सजदा-ए-सहव

नमाज़ के फ़र्जो में से अगर कोई फ़र्ज़ छूट जाए तो नमाज़ दोबारा पढ़नी पड़ेगी। अगर कोई वाजिब भूले से रह जाए या फ़र्ज़ में देर या दोबारा हो जाए तो आखिर क़ादा में सजदा-ए-सहव करने से नमाज़ अदा हो जाएगी। अगर सजदा-ए-सहव करना भी याद न रहे, तो नमाज़ फिर पढ़नी होगी।

सजदा-ए-सहव की तर्कीब यह है कि नमाज़ की आखिरी रक्अत में अत्तहीयात पढ़ कर दाईं तरफ़ सलाम फेर कर दो सज्दे कर लीजिए। सज्दें करने के बाद अत्तहीयात, दरूद शरीफ़ और दुआ पढ़ने के बाद सलाम फेर लीजिए। अतहीयात के बाद दरूद शरीफ़ और दुआ पढ़ कर भी सजदा-ए-सहव किया जा सकता है।

नमाज़ के लिये जरूरी चीजें

• नमाज़ पढ़ने के लिए कपड़ों का पाक होना जरूरी है। कपड़े साफ़ हों और उसमे बदबू न आती हो।

नमाज़ पढ़ने की जगह पाक होनी चाहिए। ज़मीन पर कोई साफ़ कपड़ा बिछा लीजिए। सूखी ज़मीन पाक मानी जाती है। गंदगी के पास नमाज़ नहीं पढ़नी चाहिए।

• नमाज़ के लिए ठीक कपड़े पहनना भी जरूरी हैं। मर्द के लिए नाफ़(नाभि) से नीचे घुटने तक बदन का ढांकना जरूरी है। और औरत के लिए हाथ-पांव और मुंह के अलावा सारा शरीर ढांकना जरूरी है। 

• नमाज़ का समय भी नमाज़ पढ़ने के लिए जरूरी है, यानी जिस नमाज़ के लिए जो समय रखा गया है, उसी समय वह नमाज़ पढ़नी चाहिए, समय से पहले पढ़ने से नमाज़ नहीं होगी और दोबारा पढ़नी पड़ेगी। समय के बाद नमाज़ क़ज़ा हो जाती है, जिसका सवाब समय पर पढ़ी गयी नमाज़ के बराबर नहीं होता, और समय पर न पढ़ने का गुनाह भी होता है।

• नमाज़ पढ़ते समय क़िब्ले की तरफ़ मुंह करना भी जरुरी है, भारत से किबला पच्छिम की तरफ़ है। मुसलमानों का क़िबला (खाना काबा) ‘मक्का शहर’ में है और मक्का शहर ‘सऊदी अरब’ में है।

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