सलाम का जवाब
व अलैकुमुस्सालामु व रहमतुल्लाहिo
तर्जुमा- और तुम पर (भी) सलामती और अल्लाह की रहमत हो।
अगर लफ़्ज़ व रहमतुल्लाहि न बढ़ाया जाए तो सलाम और सलाम का जवाब अदा हो जाता है, मगर जब मुनासिब लफ़्ज़ बढ़ा दिए जाएं तो सवाब बढ़ जाएगा।
एक बार एक शख़्स रसूल सल्ल. के पास आया और उसने अस्सलामु अलैकुम कहा। आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस का जवाब दिया और फ़रमाया, इस को दस नेकियां (सवाब में) मिलीं।
फिर दसरा शख्स आया, उस ने अस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहि कहा। आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाब देकर फ़रमाया, इस को बीस नेकियां मिलीं।
फिर एक शख्स आया और उसने अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व ब-र-कातुहू कहा। प्यारे नबी सल्ल. ने उसका जवाब देकर फ़रमाया, इस को तीस नेकियां मिलीं।
फ़िर चौथा शख़्स आया, उसने कहा, अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व ब-र-कातुहू व मरिफ़-र-तुहू । उस का जवाब देकर आपने इर्शाद फ़रमाया कि इस को चालीस नेकियां मिलीं।
फ़िर एक उसूल के तौर पर इर्शाद फ़रमाया कि इसी तरह फ़ज़ाइल बढ़ते हैं।-अबू दाऊद, व मिश्कात
फ़ायदा- सलाम करने वाला जितने लफ़्ज़ कहे, कम से कम उतने लफ़्ज़ों में जवाब देना चाहिए और अगर उसके लफ़्ज़ों से ज़्यादा दुआ का इज़ाफ़ा कर दें, तो यह बहुत ही बेहतर है। अल्लाह तआला का इर्शाद है
‘फ़हय्यु बि अहस-न मिन्हा औ रुद् दूहा’
तर्जुमा- सो तुम सलाम का जवाब दो उस से ज्यादा अच्छे से, या कम से कम उतना ही लौटा दो।
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