
अल्लाहुम-म अइन्नी अला ग़ म-रातिल मौति व स-क रातिल मौति०
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! मौत की सख़्तियों के (इस मौके) में मेरी मदद फ़रमा।
फ़ायदा- मौत के वक़्त मरने वाले का चेहरा क़िब्ले की तरफ़ कर दिया जाए और जो मुसलमान वहां मौजूद हो, वह मरने वाले को ला इला-ह इल्लल्लाहु की तलक़ीन करे, यानी उस के सामने बुलंद आवाज़ से कलिमा पढ़े ताकि वह सुन कर कलिमा पढ़ ले।
तंबीह-
मौत के वक़्त कलिमे का पढ़ना फ़र्ज़ या वाजिब नहीं। अगर किसी ने नहीं पढ़ा तो उसके ईमान में कोई फ़र्क न आएगा।
हदीस शरीफ़ में है कि जिस का आख़िरी कलाम ला इला-ह इल्लल्लाहु है, वह जन्नत में दाखिल होगा। -हिस्ने हसीन
यानी गुनाहों की वजह से सज़ा पाने से बच जाएगा और जन्नत के दाखिले में रूकावट न रहेगी।
जान के निकलते वक़्त मौजूद लोगों में से कोई सूरः यासीन शरीफ पढ़ दे। (इस से जान निकलने में आसानी हो जाती है।)
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