तो आप भी इमाम के साथ धीमी आवाज़ में तक्बीर कहते जाइए और तक्बीरों के दर्मियान दोनों हाथ खुले छोड़ दीजिए। तीसरी तक्बीर के बाद भी हाथ बांधने के बजाए खुले छोड़ दीजिए और चौथी तक्बीर पर रुकूअ में जाइए और क़ायदे के मुताबिक़ क़ौमा, सज्दा, जल्सा और क़ादा के बाद दोनों तरफ़ सलाम फेर कर नमाज़ ख़त्म कीजिए। ईदैन की नमाज़ के बाद ख़ुत्बा पढ़ना और सुनना सुन्नत है।

तकबीरे तशरीक़ यह है

takbeere tashreeq
  • अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर लाइलाहा इलल्लाहु
  • वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर वलिल्लाहिलहम्द

नमाज़ हो चुकी और कोई शख़्स रह गया तो अगर दूसरी जगह मिल जाए पढ़ ले वरना नहीं पढ़ सकता।

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