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क़र्ज़ अदा करने की दुआ
अल्लाहुम-मक्फ़िनी बिहलालि-क अन हरामि-क व अग्नि नी बि फ़ज़िल-क अम-मन सिवा-कo
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! हराम से बचाते हुए अपने हलाल के ज़रिए तू मेरी किफ़ायत फ़रमा और अपने फ़ज़्ल के ज़रिए तू मुझे अपने गैर से बे-नियाज़ फ़रमा दे। -मिश्कात
ये कलिमे हुजूरे अपदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमन ने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्ह को सिखाये थे। जब उनसे एक आदमी ने अपनी माली मजबूरियों का ज़िक्र किया, तो फ़रमाया, क्या मैं तुमको वे कलिमे न बता दूं, जो मुझे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सिखाये थे, अगर बड़े पहाड़ के बराबर भी तुम पर क़र्ज़ होगा, तो अल्लाह तआला अदा फ़रमा देंगे, इसके बाद यही दुआ बतायी, जो ऊपर लिखी है। -तिर्मिजी
क़र्ज़ अदा करने की दूसरी दुआ
हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि एक शख्स ने अर्ज़ किया कि ऐ । अल्लाह के रसूल! मुझे बड़ी चिन्ताओं ने और बड़ेबड़े क़ों ने पकड़ लिया है। प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, क्या तुम को मैं ऐसे लफ़्ज़ न बता दूं, जिनको कहने से अल्लाह तुम्हारी चिन्ताओं को दूर कर देगा और तुम्हारे क़र्ज़ को अदा फ़रमा देगा। उस आदमी ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! ज़रूर इर्शाद फ़रमाएं। आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि सुबह व शाम यह पढ़ा करो-
अल्लाहुम-म इन्नी अऊजु बि-क मिनल हम्मि वल हुज्नि व अऊज़ बि-क मिनल अज्जि वल कस्लि व अऊजु बि-क मिनल बुख़्लि वल जुन्नि व अऊज़ुबि-क मिन ग़-ल-ब-तिद्दैनि व क़हर्रिजालि०
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह चाहता हूं फ़िक्रमंदी से और रंज से और तेरी पनाह चाहता हूं बेबस हो जाने से और सुस्ती के आने से और तेरी पनाह चाहता हूं कंजूसी से और बुज़दिली से और तेरी पनाह चाहता हं क़र्ज़ के ग़लबे से और लोगों की ज़ोरावरी से।
उस आदमी का कहना है कि मैंने उस पर अमल किया तो अल्लाह पाक ने मेरी चिंता (भी) दूर कर दी और क़र्ज़ भी अदा फ़रमा दिया। -अबू दाऊद
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