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सफ़र से वापस होकर जब अपने शहर या बस्ती में दाख़िल हों तो पढ़े
आइबू-न ताइबू-न आबिदू-न लिरब्बि ना हामिदून। तर्जुमा- हम लौटने वाले हैं, तौबा करने वाले हैं, अल्लाह की बन्दगी करने वाले हैं अपने रब की हम्द करने वाले हैं। -हिस्न हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आदते शरीफ़ा थी कि सफ़र से वापसी पर अपने शहर में चाश्त के वक़्त दाख़िल होते थे और सब से पहले मस्जिद पहुंच कर दो रक्अत नमाज़ अदा फ़रमाते थे। इसके बाद (कुछ देर) मस्जिद में तशरीफ़ रखते थे (फिर घर में जाते थे।) –बुख़ारी व मुस्लिम हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जुमेरात के दिन सफ़र के लिए रवाना होने को पसन्द फ़रमाते थे। -बुख़ारीवापसी पर घर में घुसते वक़्त
सफ़र से वापस होकर घर में दाख़िल हो तो यह पढ़े
औ बन औबन लिरब्बिना तौबन ला युग़ादिरु अलैना हौबन०
तर्जुमा- मैं वापस आया हूं, मैं वापस आया हूं, अपने रब के सामने ऐसी तौबा करता हूं जो हम पर कोई गुनाह न छोड़े। -हिस्न (अबूयाला)
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