जब सफर में सुबह हो​

जब सफर में सुबह हो

सफ़र में जब सुबह का वक़्त हो तो यह पढ़े
dua jab safar me subah ho

समि-अ सामिउम बिहम्दिल्लाहि व निअमतिही व हुस्नी बलाइ ही अलैना रब्बना साहिब-ना व अफ़ज़िल अलैना आइज़म बिल्लाहि मिनन्नारि।

तर्जुमा- सुनने वाले ने (हम से) अल्लाह की तारीफ़ बयान करते सुना और उसकी नेमत का और हम को अच्छे हाल में रखने का इक़रार जो हमने किया, वह भी सुना। ऐ हमारे रब! तू हमारे साथ रह और हम पर फ़ज़ल फ़रमा। यह दुआ करते हुए दोज़ख़ से अल्लाह की पनाह चाहता हूं। -हिस्ने हसीन 

कुछ रिवायतों में है कि इसको ऊंची आवाज़ से पढ़े और तीन बार पढ़े।

फ़ायदा- हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है कि जो सवार अपने सफ़र में दुनिया की बातों से दिल हटा कर अल्लाह की तरफ़ ध्यान रखे और उसकी याद में लगा रहे तो उसके साथ फ़रिश्ता रहता है और जो शख़्स बेकार के शेरों में किसी और बेहुदा कामों में लगा रहता है, तो उसके साथ शैतान रहता है। -हिस्न

अगर सफ़र में दुश्मन वगैरह का ख़ौफ हो तो सूरः लि इलाफ़ि कुरैश पढ़े। कुछ बुजुर्गों ने इसका तर्जुमा भी किया है। -हिस्न

फ़ायदा- हुजूरे अपदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत जुबैर बिन मुत्इम रज़ियल्लाहु अन्हु को बताया कि सफ़र में इन पांच सूरतों को पढ़ें

  1. कुल या ऐ युहल काफ़िरून,
  2. इज़ा जा-अनस-रुल्लाह,
  3. कुल हुवल्लाहु अहद,
  4. कुल अऊज़ बि रब्बिल फ़लक़ि,
  5. कुल अऊज़ बिरब्बिन्नास

हर सूरः बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम से शुरू की जाए और कुल अऊजु बिरब्बिन्नासि के ख़त्म पर भी बिस्मिल्लाह पढ़ी जाए। इस तरह बिस्मिल्लाह छः बार हो जाएगी। हज़रत जुबैर रज़ियल्लाहु अन्ह का बयान है कि जब कभी मैं सफ़र में निकलता था, तो मालदार होने के बावजूद भी रास्ते का सामान साथियों से कम रह जाता था और मेरा हाल बुरा हो जाता था, लेकिन जब मैंने ये सूरतें पढ़नी शुरू की, उस वक़्त से मैं वापस होने तक सफ़र के अपने तमाम साथियों से अच्छी हालत में रहता हूं और रास्ते का सामान भी उन सब से ज़्यादा मेरे पास रहता है।

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