शादी की रस्में

शादी की रस्में

निकाह में जो चीजें फर्ज हैं, वे सिर्फ दो हैं- कम से कम दो गवाहों की मौजूदगी और ईजाब व कुबूल और निकाह का मस्तून तरीका यह है कि आम मज्मे में निकाह किया जाए। खुत्बा और छोहारे बाँटना । सुन्नत है, फर्ज वाजिब नहीं। सुहागरात के दूसरे दिन दावते वलीमा करना भी सुन्नत है और उसका तरीका

यह है कि अपनी हैसियत के मुताबिक गरीब व अमीर को खाने की दावत दी जाए और खाना खिलाया जाए। अपनी हैसियत से ज्यादा या कर्ज लेकर दावते वलीमा करना फिजुलखर्ची और गुनाह है और सिर्फ अमीरों और मालदारों को दावत देना और गरीबों को छोड़ देना भी सुन्नत के ख़िलाफ़ है।

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शरीअत के ख़िलाफ़ रस्में

शादी में बहुत-से काम ऐसे होते हैं जो शरीअत के ख़िलाफ़ हैं और गुनाह हैं। लड़के के रिश्तेदार या खुद लड़के की फरमाइशें, जहेज़ में कुछ चीज़ों का तै कर लेना, लड़की या लड़के वालों के यहां गाना बजाना, एक दूसरे पर रंग फेंकना, दुल्हन की रु-नुमाई में महरम और गैरमहरम से लापरवाही, लड़के वालों की तरफ से लड़की को मांझा बिठाने के लिए औरतों का जाना और लड़की को मांझा बिठाना, जिसको लग्न की रस्म कहते हैं, दूल्हा, बारातियों और दुल्हन और दूसरी औरतों का फोटो लेना, ये सब रस्में इस्लाम के ख़िलाफ़ और गुनाह हैं। 

बारातियों के खाने और लड़की जहेज देने में अपनी हैसियत से ज्यादा ख़र्च करना फिजूलखर्ची और फिजूलखर्ची बड़ा गुनाह है। बारात तो इस्लाम में कोई चीज ही नहीं कि उसको किया जाए। लड़की को जहेज़ में उतनी ही चीजें देनी चाहिए जो लड़की के रिश्तेदान की हैसियत हो। इस सिलसिले में लड़के या उसने रिश्तेदारों की फरमाइश जुल्म और बड़ा गुनाह है। जहेज़ ख़ालिस लड़की की चीज़ और मिल्कियत है। लड़की के रिश्तेदारों को इख्तियार है, जितना और जो चाहें दें, किसी को उस पर दबाव का हक़ नहीं।

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घरेलू जिन्दगी की एक बड़ी गलती

शरीअत का हुक्म है कि जब लड़के-लड़कियाँ समझदार हो जाएं तो उनका बिस्तर माँ-बाप से बिल्कुल अलग रखा जाए। माँ के या बाप के बिस्तर पर बेटी, इसी तरह बाप या माँ के बिस्तर पर लड़का लेटे सोये नहीं। इसकी वजह यह है कि कभी-कभी ऐसी गलती से बीवी अपने शौहर को हमेशा के लिए हराम हो जाती है। इसी तरह बेटे-पोते, नवासे की बीवियों को भी अपने ससुर या दादा ससुर या नाना ससुर से अलग रहना चाहिए। 

उनकी कोई खिदमन जिस्मानी नहीं करनी चाहिए वरना इस फित्ने के दौर में बहुत बार वे औरतें अपने शौहर पर हराम हो जाएंगी और फिर जायज व हलाल होने की कोई सूरत नहीं होगी। इसलिए कि मसूलय यह है कि अगर शौहर का हाथ नफ़्सानी ख्वाहिश के साथ बीवी के बजाए लड़की या बहू वगैरह के बदन पर पड़ जाए तो बीवी अपने शौहर के लिए और बहू वगैरह अपने शौहरों के लिए हराम हो जाएंगी और इसके बाद इसके जायज़ होने की कोई शक्ल नहीं। यह हुक्म हराम होने का उस वक्त है, जब लड़की या बहू वगैरह नौ साल या उससे ज्यादा उम्र की हो।

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