हैज (माहवारी) का बयान 2

हैज के नहाने से फरागत के बाद औरत का खुशबू लगाना।

212: उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हमें किसी मरने वाले पर तीन दिन से ज्यादा गम करने की मनाही की जाती थी। मगर शौहर (के मरने) पर चार महीने दस दिन तक (गम का हुक्म था)। नीज यह भी हुक्म था कि इस दौरान न हम सुरमा लगायें, न खुशबू और न ही कोई रंगीन कपड़ा पहने। मगर जिस कपड़े का धागा बनावट से रंगा हुआ हो, अलबत्ता हैज से पाक होते वक्त यह इजाजत थी कि जब हैज का गुस्ल करे तो थोड़ी सी खुशबू इस्तेमाल कर ले। इसके अलावा जनाजों के साथ जाने की भी मनाही कर दी गयी थी।

फायदे: हमारे हिन्द और पाक में की ज्यादातर औरतें इस नबी के हुक्म को नजर अन्दाज कर देती हैं। हैज से फरागत के बाद घिन और नफरत को दूर करने के लिए खुशबू को जरूर इस्तेमाल करना चाहिए।

हैज के गुस्ल के वक्त बदन मलने का बयान।

213: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से बयान है एक औरत ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अपने गुस्ले हैज के बारे में पूछा? आपने उस के सामने गुस्ल की कैफियत बयान की (और) फरमाया कि कस्तूरी लगा हुआ रूई का एक टुकड़ा लेकर उससे पाकी कर, वह कहने लगी, कैसे पाकी करूँ? आपने फरमाया, सुबहान अल्लाह! पाकिजगी हासिल कर। आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा फरमाती हैं कि मैंने उस औरत को अपनी तरफ खींचा और उसे समझाया कि खून की जगह यानी शर्मगाह पर लगा ले।

फायदे: सही मुस्लिम में है कि औरत को अपने सर पर पानी डालकर खूब मलना चाहिए, ताकि पानी बालों की जड़ों तक पहुंच जाये। फिर अपने तमाम बदन पर पानी बहाये।

हैज के गुस्ल के वक्त बालों में कंघी करना।

214: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आपके आखरी हज में एहराम बांधा तो मैं उन लोगों में शामिल थी, जिन्होंने तमत्तो के हज की नियत की थी। और अपने साथ कुरबानी नहीं लाये थे ( इत्तेफाक से) मुझे हैज आ गया, और अरफा की रात तक पाक ना हुई। तब मैंने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! यह तो अरफा की रात आ गयी और मैंने तो उमरे का एहराम बांधा था (अब क्या करूं?)। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तुम अपना सर खोलकर कंघी करो और अपने उमरे के आमाल को खत्म कर दो। चूनांचे मैंने ऐसा ही किया और जब मैं हज से फारिग हो गयी तो आपने महसब की रात (मेरे भाई) अब्दुर्रहमान रज़ियल्लाह ‘अन्हु को हुक्म दिया तो वह मेरे, उस उमरे के बदले जिसमें मैंने एहराम बांधा था, मुझे तनईम के मकाम से दूसरा उमरा करा लाये।

हैज के गुस्ल के वक्त औरत का अपने बाल खोलना।

215: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से ही रिवायत है कि हम जुलहिज्जा के चांद के करीब हज को निकले तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो आदमी उमरे का एहराम बांधना चाहे, वह उमरे का एहराम बांध ले और अगर मैं खुद हदी (कुर्बानी का जानवर) न लाया होता तो उमरे का एहराम बांधता। इस पर कुछ लोगों ने उमरे का एहराम बांधा और कुछ ने हज का। उसके बाद आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने पूरी हदीस बयान की और अपने हैज का भी जिक्र किया और फरमाया कि आपने मेरे साथ मेरे भाई अब्दुर्रहमान रज़ियल्लाह ‘अन्हु को तनईम के मकाम तक भेजा। वहां से मैंने उमरे का एहराम बांधा और इन सब बातों में न कुरबानी लाजिम हुई, न रोजा रखना पड़ा और न ही सदका देना पड़ा।

फायदे: इस हदीस में हैज के गुस्ल के वक्त अपने बाल खोलने का भी बयान है। जिसे इबारत में कमी की वजह से हजफ कर दिया गया है। क्योंकि इसका बयान ऊपर हो चुका है।

हैज वाली औरत का नमाज को कजा न करना।

216: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से ही रिवायत है कि एक औरत ने उनसे पूछा कि क्या हमें पाकी के दिनों की नमाजें काफी हैं। हैज की नमाजों की कजा जरूरी नहीं? आइशा ने फरमाया: तू हरूरीया (खारजी) मालूम होती है, हमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाने में हैज आता तो आप हमें नमाज की कजा का हुक्म नहीं देते थे, या फरमाया कि हम कजा नहीं पढ़ती थी।

फायदे: इस मसले पर इत्तिफाक है। अलबत्ता चन्द ख्वारिज का मानना है कि हैज वाली औरत को फरागत के बाद छूटी हुई नमाजों की कजा देना चाहिए। शायद इसी लिए हजरत आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने सवाल करने वाली को हरूरीया कहा है। क्योंकि यह एक ऐसे मकाम की तरफ निसबत है, जहां खारजी इकट्ठे हुये थे।

हैजवाली औरत का दोनों ईदों में शामिल होना।

218: उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना है कि आजाद औरतें, पर्दा नशीन औरतें और हैज वाली औरतें (सब ईद के लिए) बाहर निकलें और मुसलमानों की अच्छी मजलिसों और दुआ में शामिल हों। मगर हैज वाली औरतें नमाज की जगह से अलग रहें, किसी ने पूछा कि हैज वाली औरतें भी शरीक हो? तो उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने जवाब दिया कि क्या हैज वाली औरतें अरफात और फलां फलां मकामात पर नहीं हाजिर होती?

हैज के दिनो के अलावा खाकी और जर्द रंग देखना।

219: उम्मे अतिय्या रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम मटियालापन और जर्दी को कुछ न समझते थे। यानी उसे हैज खयाल न करते थे।

फायदे: अगर खास दिनों में इस रंग का खून निकले तो उसे हैज ही समझा जायेगा, अगर दूसरे दिनों में देखा जाये तो उसे हैज न खयाल किया जाये।

इफाजा का चक्कर (तवाफ) लगाने के बाद हैज आना।

220: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है कि उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! (आपकी बीवी) सफिय्या को हैज आ गया है, आपने फरमाया, शायद वह हमें रोक रखेगी? क्या उसने तुम्हारे साथ तवाफे इफाजा नहीं किया? उन्होंने कहा तवाफ तो कर चुकी है, आपने फरमाया, तो फिर चलो (क्योंकि तवाफे विदा हैज वाली औरत के लिए जरूरी नहीं)।

फायदे: तवाफे इफाजा जुलहिज्जा की दसवीं तारीख को किया जाता है, यह फर्ज और हज का रूक्न है, अलबत्ता तवाफे विदा जो काबा से रूख्सत होते वक्त किया जाता है, वह हैज वाली औरत के लिए जरूरी नहीं है।

निफास (जच्चा) वाली औरत का जनाजा पढ़ना और उसका तरीका।

221: समुरा बिन जुन्दुब रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है कि एक औरत निफास के दौरान मर गयी तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसकी जनाजे की नमाज़ अदा की और जनाजा पढ़ते वक्त उसकी कमर के सामने खड़े हुए।

हैज वाली औरत का कपड़ा छू जाना।

222: मैमूना रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है कि जब वह हैज से होती और नमाज न पढ़ती तो भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सज्दागाह के पास लेटी रहती। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी चादर पर नमाज पढ़ते, जब सज्दा करते तो आपका कुछ कपड़ा उनसे छू जाता था।

फायदे: मालूम हुआ कि नमाज के बीच हैज वाली औरत से कपड़ा छू जाने या उसके बिस्तर की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ने में कोई हर्ज नहीं। (अस्सलात 517)

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