फ़र्ज़ किसको कहते हैं?

फ़र्ज़ वह इबादत है जो यक़ीनी दलील से साबित हो। यानी उसके सुबूत में कोई शुबहा न हो। फ़र्ज़ का इन्कार करने वाला काफ़िर हो जाता है। और बगैर उज़ के छोड़ने वाला फ़ासिक और अज़ाब का मुस्तहिक़ है। सभी फ़र्ज नमाज़े अनिवार्य मुस्लिम नमाज़े हैं – पांच दैनिक नमाज़े, साथ ही ‘जुमा(शुक्रवार) की नमाज़’ फ़र्ज नमाज़े हैं। फ़र्ज़ की दो किस्में हैं:
  • फ़र्जे ऐन,
  • फ़र्जे किफ़ाया।

फ़र्जे ऐन उस फ़र्ज़ को कहते हैं जिसका अदा करना हर शख्स पर जरूरी हो और बिला उज़ छोड़ने वाला फ़ासिक़ है और अज़ाब का मुस्तहिक़ है। और वह गुनहगार होगा।

फ़र्जे किफ़ाया उस फ़र्ज़ को कहते हैं जो एक दो आदमियों के अदा कर लेने से सबके ज़िम्मे से उतर जाये। और अगर कोई भी अदा न करे तो सब गुनहगार होंगे।

अर्थ - मतलब

  • उज़ → मजबूरी 

  • फ़ासिक़ → अरबी शब्द है, यानी इस्लामिक कानून तोड़ने वाला 

  • अज़ाब → पाप के बदले में मिलनेवाला दुःख 

  • मुस्तहिक़ → के योग्य

वाजिब किसको कहते हैं?

वाजिब वह इबादत है जो जन्नी दलील से साबित हो। वाजिब का इन्कार करने वाला काफ़िर नहीं होता, हाँ बिला उज़ छोड़ने वाला फ़ासिक और अज़ाब का मुस्तहिक़ होगा।

‘वित्र की नमाज़’ रात में ‘इशा की नमाज़’ के बाद या सुबह ‘फज्र की नमाज़’ से पहले रात में पढ़ी जाती है। हनफ़ी फ़िक़्ह के मुताबिक ‘वित्र की नमाज़’ वाजिब है। वाजिब की स्थिति फ़ज्र के बेहद करीब है।

सुन्नत किसको कहते हैं?

सुन्नत उस काम को कहते हैं जिसको रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने या सहाबाए-किराम ने किया हो या करने का हुक्म फ़रमाया हो।

सुन्नत की दो किस्में हैं

  1. सुन्नते मुअक्कदा

  2. सुन्नते गैर मुअक्कदा

सुन्नत मुअक्कदा– उस काम को कहते हैं जिसे रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमेशा किया हो या फ़रमाया हो और हमेशा किया गया हो। यानी बगैर किसी उज़ के कभी न छोड़ा हो। ऐसी सुन्नतों को बगैर उज़ छोड़ देना गुनाह है और छोड़ने की आदत बना लेना सख़्त गुनाह है।  

सुन्नते गैर मुअक्कदा– उस काम को कहते हैं जिसे हज़रत रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अकसर किया हो लेकिन कभी कभी बगैर उज़ के छोड़ भी दिया हो। उन सुन्नतों के करने में मुस्तहब से ज़्यादा सवाब है और छोड़ने में गुनाह नहीं।

मुस्तहब या नफ़ल

उस कामों को कहते हैं जिनको हज़रत मुहम्मद | सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किया हो लेकिन हमेशा और अक्सर नहीं बल्कि कभी-कभी किया हो या उसकी फ़ज़ीलत शरीअत में साबित हो उनके करने में सवाब | है और न करने में अज़ाब नहीं।

आदाब

वह काम है जिसके करने में सवाब है और उसके छोड़ने में न कोई बुराई है और न अज़ाब।

हराम किसको कहते हैं?

हराम वह काम है जिसकी मुमानियत । यक़ीनी दलील से साबित हो और उसका करने वाला फ़ासिक और अज़ाब का मुस्तहिक़ होता है और इन्कार करने वाला काफ़िर होता है।

मकरुहे तहरीमी

वह काम है जिसकी मुमानियत ज़न्नी दलील से साबित हो उसका इन्कार करने वाला काफ़िर नहीं मगर गुनाहगार है।

मकरुहे तनज़ीही

वह काम है जिसको छोड़ने में सवाब है। करने में अज़ाब तो नहीं मगर एक किस्म की बुराई  है।

यह सामग्री “नमाज़ का तरीक़ा” ऐप से ली गई है आप यह एंड्रॉइड ऐप और आईओएस(आईफोन/आईपैड) ऐप डाउनलोड कर सकते हैं। हमारे अन्य इस्लामिक एंड्रॉइड ऐप और आईओएस ऐप देखें।

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!