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आद का ज़माना
आद का ज़माना लगभग दो हज़ार साल कब्ल मसीह माना जाता है और कुरआन मजीद में आद को ‘मिम बादी नूह’ कहकर नूह कौम के ख़लीफ़ों में गिना गया है, साथ ही उनको ‘आदे उला’ कहा है और आद के साथ इरम का लफ़्ज लगा हुआ है।
आद के रहने की जगह
आदे का मर्कज़ी मक़ाम अरज़े अहक़ाफ़ है। यह हज़र मौत के उत्तर में इस तरह वाक़े है कि इसके पूरब में ओमान और उत्तर में राबेअ अल-ख़ाली। मगर आज यहां रेत के टीलों के सिवा कुछ नहीं है।
आद का मजहब
आद बुत-परस्त थे और अपने पेशे और नूह की क़ौम की तरह सनमपरस्ती और बुततराशी में माहिर थे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (र.अ.) से एक असर मंक़ूल है। इसमें है कि इनके एक सनम का नाम समूद और एक का नाम हतार था।
हज़रत हूद अलैहि सलाम
आद अपनी ममलक्त की सतवत व जबरूत, जिस्मानी सूरत व गुरूर में ऐसे चमके कि उन्होंने एक अल्लाह को बिल्कुल भुला दिया और अपने हाथों के बनाए हुए बुतों को अपना माबूद मानकर हर किस्म के शैतानी आमाल बेख़ौफ़ करने लगे, तब अल्लाह तआला ने उन्हीं में से एक पैग़म्बर हज़रत हूद को भेजा। हज़रत हूद अलैहि सलाम आद की सबसे ज्यादा इज़्ज़तदार शाख़ा ‘खुलूद’ के एक फ़र्द (व्यक्ति) थे।
हज़रत हूद (अ.स) की तबलीग -
हज़रत हूद (अ.स) ने अपनी कौम को अल्लाह तआला की तौहीद और इबादत के लिए दावत दी और लोगों को जुल्म व जब्र से मना किया लेकिन कौम ए आद ने एक न मानी और सख्ती के साथ झुठलाया और गुरुर और घमंड के साथ कहने लगे जो के कुरान मजीद में अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाते हैं
“हम में से ज्यादा कौन है कुव्वत में आगे”
हज़रत हूद (अ.स) की कौम ए आद को नसीहत
ए कौम! अब भी समझ और अकल व होश से काम ले, नुह (अ.स) के कौम के हालत से इबरत हासिल कर और अल्लाह के पैग़ाम के सामने सरे नियाज झुका दे, वरना बहुत करीब है वो जमाना के तेरा सारा घमंड व गुरुर खाक में मिल जायेगा और उस वक़्त शर्मिंदगी से भी कोई फायदा न होगा।
हज़रत हूद अलैहिस सलाम ने बार-बार उनको भी यह बावर कराया कि मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, दोस्त हूं। तुमसे सोना-चांदी और तख्त व ताज की तलब नहीं करता हु, बल्कि तुम्हारी फलाह व नजात चाहता हूँ। मैं अल्लाह तआला के पैगाम के बारे में खयानत करने वाला नहीं बल्कि अमीन हूँ। वही करता हूँ जो मुझसे कहा जाता है। जो कुछ कहता हूँ कौम की सआदत और हाल व माल की भलाई के लिए कहता हूँ, बल्कि दायमी व सरमदी नजात के लिए कहता हूँ।
तुमको अपनी ही क़ौम के एक इंसान पर अल्लाह के पैग़ाम नाज़िल होने से अचम्भा नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह पुराने ज़माने से अल्लाह की जारी व सारी सुन्नत है कि इंसानों की हिदायत व सआदत के लिए उन्हीं में से एक आदमी को चुन लेता और अपना रसूल बना कर उसको ख़िताब करता है और अपनी मर्ज़ी और नामर्ज़ी से उसको मारफ़्त अपने बन्दों को मुत्तला करता रहता है और फ़ितरत का तक़ाजा भी तो यही है कि किसी क्रौम की रुश्द व हिदायत के लिए ऐसे आदमी ही को चुना जाए, जो बोल-चाल में उन्हीं की तरह हो, उनके अख्लाक़ और आदतों का जानकार हो, उनकी ख़ुसूसी बातों से आशना और उन्हीं के साथ ज़िंदगी गुजरता रहा हो कि उसी से क़ौम मानूस हो सकती है और वही उसका सही हादी व मुश्फ़िक़ि बन सकता है।
आद ने जब यह सुना तो वे अजीब हैरत में पड़ गए। उनकी समझ में न आया कि एक अल्लाह की इबादत का मतलब क्या है? वे गम व गुस्सा में आ गए कि किस तरह हम बाप-दादा की ‘अस्नाम परस्ती’ (मूर्तिपूजा) को छोड़ दें? यह तो हमारी और हमारे बाप दादा की सख्त तौहीन है। उनका गैज व गजब भड़क उठा की उनको काफ़िर और मुश्रिक क्यों कहा जाता है? जबकि वो बुतों को अल्लाह समान अपनी शफ़ाअत करने वाला मानते है। उनके नजदीक हुद की बात मान लेने में उनके माबूदों और बुजुर्गों की तौहीन थी और उन्हें हक़ीर समझा जा रहा था, जिनको वो बड़े खुदा के दरबार में अपना वसीला और शफी मानते थे और इसी को इन तस्वीरों और मूर्तियों के लिए पूजते थे की वे खुश होकर हमारी शिफारिश करेंगे और अल्लाह के अजाब से निजात दिलाएंगे। आखिर वे शोले की तरह भड़क उठे और हजरत हुद अलैहि सलाम से बिगड़ कर कहने लगे, तूने हमको अपने खुदा के अजाब की धमकी दी और हमको उस से यह कहकर डराया की “मै तुम्हारे ऊपर बड़े दिन के अज़ाब के आने से डरता हूं (कि कहीं) तुम उसके हक़॒दार न ठहर जाओ” [अश-शोअरा 26:135]
तो ऐ हूद! अब हमसे तेरी रोज़-रोज़ की नसीहतें सुनी नहीं जातीं। हम ऐसी नसीहत करने वाले मेहरबान से बाज़ आए, अगर तू वाक़ई अपने कौल में सच्चा है तो वह अज़ाब जल्द ले आ कि हमारा-तेरा किस्सा साफ़ हो।
“पस॒ ला तू हमारे पास उस चीज़ को, जिसका तू हमसे वायदा करता है, अगर तू वाक़ई सच्चों में से है।” [अल-आराफ़ 7:70]
हज़रत हूद अलैहि सलाम ने जवाब दिया कि अगर मेरे ख़ुलूस और मेरी सच्चाई वाली नसीहतों का यही जवाब है तो “बिस्मिल्लाह” और तुमको अज़ाब का अगर इतना की शोक़ है, तो वह भी कुछ दूर नहीं।
“क्या तुम मुझसे उन मनगढ़त नामों (बुतों) के बारे में झगड़ते हो, जिनको तुमने और तुम्हारे बाप-दादों ने गढ़ लिया है कि जिसके बारे में तुम्हारे पास ख़ुदा की कोई हुज्जत नहीं। पास अब तुम (अल्लाह के अज़ाब का) इंतजार करों। मैं भी तुम्हारे साथ इन्तिज़ार करता हूं। [अल-आराफ़ 7:71]
हूद (अ.स) की क़ौम पर अज़ाब
आखिर अल्लाह का वादा आ पहुंचा और गैरते हक़ हरकत में आई और अल्लाह के अज़ाब ने सबसे ख़ुश्कसाली की शक्ल ईख्तियार की। आद सख्त घबराए हुए परेशान हुए और तंग दिखाई पड़ने लगे, तो हज़रत हूद अलैहि सलाम को हमदर्दी के जोश ने उकसाया और मायूसी के बाद फिर उनको एक बार समझाया कि हक़ का रास्ता इख़्तियार कर लो, मेरी नसीहतों पर ईमान ले आओ, यही निजात की राह है दुनिया में भी और आख़िरत में भी वरना पछताओगे। लेकिन बदबख्त और बदनसीब क़ौम पर कोई असर न हुआ बल्कि दुश्मनी कई गुना ज़्यादा बढ़ गई, तब हौलनाक अजाब ने उनको आ घेरा। आठ दिन और सात रातें बराबर तेज़ व तुंद हवा के तुफ़ान उठे और उनको और उनकी आबादी को तह व बाला करके रख दिया। तनोमंद और हैकल इंसान जो अपनी जिस्मानी त़ाक़तों के घमंड में सरमस्त और सरकश बने हुए थे, इस तरह बेहिस व हरकत पड़े नज़र आते थे, जिस तरह आंधी से भारी-भरकम पेड़ बेजान होकर गिरता है।
गरज़ उनकी हस्ती को नेस्त व नाबूद कर दिया गया, ताकि आने वाली नस्लों के लिए इबरत बनें और दुनिया और आख़िरत की लानत और अजाब उन पर मुसल्लत कर दिया गया कि वे उसी के हक़दार थे। हज़रत हूद अलैहि सलाम और उनके मुख्लिस इस्लाम को मानने वाले साथी अल्लाह की रहमत्त और नेमत में अल्लाह के अज़ाब से महफूज़ रहे और सरकश कौम की सरकशी और बगावत से बचे रहे।
यह है आदे ऊला की वह दास्तान जो अपने अंदर इबरत्त के सामान रखती है। इसमें अनगिनत नसीहतें पाई जाती हैं और अल्लाह तआला के हुक्मो की तामील और तक़्वां व तहारत की ज़िदंगी की तरफ़ दावत देती है। शरारत, सरकशी और अल्लाह के हुक्मों से बग़ावत के बुरे अंजाम से आगाह करती और वक़्ती ख़ुशऐशी पर घमंड करके नतीजे की बदबख्ती पर मजाक उड़ाने से डराती और बाज़ रखती है।
हुद अलैहि सलाम की वफ़ात
हजरत अली (र.अ.) से एक असर नक़ल किया जाता है के हजरत हुद अलैहि सलाम की कब्र हजर मौत में कसीफे अहमर (लाल टीला) पर है और उसके सरहाने जहॉ का पेड़ खड़ा है। दूसरी रिवायतों के मुकाबले में यही रिवायत सही और माकूल मालूम होती है की आद की बस्तियां हजर मौत के करीब थी और उनकी (आद की) तबाही के बाद करीब ही की बस्तियों में हजरत हुद अलैहि सलाम ने क़ियाम फ़रमाया होगा। और वही वफ़ात हो गयी होगी।