पैगंबर इसहाक अलैहिस्सलाम की कहानी

जब बीबी हाजरा को अल्लाह तआला ने हज़रत इस्माईल जैसा बेटा इनायत किया था, उसी वक्त से हज़रत सारा ने तमन्ना की थी कि अल्लाह तआला उन्हें भी एक बेटा इनायत करे।

एक दिन हज़रत जिब्रील और कई फरिश्ते खूबसूरत जवानों की शक्ल बनाकर हज़रत इब्राहीम के घर आये। हजरत इब्राहीम ने उन्हें इन्सानी मेहमान समझा था इसलिए लगे उनकी खातिरदारी करने । हज़रत इब्राहीम ने उन से खाने को बहुत कहा, लेकिन उन्होंने खाने पर हाथ तक नहीं लगाया। हजरत इब्राहीम उदास हो गए।

उस ज़माने में यह रस्म थी कि जो कोई किसी को तक्लीफ देना चाहता था तो वह आदमी उसके घर का खाना नहीं खाता था। फरिश्तों ने हजरत इब्राहीम का चेहरा उदास देखकर फरमाया कि हम फरिश्ते हैं, इसलिए तुम्हारा खाना नहीं खाया और बोले कि हम लूत की कौम को अज़ाब देने आये हैं और तुम्हारे लिए दो बेटों की खुशखबरी लायें हैं। एक का नाम इस्हाक, दूसरे का नाम याकूब होगा। और वे दोनों होंगे तुम्हारी चहेती बीवी सारा से।

हज़रत इसहाक (अ.स) की पैदाइश:

हजरत इब्राहीम (अ.स) की उम्र सौ साल हुई और उन की बीबी हजरत सारा की उम्र 90 साल हो चुकी थी, हालाँके आम तौर पर इस उम्र में औलाद नहीं होती है। तो अल्लाह तआला ने उनको खुशखबरी सुनाई कि सारा (र) (इब्राहीम (अ.स) की छोटी बीवी) के पेट से भी तेरे एक बेटा होगा, उसका नाम इसहाक रखना

जब फरिश्तों ने उन की पैदाइश की खुशखबरी दी, तो दोनों हैरत व तअज्जूब में पड गए। मगर फरिशतों ने यकीन दिलाया और कहा : आप नाउम्मीद मत हों।

और इबराहीम की बीबी सारा खड़ी हुयी थी वह ये ख़बर सुनकर हँस पड़ी। सारा ने तअज्जुब से फरमाया कि मामला अजीब है। बाँझ औरत और बूढ़े मर्द से औलाद होना कैसी अजीब बात है। फरिश्तों ने फरमाया, जो कुदरत वाला आदम को बगैर माँ-बाप के पैदा करे, उससे क्या तअज्जुब है कि बांझ और बूढ़े मर्द से औलाद पैदा करे।

फिर सात दिन के बाद हजरत सारा को हमल रहा और नौ महीने तक वह बच्चा पेट में रहा। नौ महीने के बाद हज़रत सारा के दर्द शुरू हुआ और एक बच्चा पैदा हुआ, जिसका नाम इसहाक रखा गया।

इसलिए अल्लाह तआला के हुक्म से इसहाक पैदा हुए। उसी वर्ष हजरत इब्राहिम और इस्माइल ने बैतुल्लाह की स्थापना की। यह हजरत इस्माईल से चौदह साल छोटे थे। ६० साल की उम्र में हजरत इब्राहीम ने अपने भतीजे की लड़की रेबेका से उन की शादी कराई, उन से दो लडके पैदा हुए, एक का नाम ईसू और दुसरे का नाम याकूब था।

वह एक महान पैगंबर बनकर बड़े हुए। हजरत इशाक और उनकी पत्नी रेबेका की कब्रें अभी भी फिलिस्तीन की एक मस्जिद में हैं। ऐसा कहा जाता है कि वह 180 साल तक जीवित रहे।

बच्चे की पैदाइश पर हज़रत इब्राहीम ने खुश होकर फ़रमाया – अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी व-ह-ब ली अलल् किबरि इस्माईल व इस्हाक।

‘तारीफ है उस खुदा की, जिसने मुझे बुढ़ापे में इस्माईल और इसहाक (जैसे बेटे) दिए। तेरी कुदरत कामिल है और तू हर चीज़ की ताकत रखता है।

इसहाक (अ.स) का जिक्र कुरआन में:

कुरान पाक में हजरत इसहाक अलैहिस सलाम का जिक्र सूरः अंबिया, सूरः मरयम, सूरः हूद और सूरः साफ़्फ़ात में आया है। इसहाक (अ.स) का उल्लेख कुरान में 17 बार नाम से किया गया है।
Hazrat Ishaq A.S

इसहाक (अ.स) की वफ़ात

इशाक (अ.स) ने अपने लोगों को कन्नन में अल्लाह तआला के सीधे रास्ते पर चलने के लिए कहा। जैसे-जैसे वह बूढ़े होते गए, वह अंधे हो गए। 180 साल की उम्र में इशाक (अ.स) की वफ़ात हो गई और उन्हें उनके वालिद हज़रत इब्राहिम (अ.स) के बराबर में दफनाया गया।
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