मौत का एक दिन मुअय्यन है

Maut ka ek din muayyan hai

इन्सान कहीं भी हो किसी हालत में हो मुकर्ररा वक्त पर मौत आके रहेगी। किसी सूरत मौत से मफर नहीं और न कोई तदबीर कारगर होगी, न कोई ताकत रोक सकेगी और न एक मिनट कम व बेश हो सकेगा हर नफ़्स को मौत का मज़ा चखना है। كُلُّ نَفْسٍ ذائقَةُ الْمَوْت

एक बादशाह ज़रे बफ़्त फ़ाख़िरा और कीमती मलबूस में एक उम्दा और आलीशान धोड़े पर सवार हो कर एक लशकरे अज़ीम के साथ बड़े गुरूर से निकला, गुरूर व तकब्बुर का यह आलम था कि किसी तरफ देखता भी नहीं था। मलिक उल मौत एक फ़क़ीर की सूरत में फटे पुराने कपड़े पहने हुए नमूदार हुए और आकर सलाम किया, उस मगुरूर बादशाह ने जवाब भी नहीं दिया। मलिक उल मौत ने उसके धोड़े की बाग पकड़ ली। उसने कहा के मेरी राह में मुख्ल न हो। मलिक उल मौत ने कहा कि ऐ बादशाह! मुझे तो तुझ से कुछ कहना है। उसने कहा कि ठहर जा मुझे धोड़े से उतरने दे फिर जो बात होगी बयान करना। मलिक उल मौत ने कहा नहीं में तो अभी कहूँगा । बादशाह ने झुक कर कहा कि लो कहो, फकीर ने चुपके से उसके कान में कह दिया कि में मलिक उल मौत हूँ और इसलिए आया हूँ कि इसी वक्त तेरी रूह कब्ज़ करूँ। यह सुन कर बादशाह का वक्त रंग मुताग़य्यर हो गया और ज़बान गुंग हो गई। बमुशकिल बोला कि मुझे इतनी मुहलत दो कि घर जा कर अपने फ़रज़न्द से मिल लूँ। कहा हरगिज़ नहीं और उसी वक्त उसकी रूह निकाल ली और वह धोड़े से गिर गया।

जहाँ की खाक होती है वहीं मदफ़न भी होता है

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर फ़रमाते हैं कि मदीना मुनव्वरा में एक हब्शी का इन्तकाल हुआ तो सरवरे काएनात हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया कि देखो यह हब्शी मदीने की मिट्टी से पैदा हुआ था और मदीने ही में वफात पाई।

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ि० कहते हैं कि औरत के रहम पर एक फरिश्ता इस काम के लिए मुकर्रर होता है कि वह इन्सानी नुत्फ़े के बारे में खुदा से पूछता है कि नुतफा तखलीफ के काबिल है या नहीं। अगर खुदा की तरफ से हुक्म मिलता है कि तखलीक के काबिल है तो अल्लाह तआला से उसके रिज़्क और उमर की तफसील दरयाफ्त करता है। इरशादे बारी होता है कि लोहे महफूज़ पर देखो। 

लोहे महफूज़ में तमाम तफ़सीलात देखने के बाद वह फरिश्ता उस जगह की थोड़ी मिट्टी जहाँ वह मरने के बाद दफन होगा उसके नुतणे में ला कर खमीर करता है। हुजूरे अकरम सल्ल० ने फरमाया के इनसान की तजहीज़ में जहाँ की खाक होती है वहाँ जाने की कुदरती तौर पर उस को ज़रूरत पेश होती है। 

हज़रत आमश रह० से रिवायत है के मलिक उल मौत एक रोज़ हज़रत सुलेमान अलै० के पास गए वहाँ उन्होंने एक मसाहिब को तेज़ नज़रों से इस तरह घूर कर देखा तो उस ने हज़रत से दरयाप्त किया यह शख़्स कोन था जिस ने मुझे इस तरह घूर कर देखा। उन्होंने फरमाया के मलिक उल मौत थे। उस मसाहिब ने कहा के ऐसा मालूम होता है के यह मेरी रूह कुब्ज़ करेंगे आप हवा को हुक्म दीजीए के वह मुझे सरज़मीने हिन्द में पहुँचा दे ताकि मलिक उल मौत यहाँ आऐं तो मुझे न देखें हज़रत सुलेमान ने हुक्म दिया और उस शख्स को हवा ने हिन्दुस्तान पहुँचा दिया। फिर मलिक उल मौत आए तो आप ने पूछा के तूम ने मेरे मसाहिब को क्यों घूर कर देखा था, मलिक उल मौत ने कहा कि हज़रत मुझे अल्लाह तआला की तरफ से हुक्म हुआ था इसी घड़ी हिन्दुस्तान में इस शख़्स की रूह कब्ज़ करूँ, वह यहाँ आप के पास बैठा हुआ था

मैं ने उसे देख कर सोचा कि यह हिन्दुस्तान इतनी जल्दी कैसे पहुँचेगा लेकिन जब मैं वहाँ गया तो मैं ने उसे भी वहीं पाया और मैं ने उस की रूह कब्ज़ कर ली।

बाज़ औकात ऐसा होता है इन्सान की वफात कहीं होती है और किसी दूसरे मकाम पर दफ़्न होता है मगर जहाँ की मिट्टी होगी वहीं दफन होगा मसलन उस दौर का मशहूर वाक्या यही समझने के लिए काफी है कि रईस उल अहरार हज़रत मौलाना मुहम्मद अली रह० की वफात लंदन में वाके हुई और आप बयतुल मुकदृस में दफन हुए। इस तरह की बहुत सी मिसालें मिलेंगी और जो लोग दरया में बहा दिए जाते हैं या जला दिए जाते हैं परवरदिगारे आलम उन के मसख और बिखरे हुए ज़र्रात जमा करने की कुदरत रखता है और मुमकिन है के वह ज़र्रात ज़मीन के सुपुर्द कर दिए जाते हों। अल्लाह बेहतर जानता है।

सकराते मौत और जानकनी

जानकनी की तकलीफ और अज़य्यत इन्सान अपनी आँखों से देखता है कि मरने वाला कितनी सख्तियों में मुबतला रहता है फिर भी लोग गफलत में पड़े रहते हैं अगर ज़रा भी समझ से काम लें तो यही उन की इबरत के लिए काफी है। उलमाऐ रब्बानी इस बात पर मुत्तफिक हैं कि जानकनी से ज्यादा संगीन कोई दर्द नहीं है। अगर इन्सान के जिस्म के टुकड़े कर दिए जाऐं फिर भी सकराते मौत की तकलीफ व अजय्यत के सामने हैच है।

शद्दाद इब्ने औस से रिवायत है के अगर कोई शख़्स आरे से चीरा जाए या देग में बंद करके पकाया जाए। जानकनी में इससे भी ज्यादा तकलीफ होती है।

शहर बिन जोशब ब्यान करते हैं के किसी ने रसूले करीम सल्ल० से सवाल किया के सकराते मौत की तकलीफ कैसी होती है। आप ने फरमाया के आसान मौत ऐसी है जैसे खारदार शाख को रेशम में डाल कर खींचने से काँटे के साथ रेशम तुकड़े तुकड़े होकर निकलता है।

शमाइले तिर्मिज़ी में है कि सरवरे काएनात सल्ल० को निजाऐ रूह के वक्त इतनी सख़्त तकलीफ गुज़री कि हज़रत फातमा रज़ि० देख कर रोने लगीं। हुजूर ने फ़रमाया कि ऐसी तकलीफ़ कभी नहीं हुई थी। रसूलुल्लाह सल्ल० जानकनी के वक़्त फरमाते थे कि…….

ऐ अल्लाह तू मुहम्मद (सल्ल०) पर सकराते मौत को आसान कर दे।

اللهم هون على محمد  سكرات الموت

हज़रत आईशा रज़ि० फरमाती हैं के आप उस वक़्त फ़रमाते थे अल्लाह अल्लाह तू हड्डियों और रगों में से रूह को निकालता है यह सख़्ती मुझ पर आसान कर दे और एक प्याला पानी का भरा हुआ मंगाया। बार बार दसते मुबारक पयाले में डुबोते और रूऐ अकदस पर फ़ेरते थे और फ़रमाते थे इन्ना सकरातल मौत और शिदृते सकरात से चेहराऐ मुबारक सुर्ख हो जाता था। इसी आलम में आप ने फरमाया अल्लाहुममा रफीकुल आला” और रूहे अकदस जवारे रहमत में मुंतकल हो गई।

हुजूरे अकरम सल्ल० ने फ़रमाया निज़ा की तकलीफ बन्दाऐ मोमिन के लिए गुनाहों का कफ़्फ़ारा बन जाती है और काफिर को मौत के वक्त ही उसके नेक अमल की जजा दे दी जाती है। हज़रत ईसा फ़रमाते हैं कि ऐ हवारियों मेरे लिए दुआ करो कि अल्लाह तआला मौत की सख्तियाँ मुझ पर आसान कर दे, मैं मौत से इतना डरता हुँ कि खौफ के मारे मरा जाता हूँ। हदीस शरीफ़ में यह भी वारिद है कि हज़रत मूसा अलै० की वफात का वक्त करीब आया तो हक ताला शानुहु ने उन से पूछा कि जानकनी में तुम ने अपने आप को कैसा पाया। अर्ज़ किया के जिन्दा मुर्ग के मिस्ल के उसे भुनें तो वह उड़ न सके न मर सके कि कहीं निजात पाए और हज़रत अली रजि० फ़रमाते हैं कि ऐ मुसलमानों। काफिरों से जिहाद करो ताकि क़त्ल हो क्योंकि तलवार की हज़ार ज़रबें मुझ पर ज्यादा आसान हैं बनिसबत इसके कि बिस्तर पर पड़े पड़े जानकनी हो। हज़रत मैसरा रज़ि० ब्यान करते हैं के हुजूर सल्ल० फ़रमाते हैं कि मौत की तकलीफ इस क़दर सख्त व सनगीन होती है कि अगर उसका एक कतरा भी ज़मीन व आसमान में डाल दिया जाए तो सब जमीन वाले मर जाएँ।

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