दुआओं में मेरी, ख़ुदाया! असर दे
मेरी काविशों का मुझे तू समर दे
करूँ अहल-ए-दुनिया के ग़म का मदावा
मेरे हाथ में कोई ऐसा हुनर दे
भटकता फिरा हूँ मैं मंज़िल की ख़ातिर
जो फलदार हो कोई ऐसा शजर दे
दु’आओं में मेरी, ख़ुदाया! असर दे
मेरी काविशों का मुझे तू समर दे
अता कर मेरे दिल को तस्कीन, या रब !
मैं कब माँगता हूँ कि ला’ल-ओ-गुहर दे
मैं दुनिया के महलों का तालिब नहीं हूँ
मेरी ये दुआ है कि जन्नत में घर दे
दु’आओं में मेरी, ख़ुदाया! असर दे
मेरी काविशों का मुझे तू समर दे
जो माँ-बाप का दर्द रखता हो दिल में
ख़ुदाया! मुझे ऐसा नूर-ए-नज़र दे
ख़ुशी दे के वापस न लेना कभी तू
न हो शाम जिस की तू ऐसी सहर दे
दुआओं में मेरी, ख़ुदाया! असर दे
मेरी काविशों का मुझे तू समर दे
मुझे माल-ओ-ज़र दे के मग़रूर न कर
मेरे दिल में अल्लाह तू अपना डर दे
तमन्ना है मेरी, हो दीदार तेरा
नज़र आए मुझ को तू ऐसी नज़र दे
दुआओं में मेरी, ख़ुदाया! असर दे
मेरी काविशों का मुझे तू समर दे
शायर: सय्यिद अबू-बकर मालिकी