नमाज़ में की जाने वाली कुछ ग़लतियाँ
नमाज़ के तरीके का सही इल्म न होने के कारण हम से नमाज़ में विभिन्न प्रकार की ग़लतियाँ होती रहती हैं। जिनमें से कुछ नीचे दी जा रही है।
इमाम के पीछे नमाज़ी का ऊँचे स्वर में केराअत करनाः कुछ लोग जमाअत की नमाज़ों में ज़ोर जोर से केराअत करके दूसरे नमाज़ियों की नमाज़ में खलल डालते हैं। हालाँकि नबी सल्ल0 ने फरमाया: “सुन लो ! तुम में से हर एक नमाज़ में अपने रब से बात कर रहा होता है। अतः बिल्कुल कोई दूसरे को कष्ट न पहुंचाए, न कोई किसी के सामने अपनी आवाज़ को ऊँचा करे।”
नमाज़ के बीच विभिन्न प्रकार की हरकतें करना: कुछ नमाज़ी अपनी नमाज़ों में आदाब का ख्याल किए बिना नमाज़ में विभिन्न प्रकार की हरकतें करते रहते हैं। कोई हाथ की घड़ी में देख रहा है, कोई दाढ़ी पर हाथ फेर रहा है, कोई कपड़े से मिट्टी झाड़ रहा है, कोई नाक से खेल रहा है, तो कोई पीठ खुजला रहा है इत्यादि।
आयतों के अर्थ को समझे बिना इमाम की केराअत पर रोना चिल्लानाः नमाज़ में कुछ आयतें जहन्नम, यातना और परलोक से सम्बन्धित होती हैं जिन्हें सुन कर एक व्यक्ति का ह्रदय नर्म पड़ जाता और आँखों से आंसू जारी हो जाते हैं और यह अच्छी बात है लेकिन कुछ लोग हर नमाज़ में रोना और चीखना शुरू कर देते हैं चाहे पढ़ी जाने वाली आयतें जन्नत और जहन्न से सम्बन्धित हों या नही। मालूम हो कि इस से दूसरे नमाज़ियों को परेशानी होती है।
फक़ीराना कपडो में मस्जिद आना: निर्धनता कोई ऐब नहीं, कितने निर्धन साफ सुथरे कपड़े पहन कर मस्जिद जाते हैं जबकि कितने ऐसे सुखी और सम्पन्न लोगों का यह हाल होता है कि जब बाज़ार जाएं तो बड़े बन-संवर कर जाएं लेकिन मस्जिद आना हो तो फक़ीराना क्षवि बना लेते हैं हालांकि ऐसा करना बिल्कुल सही नहीं।
नमाज़ियों के आगे से गुज़रनाः कुछ नमाज़ी नमाज़ समाप्त होते ही मस्जिद से बाहर निकलने की कोशिश करते हैं और उन लोगों का बिल्कुल लेहाज़ नहीं करते जो अपनी छूटी हुई नमानें अदा कर रहे होते हैं। नबी सल्ल0 ने फरमायाः “यदि नमाज़ी के सामने से गुज़रने वाला यह जान ले कि उसका क्या पाप है तो उसका चालीस वर्ष तक प्रतीक्षा में खड़े रहना उसके लिए बेहतर है।”
नमाज़ में आसमान की ओर निगाह उठानाः नबी सल्ल0 ने इस बात से मना फरमाया कि नमाज़ी नमाज़ की स्थिति में अपनी निगाह आसमान की ओर उठाए। नमाज़ में खड़े होते समय एक व्यक्ति की निगाह उसके सज्दे के स्थान पर टिकी होनी चाहिए। जबकि कुछ नमाज़ी नमाज़ में कभी छत की ओर देखते होते हैं मानो अल्लाह को देख रहे हैं तो कुछ लोग दाएं बाएं झाँक रहे होते हैं।
लम्बे स्वर में खींच कर देर तक आमीन कहनाः जहरी नमाज़ों में ऊँची आवाज़ से आमीन कहना अल्लाह के रसूल सल्ल0 की सुन्नत है क्योंकि फरिश्ते भी इस पर आमीन कहते हैं और जिसकी आमीन फरिश्तों की आमीन से सहमत हो गई उसके पाप माफ़ कर दिए जाते हैं। इस लिए होना यह चाहिए कि आमीन एक साथ कही जाए और ऊँचे स्वर में ताकि सुनी जा सके। जबकि देखा यह जाता है कि कुछ लोग बिल्कुल आमीन कहते ही नहीं जबकि दूसरे कुछ लोग इतना लम्बा “आमीन” कहते हैं कि सब लोगों के आमीन से फारिश होने के बावजूद वह आमीन को खींचते रहते हैं जिससे अन्य नमाज़ियों को तक्लीफ होती है।
जहरी नमाज़: ऐसी नमाज जिनमे इमाम केराअत जोर से पढ़ते है। नमाज़े फ़ज्र ,मग़रिब व एशा।
पेशाब या पाखाना को रोक कर नमाज़ पढ़नाः एक ही वजू से बहुत सी नमाज़े पढ़ने के कुछ इच्छुक कभी कभी पेशाब या पाखाना रोक कर नमाज़ पढ़ने लगते हैं। जबकि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने पेशाब या पाखाना रोक कर नमाज़ पढ़ने से मना फरमाया है। यदि किसी को ऐसी सूरत पेश आ जाए कि जमाअत खड़ी हो चुकी हो और उसे शौचालय जाने की आवश्यकता हो तो वह पहले शौचालय जा कर अपनी ज़रूरत पूरी करे।
सफों को बराबर न करनाः सामान्य रूप में यह देखने को मिलता है कि नमाज़ी अपनी नमाज़ों में सफें सीधी करने का ज्यादा ख्याल नहीं करते और अपने बीच में खाली जगह छोड़ कर खड़े होते हैं। नबी सल्ल0 ने फरमायाः “सफें ठीक कर लो, कंधे बराबर कर लो. सफ के बीच खाली रह जाने वाले स्थान को भर लो, अपने भाइयों के लिए नरम हो जाओ और शैतान के लिए जगह न छोड़ो।
एक मस्जिद में एक ही समय दो जमाअत करनाः मस्जिद में प्रत्येक उपस्थितगणों का एक इमाम के पीछे नमाज़ की अदाएगी को जमाअत कहते हैं। लेकिन कभी कभार यह देखने को मिलता है कि पहली जमाअत समाप्त होने के बाद दो दो जमाअतें एक ही मस्जिद में एस ही समय काइम कर ली जाती हैं। और यह कभी तो इमाम की गलती के कारण होता है कि इमान की आवाज़ धीमी होने के कारण देर से आने वालों को पता न चल सका कि दूसरी जमाअत खड़ी हुई है।
रुकू में कमर और घुटने सीधा न रखनाः कुछ नमाज़ी रुकू के बीच या तो सर को नीचे झुकाए रखते हैं या फिर सर को बहुत ऊँचा रखते हैं, यह दोनो शक्लें ग़लत हैं। हालाँकि सर को न ज़्यादा झुकाया जाए और न ज़्यादा उठा कर रखा जाए बल्कि कमर और सर दोनों बराबर होना चाहिए कि यदि उस पर पानी बहाया जाए तो ठहर जाए।
सज्दे की स्थिति में केहनियों को ज़मीन पर बीछाना या हथेलियों को बिल्कुल सीधा खड़ा रखनाः सज्दे में कुछ लोग केहनियों को ज़मीन पर बिछा लेते हैं हालाँकि नबी सल्ल0 ने इस तरीके को कुत्ते से तशबीह देते हुए फरमाया कि “कोई अपने बाजूओं को कुत्ते के समान ज़मीन पर न फैलाए” । जबकि कुछ लोग अपनी हथेलियों को मोड़े हुए बिल्कुल खड़ा रखते हैं। जबकि सही तरीका यह है कि हथेलिया ज़मीन पर रखी जाएं इस प्रकार कि ऊँगलियाँ मिली हुई हों और क़िबला की ओर हों और केहनियाँ ज़मीन से उठी हुई हों। उसी प्रकार पैर की ऊँगलियाँ भी क़िबला की ओर हों।
सलाम फेरते ही ज़ोर से बातें करने लगनाः कुछ नमाज़ी सलाम फेरने के बाद यह भूल जाते हैं कि वह मस्जिद में हैं और अपने साथी के साथ वार्ता और हंसने हंसाने में लग जाते हैं मानो किसी चाए की दुकान में बैठे हों। हालांकि उस समय कितने नमाज़ी अपनी नमाज़े पूरी कर रहे होते हैं, कितने सुन्नतें पढ़ रहे होते हैं। यदि कोई ऐसी स्थिति में उन्हें टोक दे तो नाराज हो जाते हैं।
नियत का ज़बान से अदा करनाः कुछ लोग जमाअत की नमाज़ में देर से आते हैं और ज़ोर से तकबीर कहते हुए नमाज़ में दाखिल होते हैं, बल्कि कुछ लोग नियत के शब्द भी जबान से अदा करते हैं” हालाँकि ऊँची आवाज़ से “अल्लाहु अकबर” कहना या नियत के शब्द ज़बान से बोलना प्यारे नबी सल्ल0 और आपके साथियों से प्रमाणित नहीं। और इस लिए भी कि नियत दिल के संकल्प का नाम है अतः जबान से नियत के शब्द बोलने की आवश्यकता ही नहीं।
नमाज़ में इमाम का अनुसरण न करनाः जमाअत की नमाज़ में न तो इमाम से आगे निकलना चाहिए और न ही इमाम के बिल्कुल पीछे रहना चाहिए कि इमाम सजदा से उठ जाए और वह अभी सज्दे ही में हो, इमाम रुकूअ में चला जाए और वह अभी क्याम ही में हो। क्योंकि यह तरीक़ा अल्लाह के नबी सल्ल0 के आदेश के विपरीत है।
खुतबए-जुमा के समय बात करनाः जुमा का खुतबा नमाज़ का ही भाग है इस लिए जुमा के दिन मस्जिद में बैठ कर इमाम का खुतबा खामोशी के साथ सुनना चाहिए।
नमाज़ में जंभाई लेना: “जब नमाज़ के बीच किसी को जंभाई आ रही हो तो सम्भवतः उसे रोक ले, क्योंकि जंभाई द्वारा शैतान अन्दर प्रवेश करता है।”
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