अल्लाह के बन्दों के हक़
अल्लाह ने हर इन्सान पर कुछ लोगों के हक़ और ज़िम्मेदारी दी है। जिनका हक़ यदि हमने अदा नहीं किया तो उनका हक़ अल्लाह माफ़ नहीं करेंगे।
- जैसे माँ बाप का हक़, औलाद को माँ-बाप का हर वह हुक्म मानना पड़ेगा जो अल्लाह के हुक्म के खिलाफ़ न हो।
- पड़ोसियों को शोर, आवाज़, धुआँ आदि से परेशान न करें। उसकी हर खुशी व ग़म में उसका साथ दें।
- शौहर की ज़िम्मेदारी है कि वह अपनी बीवी के कपड़े, खाने आदि का ध्यान रखे।
- बीवी की ज़िम्मेदारी है कि वह शौहर की हर बात माने जो अल्लाह के हुक्म के खिलाफ़ न हो, बगैर अपने शौहर की इजाज़त के घर से बाहर न जाये।
- कारोबार ईमानदारी से करना, धोखाधड़ी से बचना, अमानत में ख़्यानत न करना। इसके अलावा किसी का दिल न दुखाना, किसी की बदनामी और बुराई न करना, लोगों से अच्छी तरह से पेश आना, सफ़र में दूसरों का ध्यान रखना, तकलीफ़ न । पहुँचाना, ख़ास तौर पर औरतों, बुजुर्गों और बच्चों को।
अगर आपने इन सब का हक़ जिस तरह अदा करना है, नहीं किया तो ये लोग क़यामत के दिन अपना हक़ आपसे वसूल करेंगे और आपकी नेकियाँ इन सबको दे दी जाएंगी। तो वह आदमी बहुत नुक़सान में होगा जो सारी उम् नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात और तमाम इबादतों से नेकियाँ कमाता रहा और उसने अल्लाह के बन्दों का हक़ अदा नहीं किया तो उसकी सारी नेकियाँ वे लोग ले गये जिसका के उसने हक़ अदा नहीं किया।
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