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‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ कहे यानी ‘शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से, जो बड़ा मेहरबान निहायत ही रहम वाला है।’
कुछ हदीसों में आया है कि उस का वुजू ही नहीं, जिसने बिस्मिल्लाह न पढ़ी हो। -मिश्कात
1. हदीस शरीफ में वुजू के शुरू में अल्लाह का नाम लेना आया है, उस के लफ़्ज़ नहीं आए। कुछ बुजुर्गों ने फ़रमाया है कि बिस्मिल्लाह पढ़ ले।
वुजू के दर्मियान की दुआ
वुजू के दर्मियान यह दुआ पढ़ें

अल्लाहुम-मरिफ़र ली जंबी व वस्सि-अली फ़ी दारी व बारिक ली फ़ी रिज़्क़ी।
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे (क़ब्र के) घर को फैला और मेरीरोज़ी में बरकत दे। -हिस्न (नसई)
जब वुजू कर चुके तो आसमान की तरफ़ मुंह करके यह दुआ पढ़ें-

अशहदुअल्ला इला-ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरी-क लहू व अशहदु अन-न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलु हू।
तर्जुमा- मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह तंहा है, उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं।
इस दुआ को वुजू के बाद पढ़ने से पढ़ने वाले के लिए जन्नत के आठों दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, जिस दरवाज़े से चाहे दाखिल हो। -मिश्कात
कुछ रिवायतों में इस को वुजू के बाद तीन बार पढ़ना आया है। -हिस्ने हसीन

अल्लाहुम-मज अल्नी मिनत्तव्वाबीन वज-अल-नी मिनल मु-त-तहिरीन।
तर्जुमा- ऐ अल्लाह ! मुझे बहुत तौबा करने वालों में और बहुत पाक रहने वालों में शामिल फ़रमा। -हिस्न

सुब्हान-क-ल्लाहुम-म व बिहम्दि-क अश्हदु अल्लाइला-ह इल्ला अन-त अस्तरिफ़रु-क व अतूबु इलै-क
तर्जुमा- ऐ अल्लाह! तू पाक है और मैं तेरी तारीफ़ बयान करता हूं। मैं गवाही देता हूं कि सिर्फ़ तू ही माबूद है और मैं तुझ से मरिफ़रत चाहता हूं और तेरे सामने तौबा करता हूं। -हिस्न (मुस्तद्रक)
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