दुआ जब कोई परेशानी हो
अल्लाहुम-म रहम-त-क अर्जू फ़ला तकिल्नी इला नफ़्सी तर्फ़-त ऐ निंव व अस्लिह शानी कुल्लहू ला इला-ह इल्ला अन-त०
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! मैं तेरी रहमत की उम्मीद करता हूं, तो मुझे पल भर भी मेरे सुपुर्द न कर और मेरा सारा हाल दुरुस्त फ़रमा दे, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। -हिस्न
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हस्बुनल्लाहु व नि अमल वकीलु०
तर्जुमा- अल्लाह हमें काफ़ी है और वह बेहतरीन कारसाज़ है।
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अल्लाहु अल्लाहु रब्बी ला- उशरिकु बिही शैआ।
तर्जुमा- अल्लाह मेरा रब है, मैं उसके साथ किसी भी चीज़ को शरीक नहीं बनाता। –हिस्न (अबूदाऊद)
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या हय्यु या क़य्यूमु बिरह्मति-क अस्तग़ीसु०
तर्जुमा- ऐ ज़िंदा और क़ायम रखने वाले ! मैं तेरी रहमत के वास्ते से फ़रियाद करता हूं। -मुस्तदरक हाकिम
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ला इला-ह इल्ला अन-त सुब्हान-क इन्नी कुन्तु मिनज़्ज़ालिमीन०
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, तू पाक है। बेशक मैं (गुनाह कर के) अपनी जान पर जुल्म करने वालों में से हूं।
कुरआन शरीफ़ में है कि इन लफ़्ज़ों के ज़रिए हज़रत यूनुस अलै. ने मछली के पेट में अल्लाह को पुकारा था और हदीस शरीफ़ में है कि हज़रत रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि जब कभी कोई मुसलमान इन लफ़्ज़ों के ज़रिए अल्लाह तआला से दुआ करे, तो अल्लाह उसकी दुआ ज़रूर कुबूल फ़रमाएंगे। -तिर्मिज़ी वगैरह
कुछ हदीसों में इसको इस्मे आज़म बताया गया है। -हिस्न
एक हदीस में इर्शाद है कि ला हौ ल व ला कू-व-त इल्ला बिल्लाह 44 मर्जो की दुआ है, जिनमें सब से कम दर्जे का रंज है। -बैहिक़ी
मतलब यह है कि यह कलिमा बड़े-बड़े दुख-दर्द के लिए नफ़ा देने वाला और फ़ायदेमंद है और रंज व ग़म की तो इसके सामने कोई हक़ीक़त ही नहीं। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि जो शख़्स अस्तग़फ़ार में लगा रहे, अल्लाह उस के लिए हर तंगी से निकलने का रास्ता और हर ग़म से छुटकारे का ज़रिया बना देंगे और उसे ऐसी जगह से रोज़ी देंगे, जहां से ध्यान भी न होगा। -मिश्कात (अहमद)
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