28 सूरह अल क़सस हिंदी में पेज 1

सूरह अल क़सस में 88 आयतें हैं। यह सूरह पारा 20 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

सूरह का नाम आयत 25 के इस वाक्यांश से लिया गया है: “और अपना सारा वृत्तांत (अल क़सस) उसे सुनाया।”

सूरह अल क़सस हिंदी में | Surat Al-Qasas in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. ता-सीम्-मीम्
    ता सीन मीम
  2. तिल् क आयातुल किताबिल् – मुबीन
    (ऐ रसूल) ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें हैं।
  3. नत्लू अ़लै- क मिन् न बइ मूसा व फिरऔ-न बिल्हक्कि लिकौमिंय् – युअ्मिनून
    (जिसमें) हम तुम्हारें सामने मूसा और फिरौन का वाकि़या इमानदार लोगों के नफ़े के वास्ते ठीक ठीक बयान करते हैं।
  4. इन् – न फिरऔ-न अ़ला फिल्अर्जि व ज-अ-ल अह़्लहा शि-यअ़ंय् – यस्तजअिफु ताइ – फ़तम् मिन्हुम् युज़ब्बिहु अब्ना – अहुम् व यस्तह़्यी निसा – अहुम्, इन्नहू का-न मिनल् – मुफ़्सिदीन
    बेशक फिरौन ने (मिस्र की) सरज़मीन में बहुत सर उठाया था और उसने वहाँ के रहने वालों को कई गिरोह कर दिया था उनमें से एक गिरोह (बनी इसराइल) को आजिज़ कर रखा थ कि उनके बेटों को ज़बाह करवा देता था और उनकी औरतों (बेटियों) को जि़न्दा छोड़ देता था बेशक वह भी मुफ़सिदों में था।
  5. व नुरीदु अन् – नमुन्- न अलल्लज़ीनस्तुज़अिफू फिल्अर्जि व नज् अ – लहुम् अ – इम्मतंव्-व नज्अ़-लहुमुल्-वारिसीन
    और हम तो ये चाहते हैं कि जो लोग रुए ज़मीन में कमज़ोर कर दिए गए हैं उनपर एहसान करे और उन्हींको (लोगों का) पेशवा बनाएँ और उन्हीं को इस (सरज़मीन) का मालिक बनाएँ।
  6. व नुमक्कि – न लहुम् फिल् अर्जि व नुरि – य फिरऔं – न व हामा – न व जुनू – दहुमा मिन्हुम् मा कानू यहज़रून
    और उन्हीं को रुए ज़मीन पर पूरी क़़ुदरत अता करे और फिरौन और हामान और उन दोनों के लश्करों को उन्हीं कमज़ोरों के हाथ से वह चीज़ें दिखायें जिससे ये लोग डरते थे।
  7. व औहैना इला उम्मि मूसा अन् अरज़िईहि फ़-इज़ा खिफ्ति अ़लैहि फ़ अल्कीहि फ़िल्यम्मि व ला तख़ाफ़ी व ला तह्ज़नी इन्ना राद्दुहु इलैकि व जाअिलूहु मिनल् – मुर्सलीन
    और हमने मूसा की माँ के पास ये वही भेजी कि तुम उसको दूध पिला लो फिर जब उसकी निस्बत तुमको कोई ख़ौफ हो तो इसको (एक सन्दूक़ में रखकर) दरिया में डाल दो और (उस पर) तुम कुछ न डरना और न कुढ़ना (तुम इतमेनान रखो) हम उसको फिर तुम्हारे पास पहुँचा देगें और उसको (अपना) रसूल बनाएँगें।
  8. फ़ल्त-क़-तहू आलु फिरऔ-न लि-यकू-न लहुम् अदुव्व्ं-व ह-ज़नन्, इन्-न फ़िरऔ-न व हामा-न व जुनू – दहुमा कानू ख़ातिईन
    (ग़रज़ मूसा की माँ ने दरिया में डाल दिया) वह सन्दूक़ बहते बहते फिरौन के महल के पास आ लगा तो फिरौन के लोगों ने उसे उठा लिया ताकि (एक दिन यही) उनका दुशमन और उनके राज़ का बायस बने इसमें शक नहीं कि फिरौन और हामान उन दोनों के लशकर ग़लती पर थे।
  9. व क़ालतिम्-र-अतु फ़िरऔ़-न कुर्रतु ऐनिल्-ली व ल-क, ला तक्तुलूहु अ़सा अंय्यन्फ़-अ़ना औ नत्तखि-ज़हू व – लदंव् – व हुम्ला यश्अुरून
    और (जब मूसा महल में लाए गए तो) फिरौन की बीबी (आसिया अपने शौहर से) बोली कि ये मेरी और तुम्हारी (दोनों की) आँखों की ठन्डक है तो तुम लोग इसको क़त्ल न करो क्या अजब है कि ये हमको नफ़ा पहुँचाए या हम उसे ले पालक ही बना लें और उन्हें (उसी के हाथ से बर्बाद होने की) ख़बर न थी।
  10. व अस्ब – ह फुआदु उम्मि मूसा फ़ारिगन्, इन् कादत् लतुब्दी बिही लौ ला अर्र-बत्ना अ़ला क़ल्बिहा लि-तकू न मिनल्-मुअ्मिनीन
    इधर तो ये हो रहा था और (उधर) मूसा की माँ का दिल ऐसा बेचैन हो गया कि अगर हम उसके दिल को मज़बूत कर देते तो क़रीब था कि मूसा का हाल ज़ाहिर कर देती (और हमने इसीलिए ढारस दी) ताकि वह (हमारे वायदे का) यक़ीन रखे।
  11. व कालत् लिउख़्तिही कुस्सीहि फ – बसुरत् बिही अ़न् जुनुबिंव् – व हुम्ला यश्अुरून
    और मूसा की माँ ने (दरिया में डालते वक़्त) उनकी बहन (कुलसूम) से कहा कि तुम इसके पीछे पीछे (अलग) चली जाओ तो वह मूसा को दूर से देखती रही और उन लोगो को उसकी ख़बर भी न हुयी।
  12. व हर्रम्ना अ़लैहिल्- मराज़ि-अ मिन् क़ब्लु फ़क़ालत् हल् अदुल्लुकुम् अ़ला अहिल बैतिंय् – यक्फुलूनहू लकुम् व हुम् लहू नासिहून
    और हमने मूसा पर पहले ही से और दाईयों (के दूध) को हराम कर दिया था (कि किसी की छाती से मुँह न लगाया) तब मूसा की बहन बोली भला मै तुम्हें एक घराने का पता बताऊ कि वह तुम्हारी ख़ातिर इस बच्चे की परवरिश कर देंगे और वह यक़ीनन इसके खैरख़्वाह होगे।
  13. फ़- रदद्नाहु इला उम्मिही कै तकर्-र ऐनुहा व ला तह्ज़-न व लितअ्-ल-म अन् – न वअ्दल्लाहि हक़्कुंव् – व लाकिन् – न अक्स- रहुम्ला यअ्लमून
    ग़रज़ (इस तरकीब से) हमने मूसा को उसकी माँ तक फिर पहुँचा दिया ताकि उसकी आँख ठन्डी हो जाए और रंज न करे और ताकि समझ ले अल्लाह का वायदा बिल्कुल ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं।
  14. व लम्मा ब-ल-ग़ अशुद् – दहू वस्तवा आतैनाहु हुक्मंव् – व अिल्मन्, व कज़ालि- क नज्ज़िल् मुह्सिनीन
    और जब मूसा अपनी जवानी को पहुँचे और (हाथ पाँव निकाल के) दुरुस्त हो गए तो हमने उनको हिकमत और इल्म अता किया और नेकी करने वालों को हम यूँ जज़ाए खै़र देते हैं।
  15. व द – ख़लल् – मदी – न त अ़ला हीनि ग़फ़्लतिम् मिन् अह्लिहा फ़ व-ज- द फीहा रजुलैनि यक्ततिलानि, हाज़ा मिन् शी – अ़तिही व हाज़ा मिन् अ़दुव्विही फ़स्तग़ा सहुल्लज़ी मिन् शी – अ़तिही अलल्लज़ी मिन् अदुव्विही फ-व-क-ज़हू मूसा फ़- कज़ा अ़लैहि का – ल हाज़ा मिन् अ- मलिश् – शैतानि, इन्नहू अ़दुव्वुम् – मुज़िल्लुम् – मुबीन
    और एक दिन इत्तिफाक़न मूसा शहर में ऐसे वक़्त आए कि वहाँ के लोग (नींद की) ग़फलत में पडे़ हुए थे तो देखा कि वहाँ दो आदमी आपस में लड़े मरते हैं ये (एक) तो उनकी क़ौम (बनी इसराइल) में का है और वह (दूसरा) उनके दुशमन की क़ौम (कि़ब्ती) का है तो जो शख़्स उनकी क़ौम का था उसने उस शख़्स से जो उनके दुशमनों में था (ग़लबा हासिल करने के लिए) मूसा से मदद माँगी ये सुनते ही मूसा ने उसे एक घूसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया फिर (ख़्याल करके) कहने लगे ये शैतान का काम था इसमें शक नहीं कि वह दुशमन और खुल्लम खुल्ला गुमराह करने वाला है।
  16. का-ल रब्बि इन्नी ज़लम्तु नफ्सी फ़ग्फ़िर् ली फ़-ग़-फ़-र लहू, इन्नहू हुवल ग़फूरूर्रहीम
    (फिर बारगाहे अल्लाह में) अर्ज़ की परवरदिगार बेशक मैने अपने ऊपर आप ज़़ुल्म किया (कि इस शहर में आया) तो तू मुझे (दुश्मनो से) पोशीदा रख-ग़रज़ अल्लाह ने उन्हें पोशीदा रखा (इसमें तो शक नहीं कि वह बड़ा पोशीदा रखने वाला मेहरबान है)।
  17. का-ल रब्बि बिमा अन् अम्-त अलय्-य फ-लन् अकू-न ज़हीरल्-लिल्मुज्रिमीन
    मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार चूँकि तूने मुझ पर एहसान किया है मै भी आइन्दा गुनाहगारों का हरगिज़ मदद गार न बनूगाँ।
  18. फ- अस्ब ह फिल्मदी नति खाइफ़ंय्य तरक़्क़बु फ़ इज़ल् लजिस्तन्स – रहू बिल्अम्सि यस्तस्रिखुहू, का – ल लहू मूसा इन्न – क ल- ग़विय्युम् – मुबीन
    ग़रज़ (रात तो जो त्यों गुज़री) सुबह को उम्मीदो बीम की हालत में मूसा शहर में गए तो क्या देखते हैं कि वही शख़्स जिसने कल उनसे मदद माँगी थी उनसे (फिर) फरियाद कर रहा है-मूसा ने उससे कहा बेशक तू यक़ीनी खुल्लम खुल्ला गुमराह है।
  19. फ़- लम्मा अन् अरा- द अंय्यब्ति-श बिल्लज़ी हु – व अ़दुव्वुल् – लहुमा का-ल या मूसा अतुरीदु अन् तक्तु-लनी कमा क़तल्-त नफ़्सम्-बिलअम्सि इन् तुरीदु इल्ला अन्-तकू-न जब्बारन् फिल्अर्जि व मा तुरीदु अन् तकू-न मिनल्- मुस्लिहीन
    ग़रज़ जब मूसा ने चाहा कि उस शख़्स पर जो दोनों का दुश्मन था (छुड़ाने के लिए) हाथ बढ़ाएँ तो कि़ब्ती कहने लगा कि ऐ मूसा जिस तरह तुमने कल एक आदमी को मार डाला (उसी तरह) मुझे भी मार डालना चाहते हो तो तुम बस ये चाहते हो कि रुए ज़मीन में सरकश बन कर रहो और मसलह (क़ौम) बनकर रहना नहीं चाहते।
  20. व जा-अ रजुलुम् – मिन् अक्सल् मदी – नति यसआ, का-ल या मूसा इन्नल-म-ल-अ यअ्तमिरू-न बि-क लि- यक्तुलू-क फख़्रुज् इन्नी ल- क मिनन्नासिहीन
    और एक शख़्स शहर के उस किनारे से डराता हुआ आया और (मूसा से) कहने लगा मूसा (तुम ये यक़ीन जानो कि शहर के) बड़े बड़े आदमी तुम्हारे आदमी तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुमको कत्ल कर डालें तो तुम (शहर से) निकल भागो।
  21. फ़-ख-र-ज मिन्हा ख़ाइफंय्-य तरक़्क़बु का-ल रब्बि नज्जिनी मिनल् कौमिज़्ज़ालिमीन *
    मै तुमसे ख़ैरख़्वाहाना (भलाइ के लिए) कहता हूँ ग़रज़ मूसा वहाँ से उम्मीद व बीम की हालत में निकल खडे़ हुए और (बारगाहे अल्लाह में) अर्ज़ की परवरदिगार मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से नजात दे।
  22. व लम्मा तवज्ज-ह तिल्का-अ मद्-य-न का-ल अ़सा रब्बी अंय्यह्दि-यनी सवा-अस्सबील
    और जब मदियन की तरफ़ रुख़ किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधे रास्ता दिखा दे।

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