हजरत बिलाल (रजि.)  इब्ने रबाह

हजरत बिलाल (रजि.) इब्ने रबाह

एक आदमी रात में एक गली से गुजर रहा था। उसे कहीं से कराहने की आवाज सुनाई दी। वह उस घर पहुंचे जहां एक नीग्रो (दक्षिण अफ्रीकी आदिवासी) चक्की चला रहा था। पीसते समय उसके मुंह से एक कराह निकल रही है। वह व्यक्ति इसका कारण जानना चाहता था।नीग्रो ने बताया कि वह बंधुआ मजदूर है। मालिक दिन भर बहुत काम करता है, फ़िर भी रात में उसे चक्की पर बैठाकर अनाज पीसता है।

राहगीर ने कहा, मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि तुम्हें मुक्त करा सकूं। लेकिन मैं आपकी जगह चक्की जरूर चला सकता हूं। इसके बाद नीग्रो सो गया और राहगीर सुबह तक चक्की चलाता रहा। यह सिलसिला कई रातों तक चला। एक दिन नीग्रो ने पूछा, तुम कौन हो? तब राहगीर ने कहा, मैं अल्लाह का नबी मुहम्मद (सल्ल.) हूं। नीग्रो बहुत प्रभावित हुआ और बाद में पैगंबर का भक्त बन गया। उस नीग्रो का नाम बिलाल (रजि.)  था।

यह रंगभेद के खिलाफ इस्लाम का पहला सन्देश था। वो भी आज से 14 सदी पहले। जब पूरा अरब अशिक्षा के अँधेरे में था। लेकिन लोगों को ऊंच-नीच, रंगभेद की दुनिया में एक व्यक्ति का उसके विरोध में खड़े होना, रास नहीं रहा था।

जन्म और प्रारंभिक जीवन:-

बिलाल (रजि.)  इब्न रबाह का जन्म मक्का में हेजाज में 580 ईस्वी में हुआ था उनके पिता बानू जुमाह राबाह वंश के एक अरब दास थे जबकि उनकी माँ का नाम हमाम था। गुलामी में पैदा होने के कारण, बिलाल (रजि.)  के पास अपने स्वामी के लिए काम करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। कड़ी मेहनत से बिलाल (रजि.)  की पहचान एक अच्छे गुलाम के रूप में हुई।

बिलाल (रजि.) की शक्ल:-

बिलाल (रजि.)  एक सुंदर, लम्बे और प्रभावशाली कद काठी, गहरे भूरे रंग की चमकदार आंखों वाले, शानदार नाक और उनकी चमकदार काली त्वचा घुंघराले बालों वाले थे। उनकी आवाज गूंजती, गहरी और मधुर थी। उनके दाढ़ी भी थी। दोनों गाल पतले थे।

इस्लाम में रूपांतरण:-

जब मुहम्मद ने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की और इस्लाम का प्रचार करना शुरू किया तो बिलाल (रजि.)  ने मूर्ति पूजा का त्याग कर किया।

बिलाल (रजि.) का उत्पीड़न:-

अपने इस्लाम विश्वास को घोषित करने के बाद बिलाल (रजि.)  को मार पड़ी। गुलाम बिलाल (रजि.)  के मालिक उमय्या इब्न खलफ को जब पता चला तो वह बिलाल (रजि.)  को प्रताड़ित करने लगा। अबू जहल के कहने पर उमय्या ने बिलाल (रजि.)  को मजबूर किया और बच्चों के साथ उसका मजाक उड़ाते हुए मक्का के आसपास घसीटा। बिलाल (रजि.)  ने इस्लाम त्यागने से इनकार कर दिया। बिलाल (रजि.)  के इंकार करने पर उमैय्या ने आदेश दिया कि बिलाल (रजि.)  को मार-मार कर भगाया जाए। गर्म रेत पर चमकते सूरज के नीचे बिलाल (रजि.)  को लिटाया जाता, फिर दर्द को बढ़ाने के लिए उसके शरीर पर भारी गर्म पत्थर रखे जाते। ताकि उनके जिस्म का नीचे का हिस्सा गर्म रेत के कारण जले, और ऊपरी हिस्सा गर्म पत्थर से जले। और हालत यह थी कि भारी पत्थर के कारण वह हिल भी नहीं सकते थे।

बिलाल (रजि.) की मुक्ति:-

बिलाल (रजि.)  के उत्पीड़न की खबर मुहम्मद के कुछ साथियों तक पहुंची, जिन्होंने पैगंबर को सूचित किया। मुहम्मद ने अबू बक्र को बिलाल (रजि.)  की मुक्ति के लिए बातचीत करने के लिए भेजा, जिसने उसे खरीदा लिया।

मदीना में बिलाल (रजि.) :-

मक्का में हुजूर (सल्ल.) को तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाने लगा। आखिरकार उन्होंने शहर छोड़कर मदीना जाने का फैसला किया। जब लोगों ने इस्लाम की शांति और न्याय के झंडे तले खुद को राहत महसूस की। फिर हुजूर (सल्ल.) के नेतृत्व में मक्का को जीत लिया गया। मदीना के नवगठित इस्लामिक राज्य में, बिलाल (रजि.)  मुस्लिम समाज का एक प्रमुख सदस्य बन गया था जिसने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

हुजूर (सल्ल.) अपनी मीठी-मीठी बातों और व्यवहार से लोगों का दिल जीत लेते थे। जब उन्होंने कहा कि अल्लाह के लिये रंग और नस्ल का कोई अस्तित्व नहीं है। सभी इंसान हैं, इसलिए लोगों के मन से यह भ्रम निकल गया कि वे अच्छी जाति से हैं। सबसे सम्मानित माने जाने वाले अरब परिवारों के लोग भी अपनी बेटियों की शादी उसी नीग्रो हज़रत बिलाल (रजि.) से करने के लिए उत्सुक थे। इस्लाम के दूसरे खलीफा, हज़रत उमर फारूक (रजि.),  बिलाल (रजि.) को देखते ही तुरंत खड़े हो जाते थे। कहते, हमारे बड़े, हमारे सरदार आ गए।

मुअज्ज़िन:-

जब हुज़ूर (सल्ल.) ने हज़रत बिलाल (रजि) को खाना-ए-काबा (सबसे पवित्र स्थान) पर अज़ान बुलाने के लिए कहा, तो कुछ अभिमानी अरब चिल्लाए, आह! यह बुरा है, यह काला गुलाम अज़ान करने के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है। लेकिन हुजूर डटे रहे। आखिर हजरत बिलाल (रजि.)  पहली बार अज़ान कहकर इतिहास में अमर हो गए। मुहम्मद ने सबसे पहले बिलाल (रजि.)  को मुअज्ज़िन चुना। दुनिया भर की अधिकांश मस्जिदों में सुन्नी परंपरा के अनुसार अज़ान पढ़ी जाती है।

अज़ान का इतिहास:-

जब मदीना में सामूहिक नमाज़ के लिए मस्जिदें बनाई गईं, तो ज़रूरत महसूस की गई कि कैसे लोगों को नमाज़ के लिए आमंत्रित किया जाए, उन्हें कैसे सूचित किया जाए कि यह नमाज़ का समय हो गया है। जब मोहम्मद साहब ने इस बारे में अपने साथियों से सलाह ली तो सबने अलग-अलग राय दी। किसी ने कहा कि नमाज के वक्त झंडा फहराना चाहिए। किसी ने सुझाव दिया कि आग को ऊंचे स्थान पर जलाना चाहिए। बिगुल बजाना और घंटियाँ बजाना भी प्रस्तावित था, लेकिन ये सभी तरीके मुहम्मद को पसंद नहीं आए।

रिवायत है कि उसी रात एक अंसारी सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने सपने में देखा कि किसी ने उन्हें अज़ान और इक़ामत के शब्द सिखाए हैं। उन्होंने सुबह पैगंबर की सेवा में शामिल होकर अपना सपना बताया, और उन्हें यह तरीका पसंद आया। 

पैगंबर ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद से कहा कि आप हज़रत बिलाल (रजि.)  को इन शब्दों में अज़ान सुनाने का निर्देश दें, उनकी आवाज़ तेज़ है, इसलिए वह हर नमाज़ के लिए इसी तरह अज़ान देंगे। इस तरह हज़रत बिलाल (रजि.)  ने इस्लाम की पहली अज़ान पढ़ी।

आइए पूरी अज़ान के मतलब पर एक नजर डालते हैं।

अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर

(अल्लाह बहुत बड़ा है, अल्लाह बहुत बड़ा है)

अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर 

(अल्लाह बहुत बड़ा है, अल्लाह बहुत बड़ा है)

अश्हदु अल-ला इ ला-ह इल्लल्लाह 

(मैं गवाही देता हूं की अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं) 

अश्हदु अल-ला इ ला-ह इल्लल्लाह

(मैं गवाही देता हूं की अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं) 

अश्हदु अन-न मुहम्मदर-रसू-लुल्लाह

(मैं गवाही देता हूं की हज़रत मुहम्मद {सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह के रसूल हैं) 

अश्हदु अन-न मुहम्मदर-रसू-लुल्लाह

(मैं गवाही देता हूं की हज़रत मुहम्मद [सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम] अल्लाह के रसूल हैं) 

हय-य अलस्सला:

(आओ नमाज़ पढ़ने के लिए)

हय-य अलस्सला:

(आओ नमाज़ पढ़ने के लिए)

हय-य अलल् फलाह

(आओ निजात पाने के लिए)

हय-य अलल् फ़लाह

(आओ निजात पाने के लिए)

अस्सलातु खैरुम मिनन्नौम (नमाज़ नींद से बेहतर है)

अस्सलातु खैरुम मिनन्नौम (नमाज़ नींद से बेहतर है)

(केवल फ़ज्र{सुबह} की अज़ान में)

क़द क़ा-म-तिस्सलात (नमाज़ [की जमाअत] खड़ी हो गयी)

क़द का-म-तिस्सलात (नमाज़ [की जमाअत] खड़ी हो गयी)

(जमाअत से पहले तक्बीर में)

अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर

(अल्लाह बहुत बड़ा है, अल्लाह बहुत बड़ा है)

ला इला-ह इल्लल्लाह

(अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं)

ख़ज़ाना:-

मदीना के इस्लामी समुदाय में बिलाल (रजि.)  प्रमुखता से उभरे, क्योंकि पैगंबर-ए-आज़म ने आपको अपना खजांची मुकर्रर किया था। इस प्रकार, बिलाल (रजि.)  ने विधवाओं, अनाथों और अन्य लोगों को धन वितरित किया।

मुहम्मद के काल में सैन्य अभियान:-

उन्होंने बद्र की लड़ाई में भाग लिया। इस  लड़ाई में मुसलमानों ने अपनी सेना से तीन गुनी बड़ी सेना को पराजित किया था।

मौत:-

यह माना जाता है कि उन्हें दमिश्क के बाब अल-सगीर कब्रिस्तान में दफन किया गया था। हालांकि, अम्मान, जॉर्डन में अल-रबहिया नामक एक छोटे से गांव के पास, बिलाल (रजि.)  का दफन माना जाने वाला एक और निर्माण मौजूद है।

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