ईदों का बयान

ईद के दिन बरछों और ढ़ालों से जिहादी मश्क करना।

527: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास तशरीफ लाये। उस वक्त मेरे यहां दो लड़कियां बैठी हुई बुआस की जंग के गीत गा रही थी। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुंह फेर कर लेट गये। इतने में अबू बकर रज़ियल्लाहु ‘अन्हु आये तो उन्होंने मुझे डांटकर कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने यह शैतानी आवाजें ? इस पर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी तरफ मुंह करके फरमाया, उन्हें छोड़ दो, फिर जब अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु ‘’अन्हु चले गये तो मैंने उन लड़कियों को इशारा किया तो वह चली गई।

फायदे : इस रिवायत के आखिर में है कि यह वाक्या ईद के दिन हुआ। जबकि हब्शी मस्जिद में बरछियों और ढ़ालों से जिहाद की मश्कों में लगे थे। यह हदीस गाने बजाने के लिए दलील नहीं है, क्योंकि एक रिवायत में हजरत आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने सराहत की है कि वह दोनों गाने वाली कलाकार न थी। सिर्फ आम लड़कियां थी, जो ईद के दिन खुशी जाहिर कर रही थी। (औनुलबारी, 2/72)

ईदुलफित्र के दिन (नमाज़ के लिए) निकलने से पहले कुछ खाना।

528: अनस रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईदुलफित्र के दिन जब तक कुछ खुजूरें न खा लेते, नमाज़ के लिए न जाते और उन्हीं से एक रिवायत है कि आप ताक खुजूरें खाते थे।

फायदे : मालूम हुआ कि ईदुलफित्र के दिन नमाज़ से पहले मीठी चीजें खाना बेहतर है, शर्बत पीना भी सही है। अगर घर में न हो तो रास्ते में या ईदगाह पहुंचकर खा-पी ले इसका छोड़ना मकरूह है, बेहतर है कि ताक खुजूरों को इस्तेमाल किया जाये। (औनुलबारी, 2/73)

ईदुल अज़हा (बकरा ईद) के दिन खाने का बयान।

529: बराअ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु ‘’अन्हु से रिवायत है, उन्होंने कहा कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खुतबे में इशारा फरमाते सुना, आपने फरमाया कि आज के इस दिन में पहला काम जो हम करेंगे, वह यह कि नमाज़ पढ़ेंगे, फिर वापस जाकर कुर्बानी करेंगे तो जिसने ऐसा किया, उसने हमारे तरीके को पा लिया।

फायदे : इमाम बुखारी ने इस हदीस पर इन लफ़्जों के साथ उनवान कायम किया है। “मुसलमानों के लिए ईद के दिन पहली सुन्नत का बयान” मुसनद इमाम अहमद, तिरमजी और इब्ने माजा की रिवायत में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईदुल अज़हा के दिन वापस आकर अपनी कुर्बानी का गोश्त खाया करते थे। (औनुलबारी, 1/74)

Hadis 530

बराअ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से ही रिवायत है, उन्होंने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ईदुल अज़हा में नमाज़ के बाद हमारे सामने खुत्बा इरशाद फरमाया तो कहा जो आदमी हमारी तरह नमाज़ पढ़े और हमारी तरह कुर्बानी करे तो उसका फर्ज पूरा हो गया और जिसने नमाज़ से पहले कुर्बानी की तो नमाज़ से पहले होने की बिना पर कुर्बानी नहीं है। इस पर बराअ रज़ियल्लाहु ‘अन्हु के मामूं जनाब अबू बुरदा बिन नियार रज़ियल्लाहु ‘अन्हु ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! मैंने तो अपनी बकरी नमाज़ से पहले ही कुर्बान कर दी, क्योंकि मैंने समझा कि आज चूंकि खाने पीने का दिन है, इसलिए मेरी ख्वाहिश थी कि सबसे पहले मेरे ही घर में बकरी कुर्बान की जाये। इस बिना पर मैंने अपनी बकरी कुर्बान कर दी और नमाज़ के लिए आने से पहले कुछ नाश्ता भी कर लिया।

आपने फरमाया कि तुम्हारी बकरी तो सिर्फ गोश्त की बकरी ठहरी (कुर्बानी नहीं हुई)। उन्होंने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! हमारे पास एक भेड़ का बच्चा है जो मुझे दो बकरियों से ज्यादा प्यारा है तो क्या वह मेरी तरफ से काफी हो जायेगा? आपने फरमाया, हां लेकिन तुम्हारे सिवा किसी और को काफी न होगा।

फायदे : कुर्बानी के जानवर के लिए दो दांत होना जरूरी है। इसके बगैर कुर्बानी नहीं होती। हदीस में गुजरी इजाजत सिर्फ अबू बुरदा रज़ियल्लाहु ‘अन्हु के लिए थी। इससे यह भी मालूम हुआ कि दीन इन्सान के पाक जज्बात का नाम नहीं बल्कि उसके लिए अल्लाह की तरफ से नाज़िल किया गया होना जरूरी है।

ईदगाह में मिम्बर के बगैर जाना।

531: अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईदुल फित्र और ईदुल अज़हा के दिन ईदगाह तशरीफ ले जाते तो पहले जो काम करते, वह नमाज़ होती, उससे फारिग होने के बाद आप लोगों के सामने खड़े होते, लोग अपनी सफों में बैठे रहते, तब आप उन्हें नसीहत और तलकीन फरमाते और अच्छी बातों का हुक्म देते। फिर अगर आप कोई लश्कर भेजना चाहते तो उसे तैयार करते या जिस काम का हुक्म करना चाहते, हुक्म दे देते। फिर वापस घर लौट आते। अबू सईद रज़ियल्लाहु ‘अन्हु फरमाते हैं कि उसके बाद भी लोग ऐसा ही करते रहे। यहां तक कि मैं मरवान रज़ियल्लाहु ‘अन्हु के साथ ईदुल अज़हा या ईदुल फित्र में गया। वह उस वक्त मदीना का हाकिम था, तो जब हम ईदगाह पहुंचे तो एक मिम्बर वहां रखा हुआ था जो कसीर बिन सल्त ने तैयार किया था।

मरवान रज़ियल्लाहु ‘अन्हु ने अचानक चाहा कि नमाज़ पढ़ने से पहले उस पर चढ़े तो मैंने उसका कपड़ा पकड़कर खींचा, लेकिन उसने मुझे झटक दिया और मिम्बर पर चढ़ गया। फिर उसने नमाज़ से पहले खुत्बा दिया तो मैंने उससे कहा कि अल्लाह की कसम! तुम लोगों ने नबी की सुन्नत को बदल दिया है। उसने कहा अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु ‘अन्हु! वह बात जाती रही जो तुम जानते हो, मैंने जवाब में कहा, अल्लाह की कसम! जो मैं जानता हूँ वह उससे कहीं बेहतर है, जिसे मैं नहीं जानता हूँ इस पर मरवान रज़ियल्लाहु ‘अन्हु कहने लगे, बात दरअसल यह है कि लोग हमारे खुत्बे के लिए नमाज़ के बाद नहीं बैठते। लिहाजा मैंने खुत्बे को नमाज़ से पहले कर दिया।

फायदे : हज़रत मरवान रज़ियल्लाहु ‘अन्हु ने यह तब्दीली अपने इजतिहाद से की थी जो नस के मुकाबले में होने की बिना पर अमल के काबिल न थी। चुनांचे हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु ‘अन्हु ने इसका नोटिस लिया, इससे यह भी मालूम हुआ कि अगर बादशाह किसी बेहतर काम पर इत्तिफाक न करें तो खिलाफे औला काम को अमल में लाना जाईज है। (औनुलबारी, 2/80)

ईद के लिए पैदल या सवार होकर जाना और खुत्बे से पहले नमाज़ अदा करना।

532: इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु ‘अन्हु और जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि न ईदुल फित्र की अज़ान होती थी और न ही ईदुल अज़हा की।

फायदे : गुजरी हुई रिवायत में न पैदल चलने का जिक्र है और न ही सवारी पर जाने की मनाही है। जिससे इमाम बुखारी ने साबित किया कि दोनों तरह ईदगाह जाना सही है। फिर भी पैदल जाने में ज्यादा सवाब है। खुत्बा से पहले नमाज़ का होना ऊपर के बाब से साबित हो चुका है। अगले बाब से भी साबित होता है।

ईद की नमाज़ के बाद खुत्बा देना।

533 : इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैंने ईद की नमाज़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, अबू बकर, उमर और उसमान रज़ियल्लाहु ‘अन्हु के साथ पढ़ी है। यह सब हजरात खुत्बे के पहले ईद की नमाज़ पढ़ते थे।

तशरीक के दिनों में इबादत करने की फजीलत।

534: इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से ही रिवायत है, वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान करते हैं कि आपने फरमाया, किसी और दिन में इबादत इन दस दिनों में इबादत करने से बेहतर नहीं है। सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु ‘अन्हु ने अर्ज किया कि जिहाद भी नहीं? आपने फरमाया कि जिहाद भी नहीं। हां वह आदमी जो (जिहाद में) अपनी जान और माल को खतरे में डालते हुये निकले और फिर कोई चीज लेकर वापस न लौटे (बल्कि अपनी जान और माल कुर्बान कर दे)।

फायदे : चूंकि यह दिन ज्यादातर लोग गफलत के साथ गुजारते हैं, लिहाजा इन दिनों की इबादत को बड़ी फजीलत वाला करार दिया गया है। नीज यह भी मालूम हुआ कि कम दर्जे का अमल अगर बेहतरीन वक्त में अदा किया जाये तो उसकी फजीलत और ज्यादा हो जाती है। (औनुलबारी, 2/84)

मिना के दिनों में और अरफात के मैदान को जाते हुए तकबीरें कहना।

535 : अनस रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है कि उनसे लब्बैक पुकारने के बारे में पूछा गया कि तुम नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ किस तरह करते थे। उन्होंने जवाब दिया कि लब्बैक कहने वाला लब्बैक कहता, उसे मना न किया जाता और इसी तरह तकबीरें कहने वाला तकबीरें कहता तो उस पर भी कोई ऐतराज न करता।

फायदे : ईदैन की रूह यही है कि उनमें तेज आवाज में अल्लाह की बड़ाई और उसकी अज़मत का एलान किया जाये, इसका मतलब यह नहीं है कि हज के दिनों में लब्बैक छोड़ दिया जाये, बल्कि लब्बैक कहते हुये तकबीरें भी तेज आवाज़ में कहीं जायें। (औनुलबारी, 2/84)

कुर्बानी के दिन ईदगाह में ऊंट या कोई जानवर कुर्बान करना।

536: अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऊंट या किसी और जानवर की कुर्बानी ईदगाह में किया करते थे।

फायदे : बेशक ईदगाह में कुर्बानी करना सुन्नत है। मगर हालात के मुताबिक यह सुन्नत अपने घरों और अपनी जगहों पर भी अदा की जा सकती है।

ईदैन के दिन वापसी पर रास्ता बदलना।

537: जाबिर रज़ियल्लाहु ‘अन्हु से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब ईद का दिन होता तो रास्ता बदला करते, यानी एक रास्ते से जाते तो वापसी के वक़्त दूसरा रास्ता इख्तियार फरमाते थे।

फायदे : रास्ता बदलने में शरई मसला यह है कि हर तरफ सलाम की शान का इजहार हो नीज जहां जहां कदम पड़ेंगे, कयामत के दिन वह निशान गवाही देंगे। (औनुलबारी, 2/87)

Hadis 538

आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा की हब्शियों के बारे में रिवायत (486) पहले गुजर चुकी है, यहां इस रिवायत में इतना ज्यादा है कि आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने फरमाया, जब उमर रज़ियल्लाहु ‘अन्हु ने उन्हें झिड़का तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इन्हें रहने दो ऐ बनी अरफिदा! आराम और सुकून से खेलो।
फायदे : इमाम बुखारी ने इस हदीस पर इन लफ़्जों के साथ उनवान कायम किया है, “अगर किसी को जमाअत के साथ ईद न मिले तो दो रकअत पढ़ ले” क्योंकि इस रिवायत के मुताबिक ईद के दिन का तकाजा यह है कि नमाज़ जमाअत के साथ पढ़ी जाये, अगर रह जाये तो अकेले अदा कर ली जाये। (औनुलबारी, 2/89)

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