जब सफ़र से वापस होने लगे, तो सवारी पर बैठ कर सवारी की दुआ पढ़ने के बाद वह दुआ पढ़े, जो सफ़र को रवाना होते वक़्त पढ़ी थी, यानी ‘अल्लाहुम-म- इन्ना नस् अलु-क फ़ी स-फ़-रिना हाजल बिर-र वत्तक्वा‘ आखिर तक और जब रवाना हो जाए तो सफ़र की दूसरी दुआओं और मस्तून आदाब का ख्याल रखते हुए हर बुलंदी पर अल्लाहु अकबर तीन बार कहे और फिर यह पढ़े
ला इला-ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरी-क लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु व हु-व अला कुल्लि शैइन क़दीर आइबू-न ताइबू-न आबिदू-न साजिदू-न लिरब्बिना हामिदून स द-क़ल्लाहु वअ-द हू व न-स-र अब्दहू व ह-ज़ मल अहज़ाब वहद हू०
तर्जुमा-कोई माबूद नहीं अल्लाह के सिवा, वह तंहा है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिए मुल्क है और उसी के लिए हम्द है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है, हम लौटने वाले हैं, तौबा करने वाले हैं, सज्दा करने वाले हैं, अपने रब की हम्द करने वाले हैं, अल्लाह ने अपना वायदा सच्चा कर दिया अपने बन्दे की मदद की और मुख़ालिफ़ फ़ौज को हराया।-मिश्कात
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