मरीज़ की बीमार पुर्सी पर
ला बअ-स तहूरुन इन्शाअल्लाह०
तर्जुमा- कुछ हर्ज नहीं इन्शा अल्लाह! यह बीमारी तुम को गुनाहों से पाक करेगी। -बुख़ारी
अस् अलुल्ला-हल अज़ी-म रब्बल अर्शिल अज़ीमि अंय्यश्फ़ि-य-क०
तर्जुमा- मैं अल्लाह से सवाल करता हूं, जो बड़ा है और बड़े अर्श का रब है कि तुझे शिफ़ा दे।
हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है कि सात मर्तबा उस के पढ़ने से मरीज़ को शिफ़ा होगी, हां अगर उसकी मौत ही आ गयी हो, तो दूसरी बात है। -मिश्कात
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजि-ऊन० अल्लाहुम-म अजिर्नी फ़ी मुसीबति व अख्लिफ़ ली खैरम मिन्हा०
तर्जुमा- बेशक हम अल्लाह ही के लिए हैं और हम अल्लाह ही की तरफ़ लौटने वाले हैं ऐ अल्लाह ! मेरी मुसीबत में अज्र दे और उसके बदले मुझे इस से अच्छा बदला इनायत कर। -मुस्लिम
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