हैज (माहवारी) का बयान

203: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि हम सब मदीना से सिर्फ हज के इरादे से निकले और जब मकामे सरिफ पर पहुंचे तो मुझे हैज आ गया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे पास तशरीफ लाये तो मैं रो रही थी, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, तुम्हारा क्या हाल है? क्या तुझे हैज आ गया है? मैंने अर्ज किया जी हाँ! आपने फरमाया कि यह मामला तो अल्लाह तआला ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम की बेटियों पर लिख दिया है। इसलिए हाजियों के सब काम करती रहो, अलबत्ता काबा का तवाफ ना करना। आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने फरमाया, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी बीवियों की तरफ से एक गाय की कुरबानी दी।

फायदे: मालूम हुआ कि हैज वाली औरत बैतुल्लाह के चक्कर के अलावा दीगर हज के अरकान अदा करने की पाबन्द है। ( अल हज 1650)

हैज वाली औरत का अपने शौहर के सर को धोना और उसमें कंघी करना।

204: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि मैं हैज की हालत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सर मुबारक में कंघी किया करती थी।

फायदे: मालूम हुआ कि हैज वाली औरत घर का काम काज और शौहर की दूसरी तमाम खिदमते सरअंजाम दे सकती है।

205: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से ही एक दूसरी रिवायत में यूँ है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ फरमा होते और अपना सर मुबारक उनके करीब कर देते और वह खुद हैज की हालत में अपने कमरे में रहते हुये उन्हें कंघी कर दिया करती थीं।

मर्द का अपनी हैज वाली बीवी की गोद में (तकिया लगाकर) कुरान पढ़ना।

206: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से ही रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरी गोद में तकिया लगा लेते थे। जबकि मैं हैज से होती, फिर आप कुरान मजीद तिलावत फरमाते थे।

फायदे: हैज वाली औरत और नापाक आदमी कुरान मजीद को हाथ नहीं लगा सकता, अलबत्ता उसकी गोद में तकिया लगाकर कुरान पढ़ना दूसरी बात है।

हैज को निफास कहना।

207: उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है, उन्होंने फरमाया कि एक बार मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक ही चादर में लेटी हुई थी कि अचानक मुझे हैज आ गया, मैं आहिस्ता से सरक गयी और अपने हैज के कपड़े पहन लिये तो आपने फरमाया, क्या तुम्हें निफास आ गया है। मैंने अर्ज किया, जी हाँ! फिर आपने मुझे बुलाया और मैं उसी चादर में आपके साथ लेट गयी।

हैज वाली औरत के साथ लेटना।

208: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है, फरमाती हैं कि मैं और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दोनों नापाकी की हालत में एक बर्तन से गुस्ल किया करते, इसी तरह मैं हैज से होती और आप हुक्म देते तो मैं इजार पहन लेती, फिर आप मेरे साथ लेट जाते। नीज आप एतकाफ की हालत में अपना सर मुबारक मेरी तरफ कर देते तो मैं उसको धो देती, जबकि मैं खुद हैज से होती।

209: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से दूसरी रिवायत में यूँ है, फरमाती हैं, हममें से जब किसी औरत को हैज आता और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उससे मिलना चाहते तो उसे हुक्म देते कि अपने हैज की ज्यादती के वक्त इजार पहन ले, फिर उसके साथ लेट जाते। उसके बाद आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा ने फरमाया, तुम में से कौन है, जो अपनी ख्वाहिश पर इस कद्र काबू रखता हो, जिस कद्र रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी ख्वाहिश पर काबू रखते थे।

फायदे: मालूम हुआ कि जिसका अपने जोश पर कंट्रोल न हो वह ऐसे मिलने से परहेज करे, कि कहीं हराम काम न हो जाये।

हैज वाली औरत का रोजा छोड़ना।

210: अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाह ‘अन्हु से रिवायत है, उन्होंने बयान किया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ईदुल अजहा या ईदुल फित्र में निकले और ईदगाह में औरतों की जमाअत पर गुजरे तो आपने फरमाया, औरतों! खैरात करो, क्योंकि मैंने तुम्हें ज्यादातर दोजखी देखा है। वह बोली, ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्यों? आपने फरमाया, तुम लानत बहुत करती हो और शौहर की नाशुक्री करती हो।

मैंने तुमसे ज्यादा किसी को दीन और अक्ल में कमी रखने के बावजूद पुख्ता राये मर्द की अक्ल को पछाड़ने वाला नहीं पाया। उन्होंने अर्ज किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हमारी अक्ल और दीन में क्या नुकसान है? आपने फरमायाः क्या औरत की गवाही शरीअत के मुताबिक मर्द की आधी गवाही के बराबर नहीं? उन्होंने कहा, बेशक है। आपने फरमाया, यही उसकी अक्ल का नुकसान है। फिर आपने फरमाया, क्या यह बात सही नहीं कि जब औरत को हैज आता है तो न नमाज पढ़ती है और ना रोजा रखती है। उन्होंने कहा, हाँ! यह तो है। आपने फरमाया, बस यही उसके दीन का नुकसान है।

मुस्तहाजा का एतेकाफ में बैठना।

211: आइशा रज़ियल्लाहु ‘अन्हा से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ आपकी एक बीवी ने एते काफ किया। जबकि उसे इस्तिहाजा (खून) की बीमारी थी कि वह अकसर खून देखती रहती और आम तौर पर वह अपने नीचे खून की वजह से परात (तश्त) रख लिया करती थीं।

फायदे: जिस आदमी को हर वक्त हवा निकलने की बीमारी हो या जिसके जख्मों से खून बहता रहे, उसका भी यही हुक्म है।

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