इस्लाम की बुनियाद

इस्लाम की बुनियाद

रोजाना पांच बार नमाज़ पढ़ना हर बालिग़ मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है, केवल उन्हें छोड़कर जो मासिक धर्म की तैयारी कर रहे हैं या – प्रसव के बाद 40 दिनों में रक्तस्राव का सामना कर रहे हैं। खुदा की परस्तिश करने के तरीकों में मुसलमानों के यहां नमाज़ सब से अहम तरीक़ा है। ज़कात, रोज़ा और हज सभी इस के बाद आते हैं।

इस्लाम की बुनियाद पाँच बातों पर है:

  1. कलिमा तय्यिबा यानी सच्चे दिल से और समझ से इसका पढ़ा जाना।
  2. नमाज़ यानी रोज़ाना पाक साफ़ होकर पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ना।
  3. रोज़ा यानी हर साल रमज़ान के महीने में पूरे महीने के रोजे रखना।
  4. हज यानी पाक कमाई से सारी उम में कम से कम एक बार मक्का -शरीफ़ में जाकर हज करना।
  5. ज़कात यानी अपनी कमाई में से हर साल चालीसवां हिस्सा निकाल कर गरीबों दुखियारों और मोहताजों को बांटना।

इस्लामी जानकारी

इस्लाम का अर्थ अरबी में ताअत और फ़रमाँबरदारी के हैं। इन्सान अल्लाह की ताअत व फ़रमाँबरदारी उस समय तक नहीं कर सकता जब तक उसे कुछ बातों का यकीन तक न हो। सबसे पहले इन्सान को अल्लाह पर पूरा यकीन होना चाहिए। इसी तरह उसकी मर्जी का पता होना, कि वह क्या पसन्द करता है और क्या पसन्द नहीं करता। ताअत के लिए ईमान का होना जरूरी है। जिसमें सबसे पहला है-तौहीद (अल्लाह पर ईमान)

(i) तौहीद (अल्लाह पर ईमान)

अल्लाह को एक मानना कि उसका कोई साझीदार नहीं। वह सारी दुनिया का मालिक है। वह अविनाशी है। वह ज़िन्दा है। सुनने वाला और देखने वाला है। न कोई उस की तरह है, न कोई उसके बराबर है। वह सम्पूर्ण ताकत का मालिक है। वह किसी भी काम के लिए किसी का भी मोहताज नहीं है । उसी ने सबको पैदा किया। उसी ने ज़मीन-आसमान, चाँद-सूरज, सितारे, जिन्न-इन्सान और सारे जानवर और वस्तुओं को पैदा किया। वही रोजगार देने वाला, जिलाने और मारने वाला है। वह न खाता है, न पीता है और न सोता है। वह किसी का मुहताज नहीं और सभी उसके मुहताज हैं। वही बीमारों को अच्छा और तकलीफ़ों को दूर करता है। वह निराकार है। इसलिये उसकी कोई मूर्ति या शक्ल नहीं है।
उसे किसी चीज़ की ज़रूरत नही है। वह सबकी ज़रूरतों को पूरा करने वाला है। उसके सिवा कोई अिबादत के लायक नहीं। अल्लाह माँ-बाप, बेटाबेटी से पाक है, उस का किसी से नाता-रिश्ता नहीं है। उस ने अपनी मखलूक के लिए पैग़म्बर भेजे ताकि वह लोगों को सच्चा रास्ता बताएँ।

(ii) रसूलों पर ईमान

हज़रत आदम (अलै०) से हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) तक तमाम रसूलों पर ईमान रखना, कि सभी अल्लाह के भेजे हुए पैगम्बर थे। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को अल्लाह का बन्दा और आखिरी पैगम्बर मानना तथा अल्लाह के बाद आप को तमाम मखलूक में सबसे अफ़ज़ल मानना। अल्लाह ने कुराने पाक आप पर उतारा, आप को अल्लाह ने शबे मेराज में आसमानों पर बुलाया और जन्नत व दोज़ख़ दिखाया, आप ख़ातिमुन्नबीईन हैं मतलब आप के बाद कोई नया पैगम्बर नहीं आयेगा। केवल हज़रत ईसा (अलै०) जो पुराने पैग़म्बर हैं आसमान से उतरेंगे और इस्लामी शरीअत की पैरवी करेंगे, आप सबके (इन्सानों-जिन्नातों) । पैगम्बर हैं। आप कयामत के दिन अल्लाह की हुक्म से गुनाहगारों की शफाअत करेंगे।

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(iii) आसमानी किताबों पर ईमान

अल्लाह ने जिस तरह हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) पर कुरान उतारा है उसी तरह आप से पहले जो पैगम्बर आये थे उनके पास भी अपनी किताबें भेजी थीं। ‘सुहुफे’ इब्राहीम को हज़रत इब्राहीम (अलै०) पर, ‘तौरात’ को हज़रत मूसा (अलै०) पर, ‘ज़बूर’ को हज़रत दाऊद (अलै०) पर और ‘इन्जील’ जो हज़रत ईसा (अलै०) पर उतारा था। इनके सिवा दूसरी किताबें जो रसूलों के पास आईं थीं उनके नाम हमको नहीं बताये गये थे इसलिए किसी और मज़हबी किताब के मुतअल्लिक हम यकीन के साथ न यह कह सकते हैं कि वह अल्लाह की तरफ़ से है और न यह कह सकते हैं कि वह अल्लाह की तरफ से नहीं है। कुरान के अलावा पूरी तरह मुकम्मल कोई भी किताब अपनी असली हालत में नहीं है।

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(iv) अल्लाह के फ़रिश्तों पर ईमान

फ़रिश्तों की केवल सिफ़ात बताई गई हैं और हकीकत नहीं बताई गई है। उन पर यकीन रखने का हमें हुक्म दिया गया है। हमारे पास यह मालूम करने का कोई तरीका नहीं कि वह कैसे हैं। अपने दिमाग से कुछ सोचना, और उनके वजूद का इन्कार करना कुफ़्र है। आप (सल्ल०) ने हमें बताया है कि फ़रिश्ते अल्लाह की मख्लूक हैं और गुनाहों से पाक हैं। वह हमेशा अल्लाह की अिबादत में मशगूल रहते हैं। आसमान और ज़मीन के सारे काम फ़रिश्तों के ज़िम्मे हैं। जैसे हज़रत जिब्रईल (अलै०) अल्लाह के एहकाम और किताबें पैगम्बरों के पास लाते थे, इसी तरह हज़रत मीकाईल (अलै०) तमाम मख्लूक को रोजी पहुँचाने और बारिश वगैरह के काम पर तैनात हैं और बहुत से फ़रिश्ते उनके अंडर में काम करते हैं। कुछ बादलों के देखभाल पर, कुछ हवाओं के देखभाल पर, कुछ दरियाओं, तालाबों, नहरों के लिये तैनात हैं। सारी चीज़ों का इन्तिज़ाम अल्लाह के हुक्म के अनुसार करते हैं।

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हज़रत इस्राफ़ील (अलै०) कियामत के दिन सूर फेंकेंगे और हज़रत इज्राईल। (अलै०) लोगो की जान निकालते हैं। 
हर इन्सान के साथ दो फ़रिश्ते रहते हैं एक फ़रिश्ता उसके नेक काम लिखता है और दूसरा बुरा काम। इन फ़रिश्तों को किरामन कातिबीन कहते हैं। कुछ फ़रिश्ते इन्सान के मरने के बाद सवाल करने आते हैं, उन्हें मुन्किर नकीर कहते हैं। कुछ फ़रिश्ते आफ़तों, बलाओं, बच्चों, बूढ़ों कमज़ोरों, की जिन के बारे में हुक्म होता है उनकी हिफाज़त करते हैं। कुछ फ़रिश्ते जन्नत पर कुछ दोज़ख़ पर कुछ अर्श के उठाने पर मुक़र्रर हैं। दुनिया में जो फ़रिश्ते काम करते हैं उन की सुबह व शाम तब्दीली भी होती है सुबह की नमाज़ के वक्त रात वाले फ़रिश्ते आसमानों पर चले जाते हैं। और दिन में काम करने वाले आ जाते हैं और अस्र की नमाज़ के बाद दिन वाले फ़रिश्ते चले जाते हैं और रात में काम करने वाले आ जाते हैं।

(v) तक्दीर पर ईमान

हर बात अल्लाह के इल्म में है। अच्छी बुरी तक्दीर अल्लाह की ओर से होती है और हर चीज़ के पैदा करने से पहले अल्लाह उसे जानता है। अल्लाह के इसी इल्म और अन्दाज़े को तक्दीर कहते हैं। कोई अच्छी या बुरी बात अल्लाह के इल्म और अन्दाज़े से बाहर नहीं।

आख़िरत पर ईमान

आख़िरत से मुतअल्लिक जिन बातों पर ईमान रखना ज़रूरी है वह यह हैं 

  1. एक दिन अल्लाह सारी दुनिया को मिटा देगा। उस दिन का नाम कयामत है।

  2. फिर वह सब को एक दूसरी ज़िन्दगी देगा और सब अल्लाह के सामने हाज़िर होंगे उसको हश्र कहते

  3. तमाम लोगों ने अपनी दुनियवी ज़िन्दगी में जो कुछ किया है उस का पूरा नाम-ए-आमाल अल्लाह की अदालत में पेश होगा। 

  4. अल्लाह हर शख्स के अच्छे और बुरे आमाल की तुलना करेंगे। जिसकी भलाई ज्यादा होगी उसे बख़्श देंगे और जिसकी बुराई ज्यादा होगी उसे सज़ा देंगे। 

  5. जिन लोगों की बख्शीश हो जाएगी वह जन्नत में जाएँगे और जिन को सज़ा दी जाएगी वह दोज़ख़ में जाएँगे।

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