पैगंबर इदरीस (हनोक) अलैहिस्सलाम की कहानी

पैगंबर इदरीस (अ.स.)(बाइबल का नाम हनोक) आदम (अ.स.) के बाद इस्लाम में तीसरे पैगंबर थे। इदरीस (अ.स.) क़ुरआन में वर्णित अरबी में नबी का नाम है जिसका अर्थ है पढ़ाने वाला। इदरीस (अ.स.) का जन्म वर्तमान इराक के एक शहर बेबीलोन में हुआ था ।

शजरा-ए-नस्ब: इदरीस(अ.स.) –> बिन यरद –> बिन महलाईल–> बिन क़यान –> बिन अनूष –> बिन शीस(अ.स.) –> बिन आदम(अ.स.)

इदरीस (अ.स.) एक मजबूत चौड़ी छाती वाले एक अच्छी तरह से निर्मित व्यक्ति थे और कम आवाज में बात करते थे। यह भी कहा जाता है कि वह लंबे और सुंदर थे और हमेशा शांत स्वभाव के साथ बात करते थे।

अल्लाह तआला ने आपको अपने ज़माने के तमाम इन्सानों के लिये नबी बनाकर भेजा और शीस(अ.स.) के बाद आपको ही नुबूवत अता हुई आप पर तीस सहीफ़े नाज़िल हुए।

कुरान में 2 आयतें जिसमें पैगंबर इदरीस(अ.स.) का उल्लेख है, उनके चरित्र का एक वसीयतनामा है:

और (ऐ रसूल) कुरान में इदरीस का भी तज़किरा करो इसमें शक नहीं कि वह बड़े सच्चे (बन्दे और) नबी थे (सूरह मरियम,आयत 19)

उनके जीवन में सभी लोग अभी तक मुसलमान नहीं थे। बाद में, इदरीस (अ.स.) ने अपने गृहनगर बाबुल को छोड़ दिया क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों ने ऐसा न करने के लिए कहने के बाद भी कई पाप किए। उसके कुछ लोग इदरीस (अ.स.) के साथ चले गए। उनके लिए अपना घर छोड़ना मुश्किल था।

उन्होंने पैगंबर इदरीस (अ.स.) से पूछा: “अगर हम बाबुल छोड़ दें, तो हमें ऐसी जगह कहां मिलेगी?” पैगंबर इदरीस (अ.स.) ने कहा: “अगर हम अल्लाह की खातिर प्रवास करते हैं, तो वह हमारे लिए प्रदान करेगा।” तब लोग नबी इदरीस (अ.स.) के साथ गए और वे मिस्र देश में पहुंच गए। उन्होंने नील नदी को देखा। इदरीस उसके किनारे पर खड़े हो गए।”

क़लम से लिखने की शुरुआत और इल्मे रमल की ईजाद

इस्लाम धर्म की महत्वपूर्ण पुस्तक क़िसासुल अंबिया और ऐतिहासिक पुस्तकों के अनुसार हज़रत इदरीस (अ.स.) पहले मानव थे जिन्होंने लिखना पढ़ना सिखाया। आप क़लम से लिखने वाले पहले शख़्स हैं इसके अलावा आपने “इल्मे रमल” ईजाद किया। यह एक इल्म है जिसमे ज़मीन पर लकीरे खीँच कर छिपी हुई बातों के बारे में मालूम किया जाता है। इससे मुताल्लिक़ एक हदीस में है कि मुहम्मद (स.) से जब इल्मे रमल के बारे में पूछा गया तो आपने फ़रमाया कि यह एक पैग़म्बर थे जो रेत पर ख़त खींचा करते थे बस जिसका ख़त इनके मुताबिक़ हो जाये उसे अच्छी चीज़ों का इल्म हो जाता है। इसी की वजह से आपका लक़ब “हरमतुल हरामसा” पड़ा। जिसके मानी है “इल्मे नजूम यानि सितारों के इल्म का माहिर।”

कपड़े को सीकर पहनना

आपने ही सब से पहले कपड़े को सीकर पहना। इससे पहले जिस्म छुपाने के लिये जानवर की खाल और  ऊन की चादर जिस्म छुपाने के लिये इस्तेमाल की जाती थी।

वाज़ और ख़िताबत की शुरुआत

सबसे पहले वाज़ और ख़िताबत की शुरुआत भी आपने ही की। जब हज़रत आदम (अ.स.)  इस दुनिया से रुख़्सत हुऐ तो आपने अपनी क़ौम को जमा किया और उनके सामने वाज़ किया जिसमे आपने अल्लाह तआला की फ़रमांबरदारी और शैतान की नाफ़रमानी का हुक्म दिया और क़ाबील की औलाद से न मिलने की नसीहत की। इस तरह आपने बक़ायदा वाज़ करने की बुनियाद डाली।

अल्लाह तआला ने आपको “सिद्दिक़ियत” के लक़ब से नवाज़ा और आपको “सुआलेह” नबी के नाम से पुकारा। सप्ताह के तीन दिनों के लिए, इदरीस अपने लोगों को उपदेश देते थे और चार दिन वह पूरी तरह से भगवान की पूजा के लिए समर्पित करते थे ।

आपकी पैदाइश हज़रत आदम (अ.स.) के ज़माने में ही हो गई थी। आपने आदम(अ.स.) की ज़िन्दगी के तीन सौ आठ साल देखे।

नेक अमल में पहल

एक बार आपका दोस्त फ़रिश्ता आपके पास “वही” लेकर आया कि कुल “औलादे आदम” के बराबर आपके आमाल हैं। आपने सोचा मैं इससे बढ़कर  नेक आमाल करूँ तो आपने फ़रिश्ते से कहा कि “मलाकुल मौत” से कहो कि वह मेरी रूह क़ब्ज़ करने में जल्दी न करे ताकि मैं और नेक आमाल कर सकूँ।

इस फ़रिश्ते ने आपको परों पर बिठा कर चौथे आसमान पर पहुँचा दिया। वहाँ पहुँचे तो मलाकुल मौत को देखा।

फ़रिश्ते ने मलाकुल मौत से उनकी सिफारिश की-  मलाकुल मौत ने पूछा – वह कहाँ हैं? फ़रिश्ते ने जवाब दिया – मेरे बाज़ू पर बैठे हुए हैं।

मलाकुल मौत ने कहा-  “सुब्हानल्लाह” मुझे अभी हुक्म हुआ कि इदरीस (अ.स.) की रूह चौथे आसमान पर क़ब्ज़ करो। मैं इस फ़िक्र मे था कि वो ज़मीन पर हैं यह कैसे मुमकिन है कि मैं उनकी रूह चौथे आसमान पर क़ब्ज़ करूँ।

लिहाज़ा आपकी रूह चौथे आसमान पर क़ब्ज़ कर ली गई। इसी लिए अल्लाह  तआला ने सूरह मरियम में इरशाद फरमाया कि-  “हमने उन्हें बुलन्द मुक़ाम पर उठा लिया”।

कुछ उलमा-ए-किराम का मानना है कि उनकी रूह क़ब्ज़ नही की गई बल्कि वह ज़िन्दा ही आसमान पर हैं। लेकिन सही यही है कि उनकी चौथे आसमान पर रूह क़ब्ज़ की गई। (वल्लाहु आलम)

हज़रत इदरीस (अ.स) की नसीहत

  1. अल्लाह की बेपनाह नेमतों का शुक्रिया इंसानी ताकत से बाहर है।
  2. जो इल्म में कमाल और अमले सालेह का इच्छुक हो, उसको जहालत के असबाब और बद किरदारी के करीब भी नहीं जाना चाहिए।
  3. दुनिया की भलाई ‘हसरत’ है और बुराई नदामत।
  4. अल्लाह की याद और अमले सालेह के लिए खुलूसे नीयत शर्त है।
  5. न झूठी कस्में खाओ, न अल्लाह तआला के नाम को कस्मो के लिए तख्ता-ए-मश्क बनाओ और न झूठों को कस्मे खाने पर आमादा करो, क्योंकि ऐसा करने से तुम भी गुनाह में शरीक हो जाओगे।
  6. अपने बादशाहों की (जो कि पैग़म्बर की तरफ़ से शरीअत के हुक्मों के नाफ़िज करने के लिए मुकरर किए जाते हैं) इताअत करो और अपने बड़ों के सामने पस्त रहो और हर वक़्त अल्लाह की तारीफ़ में अपनी जुबान को तर रखो।
  7. हिकमत रूह की जिंदगी है।
  8. दूसरों की खुश ऐशी पर हसद न करो, इसलिए कि उनकी यह मसूर जिंदगी कुछ दिनों की है।
  9. जलील पेशो को अख्तिहर ना करो।
  10. जो जिन्दगी की जरूरतों की ज्यादा तालाब रखता हो वो कभी कानेअ नहीं रहा।

हज़रत इदरीस (अ.स) के वारिस

हज़रत इदरीस (अ.स) के बाद इनके बेटे मतूशलख़ इनके जानशीन बने। ये अपने बाप-दादा के तरीक़े पर चले। मतूशलख़ ने 135 साल की उम्र में अरबा बिन्ते अज़ाज़ील से शादी की जिनसे इनके बेटा लमक पैदा हुआ।

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