रोज़ा रखने की नीयत

रोज़ा रखने की नीयत

roza rakhne ki niyat

‘व बि सौमि गदिन न-वय-तु मिन शहरि र-म-ज़ा-न’ 

तर्जुमा- मैंने रमज़ान के कल के रोज़े की नीयत की।

कई जगह ये आया है कि रोज़ा दिल के इरादा का नाम है और क्योकि इस दुआ मे कल के रोजे का नाम आया है और हम रोज़ा आज का रख रहे है। इस लिये ये दुआ सही नही है। 

लिहाजा आप दिल मे इरादा कर ले कि “मैं रोज़ा रखता/रखती हूँ केवल अल्लाह के लिये।”

‘व बि सौमि गदिन फरजल्लाही तआला नवयतु’

रोज़ा खोलने की दुआ

roza kholne ki dua

अल्लाहुम्-म इन्नी ल-क सुमतु व बि-क आमन्तु व अलय-क त वक्कल-तु व झला रिज़क़ि-क अफ़-तर-तु. 

तजुर्मा- ऐ अल्लाह! मैंने तेरे लिए रोज़ा रखा और तुझ ही पर ईमान लाया और तुझ ही पर भरोसा किया और तेरे रिज़्क़ से खोला।

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