हजरत खालिद बिन वलीद-25
दौमतुल जंदल की जीत के बाद, हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) इराक के मोर्चे पर लौट आये। इस समय तक, फारसियों ने अधिक सेना बलों को इकठ्ठा कर लिया था
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दौमतुल जंदल की जीत के बाद, हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) इराक के मोर्चे पर लौट आये। इस समय तक, फारसियों ने अधिक सेना बलों को इकठ्ठा कर लिया था
दौमतुल जंदल, एक महान सामरिक महत्व का स्थान था। यह इराक और सीरिया की सीमा पर स्थित था, और मध्य अरब, इराक और सीरिया के मार्गों का मिलन स्थल था।
हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने जबरकान बिन बद्र की कमान के तहत अनबर में एक दस्ते छोड़ दिया, और खुद मुख्य मुस्लिम सेना के साथ आगे बढ़ गये।
हीरा की विजय के साथ, हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने वह उद्देश्य पूरा कर लिया था, जिसके लिए खलीफा हजरत अबू बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने उन्हें इराक़ भेजा था।
जब हजरत खालिद बिन वालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) को इराक में कारवाई करने के लिए कहा गया, तो उन्हें हीरा को विजय करने के लिए हजरत अबू बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू)…
वालजा की हार ने फारस साम्राज्य की नीव हिला दी थी। फारस सम्राट ने बहमान को आदेश दिया कि वो फारस साम्राज्य के अधीन अरबों के सेना के साथ को लेकर मुस्लिम…
मजार में फारसियों की हार के बाद, फारसी सम्राट अर्दशीर ने मुसलमानों के खिलाफ लड़ने के लिए दो और फारसी सेनाओं को इकट्ठा होने का आदेश दिया।
कज़िमा की लड़ाई जीतने के बाद, हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने कुछ दिनों के लिए अपने आदमियों को आराम दिया और फिर इराक में आगे बढ़ गये।
मुहर्रम, 12 हिजरी को हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू) यमामा से इराक़ के लिए निकले। खलीफा हजरत अबु बकर (रज़ी अल्लाहू अनहू) ने हजरत खालिद (रज़ी अल्लाहू अनहू)…
जब विश्व मंच पर इस्लाम का उदय हुआ, तब तत्कालीन विश्व पर दो शक्तियों का प्रभुत्व था, पूर्व में बीजान्टियम (रोमन साम्राज्य) और पश्चिम में फारस साम्राज्य।