नात: मुस्तफ़ा! आप के जैसा कोई आया ही नहीं!

Naat: Mustafa! Aap Ke Jaisa Koi Aaya Hi Nahin!

मुस्तफ़ा! आप के जैसा कोई आया ही नहीं!
आता भी कैसे! जब अल्लाह ने बनाया ही नहीं!

कोई सानी न है रब का, न मेरे आक़ा का
एक का जिस्म नहीं, एक का साया ही नहीं

क़ब्र में जब कहा सरकार ने, ये मेरा है
फिर फ़रिश्तों ने मुझे हाथ लगाया ही नहीं

ज़ुल्फ़ वल्लैल है, रुख़ वद्दुहा, मा-ज़ाग़ आँखें
इस तरह रब ने किसी को भी सजाया ही नहीं

लौट कर आ गया मक्के से, मदीने न गया
कैसे जाता ! तुझे आक़ा ने बुलाया ही नहीं

जब से दरवाज़े पे लिखा मैंने आला हज़रत
कोई गुस्ताख़-ए-नबी घर मेरे आया ही नहीं

आप ने जब से नवाज़ा है, या रसूलल्लाह!
मैंने दामन किसी चौखट पे बिछाया ही नहीं

जिस ने सरकार के चेहरे की ज़ियारत की है
उस की नज़रों में कोई और समाया ही नहीं

जब तलक पुश्त पे शब्बीर रहे, ए फ़ैज़ी!
सर को सज्दे से पयम्बर ने उठाया ही नहीं

शायर: शमीम फ़ैज़ी

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