इल्म का बयान 2

Hadis 59

अनस रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक खत लिखा या लिखने का इरादा फरमाया। जब आपसे कहा गया कि वह लोग बगैर मुहर लगा खत नहीं पढ़ते तो आपने चांदी की एक अंगूठी बनवाई जिस पर “मुहम्मद रसूलुल्लाह” के अलफाज नक्श थे। हजरत अनस रज़ियल्लाह ‘अन्हु का बयान है कि (इसकी खुबसूरती मेरी नजर में बस गयी) गोया अब भी आपके हाथ में उसकी सफेदी को देख रहा हूँ।

फायदे: मालूम हुआ कि चांदी की अंगूठी इस्तेमाल करना जाइज है। (औनुलबारी 1/166)

Hadis 60

अबू वाकिद लैसी रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है कि एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में लोगों के साथ बैठे हुये थे, इतने में तीन आदमी आये। उनमें से दो तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आ गये और एक वापस चला गया। रावी कहता है कि वह दोनों कुछ देर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ठहरे रहे। उनमें से एक ने हलके में गुंजाईश देखी तो बैठ गया और दूसरा सबसे पीछे बैठ गया। तीसरा तो वापस जा ही चुका था। जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (तकरीर से) फारिग हुये तो फरमाया: “क्या मैं तुम्हें उन तीनों आदमियों का हाल न बताऊँ? उनमें से एक ने अल्लाह की तरफ रूजू किया तो अल्लाह ने भी उसे जगह दे दी और दूसरा शरमाया तो अल्लाह ने उससे शर्म की और तीसरे ने पीठ फेरी तो अल्लाह ने भी उससे मुंह मोड़ लिया।“

फायदे: इस हदीस में अल्लाह के लिए शर्म का सबूत मिलता है। बाज इल्म वालों ने इसकी तावील की है कि इससे मुराद रहम करना और किसी को अजाब न देना है, लेकिन तहकीक करने वाले अस्लाफ ने इस अन्दाज को पसन्द नहीं किया, बल्कि उनके नजदीक अल्लाह की खूबियों को ज्यों का त्यों माना जाये।

“कभी कभी वह आदमी जिसे हदीस पहुंचाई जाये, सुनने वाले से ज्यादा याद रखने वाला होता हैं”

61: अबू बकरा रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है कि एक दफा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने ऊंट पर बैठे हुये थे और एक आदमी उसकी नकेल थामे हुये था। आपने फरमाया यह कौन सा दिन है? लोग इस ख्याल से खामोश रहे कि शायद आप उसके असल नाम के अलावा कोई और नाम बतायेंगे। आपने फरमायाः क्या यह कुरबानी का दिन नहीं है? हमने अर्ज किया क्यों नहीं! फिर आपने फरमाया यह कौन सा महीना है? हम फिर इस ख्याल से चुप रहे कि शायद आप उसका कोई और नाम रखेंगे। आपने फरमाया, क्या यह जिलहिज्जा का महीना नहीं है? हमने कहा, क्यों नहीं! तब आपने फरमायाः “तुम्हारे खून, तुम्हारे माल और तुम्हारी इज्जतें एक दूसरे पर इस तरह हराम हैं जिस तरह कि तुम्हारे यहां इस शहर और इस महीने में इस दिन की हुरमत है। चाहिए कि जो आदमी यहां हाजिर है, वह गायब को यह खबर पहुंचा दे, इसलिए कि शायद हाजिर ऐसे आदमी को खबर दे जो इस बात को उससे ज्यादा याद रखे।”

फायदे: तकरीर की महफिल में हाजिर रहने वाले को चाहिए कि वह इल्म और दीन की बातें गैर मौजूद लोगों तक पहुंचाये। (अलइल्म 105)

Hadis 62

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इल्म और तकरीर के लिए खयाल रखना (रिआयत करना) ताकि लोग उकता न जायें।

बासठ: इब्ने मसऊद रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे परेशान होने (उकता जाने) के डर से हमें तकरीर व नसीहत करने के लिए वक्त और मौका महल का ख्याल रखते थे।

फायदे: मालूम हुआ कि तकरीर करने वालों को तकरीर और नसीहत के वक्त मौका और जगह का खयाल रखना चाहिए ताकि लोग उकता न जायें और न ही उनमें नफरत का जोश पैदा हो।

Hadis 63

अनस रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “ (दीन में) आसानी करो, सख्ती न करो और लोगों को खुशखबरी सुनाओ, उन्हें (डरा डराकर) नफरत करने वाला न बनाओ।

फायदे: मालूम हुआ कि दीनी मामलात में बहुत ज्यादा सख्ती नहीं करनी चाहिए। (अलअदब 6125)

अल्लाह जिसके साथ भलाई चाहता है, उसे दीन की समझ अता फरमाता है।

64: मुआविया रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते सुना है कि अल्लाह तआला जिसके साथ भलाई चाहता है, उसको दीन की समझ दे देता है और मैं तो सिर्फ बाटने वाला हूँ और देने वाला तो अल्लाह ही है और (इस्लाम की) यह जमाअत हमेशा अल्लाह के हुक्म पर कायम रहेगी, जो इसका मुखालिफ होगा, इनको नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा, यहां तक अल्लाह का हुक्म यानी कयामत आ जाये।

फायदे: दीन में (समझदारी) का तकाजा यह है कि कुरान व हदीस को शौक से पढ़ा जाये ताकि वह दीन के कामों में सही छान-बीन और असल और नकल के फर्क को समझने के काबिल हो जाये। (औनुलबारी, 1/206)

Share this:
error: Content is protected !!