29 सूरह अल अनक़बूत हिंदी में पेज 1

सूरह अल अनक़बूत में 69 आयतें और सात रुकू हैं। यह सूरह पारा 20, पारा 21 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

सूरह का नाम आयत 41 के वाक्यांश “जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर दूसरे संरक्षक बना लिए हैं उनकी मिसाल मकड़ी (अन्कबूत) जैसी है” से लिया गया है।

सूरह अल अनक़बूत हिंदी में | Surat Al-Ankabut in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अ़लिफ़-लाम्- मीम्
    अलिफ़ लाम मीम।
  2. अ-हसिबन्-नासु अंय्युत्-रकू अंय्यकूलू आमन्ना व हुम्ला युफ़्तनून
    क्या लोगों ने ये समझ लिया है कि (सिर्फ़) इतना कह देने से कि हम ईमान लाए छोड़ दिए जाएँगे और उनका इम्तेहान न लिया जाएगा।
  3. व ल-क़द् फ़तन्नल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ-लयअ्-लमन्नल्लाहुल्लज़ी-न स-दकू व ल-यअ्-लमन्नल्-काज़िबीन
    और हमने तो उन लोगों का भी इम्तिहान लिया जो उनसे पहले गुज़र गए ग़रज़ अल्लाह उन लोगों को जो सच्चे (दिल से इमान लाए) हैं यक़ीनन अलहाएदा देखेगा और झूठों को भी (अलहाएदा) ज़रुर देखेगा।
  4. अम् हसिबल्लज़ी-न यअ्मलूनस्सय्यि आति अंय्यस्बिकूना, सा अ मा यह्कुमून
    क्या जो लोग बुरे बुरे काम करते हैं उन्होंने ये समझ लिया है कि वह हमसे (बचकर) निकल जाएँगे (अगर ऐसा है तो) ये लोग क्या ही बुरे हुक्म लगाते हैं।
  5. मन् का-न यरजू लिका-अल्लाहि फ़ इन्-न अ- जलल्लाहि लआतिन्, व हुवस्समीअुल-अ़लीम
    जो शख़्स अल्लाह से मिलने (क़यामत के आने) की उम्मीद रखता है तो (समझ रखे कि) अल्लाह की (मुक़र्रर की हुयी) मीयाद ज़रुर आने वाली है और वह (सबकी) सुनता (और) जानता है।
  6. व मन् जा-ह-द फ़-इन्नमा युजाहिदु लिनफ़्सिही, इन्नल्ला-ह ल ग़निय्युन् अ़निल-आ़लमीन
    और जो शख़्स (इबादत में) कोशिश करता है तो बस अपने ही वास्ते कोशिश करता है (क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह सारे जहाँन (की इबादत) से बेनियाज़ है।
  7. व मन् जा-ह-द फ़-इन्नमा युजाहिदु लिनफ़्सिही, इन्नल्ला-ह ल ग़निय्युन् अ़निल-आ़लमीन
    और जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए हम यक़ीनन उनके गुनाहों की तरफ़ से क्फ्फारा क़रार देगें और ये (दुनिया में) जो आमाल करते थे हम उनके आमाल की उन्हें अच्छी से अच्छी जज़ा अता करेंगे।
  8. व वस्सैनल् – इन्सा-न बिवालिदैहि हुस्नन्, व इन् जा-हदा-क लितुश्रि- क बी मा लै-स ल-क बिही अिल्मुन् फ़ला तुतिअ़हुमा, इलय्-य मर्जिअकुम् फ़- उनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    और हमने इन्सान को अपने माँ बाप से अच्छा बरताव करने का हुक्म दिया है और (ये भी कि) अगर तुझे तेरे माँ बाप इस बात पर मजबूर करें कि ऐसी चीज़ को मेरा शरीक बना जिन (के शरीक होने) का मुझे इल्म तक नहीं तो उनका कहना न मानना तुम सबको (आखि़र एक दिन) मेरी तरफ़ लौट कर आना है मै जो कुछ तुम लोग (दुनिया में) करते थे बता दूँगा।
  9. वल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति ल-नुद्खिलन्नहुम् फ़िस्सालिहीन
    और जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए हम उन्हें (क़यामत के दिन) ज़रुर नेको कारों में दाखि़ल करेंगे।
  10. व मिनन्नासि मंय्यकूलु आमन्ना बिल्लाहि फ़-इज़ा ऊज़ि – य फ़िल्लाहि ज-अ़-ल फित्- नतन्नासि क-अ़ज़ाबिल्लाहि, व लइन् जा-अ नसरूम् – मिर्रब्बि-क ल-यकूलुन्-न इन्ना कुन्ना म अ़कुम्, अ-व लैसल्लाहु बि-अअ्ल-म बिमा फ़ी सुदूरिल्-आ़लमीन
    और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो (ज़बान से तो) कह देते हैं कि हम अल्लाह पर इमान लाए फिर जब उनको अल्लाह के बारे में कुछ तकलीफ़ पहुँची तो वह लोगों की तकलीफ़ देही को अज़ाब के बराबर ठहराते हैं और (ऐ रसूल!) अगर तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की मदद आ पहुँची और तुम्हें फ़तेह हुयी तो यही लोग कहने लगते हैं कि हम भी तो तुम्हारे साथ ही साथ थे भला जो कुछ सारे जहाँन के दिलों में है क्या अल्लाह बख़ूबी वाकि़फ नहीं (ज़रुर है)।
  11. व ल-यअ्-ल-मन्नल्लाहुल्लज़ी -न आमनू व ल-यअ्-ल-मन्नल्- मुनाफ़िक़ीन
    और जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया अल्लाह उनको यक़ीनन जानता है और मुनाफे़क़ीन को भी ज़रुर जानता है।
  12. व कालल्-लजी-न क-फरू लिल्लज़ी-न आमनुत् तबिअू सबीलना वलनह्मिल ख़तायाकुम्, व मा हुम् बिहामिली-न मिन् ख़तायाहुम् मिन् शैइन्, इन्नहुम् ल-काज़िबून
    और कुफ्फार इमान वालों से कहने लगे कि हमारे तरीक़े पर चलो और (क़यामत में) तुम्हारे गुनाहों (के बोझ) को हम (अपने सर) ले लेंगे हालांकि ये लोग ज़रा भी तो उनके गुनाह उठाने वाले नहीं ये लोग यक़ीनी झूठे हैं।
  13. वल-यह़्मिलुन् – न अस्का – लहुम् व अस्कालम् म-अ़ अस्कालिहिम् व ल-युस् अलुन्-न यौमल्-कियामति अ़म्मा कानू यफ़्तरून *
    और (हाँ) ये लोग अपने (गुनाह के) बोझे तो यक़ीनी उठाएँगें ही और अपने बोझो के साथ जिन्हें गुमराह किया उनके बोझे भी उठाएँगे और जो इफि़तेरा परदाजि़या ये लोग करते रहे हैं क़यामत के दिन उन से ज़रुर उसकी बाज़पुर्स होगी।
  14. व ल-क़द् अरसल्ना नूहन् इला क़ौमिही फ़-लबि-स फ़ीहिम् अल-फ़ स-नतिन् इल्ला ख़म्सी – न आमन्, फ़-अ-ख़-ज़हुमुत्तूफ़ानु व हुम् ज़ालिमून
    और हमने नूह को उनकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा तो वह उनमें पचास कम हज़ार बरस रहे (और हिदायत किया किए और जब न माना) तो आखि़र तूफान ने उन्हें ले डाला और वह उस वक़्त भी सरकश ही
    थे।
  15. फ़- अन्जैनाहु व अस्हाबस्सफ़ी – नति व जअ़ल्नाहा आ-यतल लिल्आलमीन
    फिर हमने नूह और कशती में रहने वालों को बचा लिया और हमने इस वाकि़ये को सारी ख़़ुदाई के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी क़रार दी।
  16. व इब्राही – म इज् का-ल लिक़ौमिहिअ्बुदुल्ला-ह वत्तकूहु, ज़ालिकुम् ख़ैरुल्लकुम् इन कुन्तुम् तअ्लमून
    और इब्राहीम को (याद करो) जब उन्होंने कहा कि (भाईयों) अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो अगर तुम समझते बूझते हो तो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है।
  17. इन्नमा तअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि औसानंव् – व तख़्लुकू – न इफ़्कन्, इन्नल्लज़ी-न तअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि ला यम्लिकू-न लकुम् रिजक़न फ़ब्तगू अिन्दल्लाहिर्-रिज्-क वअ्बुदूहु वश्कुरू लहू, इलैहि तुर्जअून
    (मगर) तुम लोग तो अल्लाह को छोड़कर सिर्फ बुतों की परसतिश करते हो और झूठी बातें (अपने दिल से) गढ़ते हो इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह को छोड़कर जिन लोगों की तुम परसतिश करते हो वह तुम्हारी रोज़ी का एख़्तेयार नही रखते-बस अल्लाह ही से रोज़ी भी माँगों और उसकी इबादत भी करो उसका शुक्र करो (क्योंकि) तुम लोग (एक दिन) उसी की तरफ़ लौटाए जाओगे।
  18. व इन् तुकज़्ज़िबू फ़-क़द् कज़्ज़-ब उ-ममुम् – मिन् क़ब्लिकुम्, व मा अ़लर्रसूलि इल्लल्-बलागुल्-मुबीन
    और (ऐ एहले मक्का) अगर तुमने (मेरे रसूल को) झुठलाया तो (कुछ परवाह नहीं) तुमसे पहले भी तो बहुतेरी उम्मते (अपने पैग़म्बरों को) झुठला चुकी हैं और रसूल के जि़म्मे तो सिर्फ (एहक़ाम का) पहुँचा देना है।
  19. अ-व लम् यरौ कै-फ़ युब्दिउल्लाहुल- ख़ल्क सुम् – म युईदुहू इन् – न ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीर
    बस क्या उन लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि अल्लाह किस तरह मख़लूकात को पहले पहल पैदा करता है और फिर उसको दोबारा पैदा करेगा ये तो अल्लाह के नज़दीक बहुत आसान बात है।
  20. कुल् सीरू फिल्अर्ज़ि फन्जुरू कै-फ ब-दअल् – ख़ल्-क सुम्मल्लाहु युन्शिउन् – नश् – अतल् -आखि-र-त, इन्नल्ला – ह अ़ला कुल्लि शैइन् कदीर
    (ऐ रसूल इन लोगों से) तुम कह दो कि ज़रा रुए ज़मीन पर चलफिर कर देखो तो कि अल्लाह ने किस तरह पहले पहल मख़लूक को पैदा किया फिर (उसी तरह वही) अल्लाह (क़यामत के दिन) आखिरी पैदाइश पैदा करेगा- बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  21. युअज़्ज़िबु मंय्यशा – उ व यर्- हमु मंय्यशा – उ व इलैहि तुक़्लबून
    जिस पर चाहे अज़ाब करे और जिस पर चाहे रहम करे और तुम लोग (सब के सब) उसी की तरफ लौटाए जाओगे।
  22. व मा अन्तुम् बिमुअ्जिज़ी-न फ़िलअर्जि व ला फिस्समा-इ व मा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-व ला नसीर*
    और न तो तुम ज़मीन ही में अल्लाह को ज़ेर कर सकते हो और न आसमान में और अल्लाह के सिवा न तो तुम्हारा कोई सरपरस्त है और न मददगार।
  23. वल्लज़ी-न क-फ़रू बिआयातिल्लाहि व लिक़ा-इही उलाइ-क यइसू मिर्रह्मती व उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    और जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों और (क़यामत के दिन) उसके सामने हाजि़र होने से इन्कार किया मेरी रहमत से मायूस हो गए हैं और उन्हीं लोगों के वास्ते दर्दनाक अज़ाब है।

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