29 सूरह अल अनक़बूत हिंदी में पेज 2

सूरह अल अनक़बूत हिंदी में | Surat Al-Ankabut in Hindi

  1. फमा का-न जवा-ब कौमिही इल्ला अन् क़ालुक्तुलूहु औ हर्रिकूहु फ़अन्जाहुल्लाहु मिनन्नारि, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिकौमिंय्-युअ्मिनून
    ग़रज़ इब्राहीम की क़ौम के पास (इन बातों का) इसके सिवा कोई जवाब न था कि बाहम कहने लगे इसको मार डालो या जला (कर ख़ाक) कर डालो (आखि़र वह कर गुज़रे) तो अल्लाह ने उनको आग से बचा लिया इसमें शक नहीं कि दुनियादार लोगों के वास्ते इस वाकिये में (कुदरते अल्लाह की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  2. व का-ल इन्नमत्तख़ज़्तुम् मिन् दूनिल्लाहि औसानम् म – वद्द त बैनिकुम् फिल्-हयातिद्दुन्या सुम्म यौमल्-कियामति यक्फुरु बअ्जुकुम् बि-बअ्जिंव्-व यल्अ़नु बअजुकुम् बअ्जंव्-व मअ्वाकुमुन्नारु व मा लकुम् मिन्-नासिरीन
    और इब्राहीम ने (अपनी क़ौम से) कहा कि तुम लोगों ने अल्लाह को छोड़कर बुतो को सिर्फ दुनिया की जि़न्दगी में बाहम मोहब्त करने की वजह से (अल्लाह) बना रखा है फिर क़यामत के दिन तुम में से एक का एक इनकार करेगा और एक दूसरे पर लानत करेगा और (आखि़र) तुम लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और (उस वक़्त तुम्हारा कोई भी मददगार न होगा)।
  3. फ़- आम न लहू लूतुन् • व क़ा-ल इन्नी मुहाजिरुन् इला रब्बी, इन्नहू हुवल् अ़ज़ीजुल-हकीम
    तब सिर्फ लूत इब्राहीम पर इमान लाए और इब्राहीम ने कहा मै तो देस को छोड़कर अपने परवरदिगार की तरफ (जहाँ उसको मंज़ूर हो ) निकल जाऊँगा।
  4. व व-हब्ना लहू इस्हा-क व यअ्कू-ब व जअ़लना फी जुर्रिय्यतिहिन्- नुबुव्व-त वल्किता-ब व आतैनाहु अज्रहू फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल्-आखिरति लमिनस्सालिहीन
    इसमे शक नहीं कि वह ग़ालिब (और) हिकमत वाला है और हमने इब्राहीम को इसहाक़ (सा बेटा) और याक़ूब (सा पोता) अता किया और उनकी नस्ल में पैग़म्बरी और किताब क़रार दी और हम न इब्राहीम केा दुनिया में भी अच्छा बदला अता किया और वह तो आख़ेरत में भी यक़ीनी नेको कारों से हैं।
  5. व लूतन् इज् क़ा-ल लिक़ौमिही इन्नकुम् ल-तअ्तूनल्-फ़ाहि-श-त मा स-ब-ककुम् बिहा मिन् अ-हदिम्-मिनल् आ़लमीन
    (और ऐ रसूल!) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि तुम लोग अजब बेहयाई का काम करते हो कि तुमसे पहले सारी खु़दायी के लोगों में से किसी ने नहीं किया।
  6. अ-इन्नकुम् लतअ्तूनर्-रिजा-ल व तक्त अूनस्सबी-ल व तअतू-न फ़ी नादीकुमुल्-मुन्क-र, फ़मा का-न जवा-ब क़ौमिही इल्ला अन् कालुस्तिना बि-अ़ज़ाबिल्लाहि इन् कुन्-त मिनस् – सादिक़ीन
    तुम लोग (औरतों को छोड़कर कज़ाए शहवत के लिए) मर्दों की तरफ गिरते हो और (मुसाफिरों की) रहजनी करते हो और तुम लोग अपनी महफिलों में बुरी बुरी हरकते करते हो तो (इन सब बातों का) लूत की क़ौम के पास इसके सिवा कोई जवाब न था कि वह लोग कहने लगे कि भला अगर तुम सच्चे हो तो हम पर अल्लाह का अज़ाब तो ले आओ।
  7. का-ल रब्बिन्सुरनी अ़लल्-क़ौमिल्-मुफ्सिदीन
    तब लूत ने दुआ की कि परवरदिगार इन मुफ़सिद लोगों के मुक़ाबले में मेरी मदद कर।
  8. व लम्मा जाअत् रुसुलुना इब्राही-म बिलबुश्रा क़ालू इन्ना मुह़्लिकू अह़्लि हाज़िहिल – कर्यति इन्-न अह़्लहा कानू ज़ालिमीन
    (उस वक़्त अज़ाब की तैयारी हुयी) और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते इब्राहीम के पास (बुढ़ापे में बेटे की) खुशखबरी लेकर आए तो (इब्राहीम से) बोले हम लोग अनक़रीब इस गाँव के रहने वालों को हलाक करने वाले हैं (क्योंकि) इस बस्ती के रहने वाले यक़ीनी (बड़े) सरकश हैं।
  9. का-ल इन्-न फ़ीहा लूतन्, कालू नह्नु अअ्लमु बि-मन् फ़ीहा ल नुनज्जियन्नहू व अह़्लहू इल्लम्-र-अ-तहू कानत् मिनल्-ग़ाबिरीन
    (ये सुन कर) इब्राहीम ने कहा कि इस बस्ती में तो लूत भी है वह फ़रिश्ते बोले जो लोग इस बस्ती में हैं हम लोग उनसे खूब वाकि़फ़ हैं हम तो उनको और उनके लड़के बालों को यक़ीनी बचा लेंगे मगर उनकी बीबी को वह (अलबता) पीछे रह जाने वालों में होगीं।
  10. व लम्मा अन् जाअत् रुसुलुना लूतन् सी-अ बिहिम् व ज़ा-क़ बिहिम् जरअंव-व कालू ला तख़फ् व ला तह्ज़न्, इन्ना मुनज्जू-क व अह़्ल – क इल्लम्-र-अ-त क कानत् मिनल्-ग़ाबिरीन
    और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते लूत के पास आए लूत उनके आने से ग़मग़ीन हुए और उन (की मेहमानी) से दिल तंग हुए (क्योंकि वह नौजवान खू़बसूरत मर्दों की सरूत में आए थे) फ़रिश्ते ने कहा आप ख़ौफ न करें और कुढ़े नही हम आपको और आपके लड़के बालों को बचा लेगें मगर आपकी बीबी (क्योंकि वह पीछे रह जाने वालो से होगी)।
  11. इन्ना मुन्ज़िलू-न अ़ला अह़्लि हाज़िहिल् करयति रिज्ज़म-मिनस्समा इ बिमा कानू यफ़सुकून
    हम यक़ीनन इसी बस्ती के रहने वालों पर चूँकि ये लोग बदकारियाँ करते रहे एक आसमानी अज़ाब नाजि़ल करने वाले हैं।
  12. व ल – क़त्तरक्ना मिन्हा आ-यतम् बय्यि-नतल्-लिकौमिंय् यअ्किलून
    और हमने यक़ीनी उस (उलटी हुयी बस्ती) में से समझदार लोगों के वास्ते (इबरत की) एक वाज़ेए व रौशन निशानी बाक़ी रखी है।
  13. व इला मद्य-न अख़ाहुम् शुऐबन् फ़का-ल या कौमिअ्बुदुल्ला-ह वरजुल्- यौमल् – आख़ि-र व ला तअ्सौ फ़िल्अर्जि मुफ्सिदीन
    और (हमने) मदियन के रहने वालों के पास उनके भाई शुएब को पैग़म्बर बनाकर भेजा उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह की इबादत करो और रोज़े आखे़रत की उम्मीद रखो और रुए ज़मीन में फ़साद न फैलाते फिरो।
  14. फ़- कज़्ज़बूहु फ़-अ-ख़ज़तहुमुर रज्फ़तु फ़-अस्बहू फ़ी दारिहिम् जासिमीन
    तो उन लोगों ने शुऐब को झुठलाया पस ज़लज़ले (भूचाल) ने उन्हें ले डाला- तो वह लोग अपने घरों में औंधे ज़ानू के बल पड़े रह गए।
  15. व आदंव्-व समू -द व क़त्-त-बय्य-न लकुम् मिम-मसाकिनिहिम्, व ज़य्य – न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् फ़-सद्दहुम् अ़निस्सबीलि व कानू मुस्तब्सिरीन
    और क़ौम आद और समूद को (भी हलाक कर डाला) और (ऐ एहले मक्का) तुम को तो उनके (उजड़े हुए) घर भी (रास्ता आते जाते) मालूम हो चुके और शैतान ने उनकी नज़र में उनके कामों को अच्छा कर दिखाया था और उन्हें (सीधी) राह (चलने) से रोक दिया था हालांकि वह बड़े होशियार थे।
  16. व कारू-न व फ़िरऔ-न व हामा-न, व ल-क़द् जा-अहुम् मूसा बिल्बय्यिनाति फ़स्तक्बरू फ़िलअर्जि व मा कानू साबिक़ीन
    और (हम ही ने) क़ारुन व फ़िरऔन व हामान को भी (हलाक कर डाला)हलांकि उन लोगों के पास मूसा वाजे़ए व रौशन मौजिज़े लेकर आए फिर भी ये लोग रुए ज़मीन में सरकशी करते फिरे और हमसे (निकल कर) कहीं आगे न बढ़ सके।
  17. फ़- कुल्लन् अख़ज़्ना बि- ज़म्बिही फ़-मिन्हुम् मन् अरसल्ना अ़लैहि हासिबन् व मिन्हुम् मन् अ-ख़ज़तहुस्सै-हतु व मिन्हुम् मन् ख़सफ़्ना बिहिल्-अर् -ज़ व मिन्हुम् मन् अग्ररक़ना व मा कानल्लाहु लि -यज्लिमहुम् व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
    तो हमने सबको उनके गुनाह की सज़ा में ले डाला चुनांन्चे उनमे से बाज़ तो वह थे जिन पर हमने पत्थर वाली आँधी भेजी और बाज़ उनमें से वह थे जिन को एक सख़्त चिंघाड़ ने ले डाला और बाज़ उनमें से वह थे जिनको हमने ज़मीन मे धँसा दिया और बाज़ उनमें से वह थे जिन्हें हमने डुबो मारा और ये बात नहीं कि अल्लाह ने उन पर ज़ुल्म किया हो बल्कि (सच यूँ है कि) ये लोग ख़ुद (अल्लाह की नाफ़रमानी करके) आप अपने ऊपर ज़ुल्म करते रहे।
  18. म-सलुल्लज़ीनत्त-ख़जू मिन् दूनिल्लाहि औलिया-अ क-म सलिल् – अ़न्कबूति इत्त-ख़ज़त् बैतन्, व इन्-न औ-हनल्-बुयूति लबैतुल्-अ़नकबूति • लौ कानू यअ्लमून
    जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे कारसाज़ बना रखे हैं उनकी मसल उस मकड़ी की सी है जिसने (अपने ख़्याल- ऐ- नाकि़स में) एक घर बनाया और उसमें तो शक ही नहीं कि तमाम घरों से बोदा घर मकड़ी का होता है मगर ये लोग (इतना भी) जानते हो।
  19. इन्नल्ला – ह यअ्लमु मा यद्अू-न मिन् दूनिही मिन् शैइन्, व हुवल् अ़ज़ीजुल हकीम
    अल्लाह को छोड़कर ये लोग जिस चीज़ को पुकारते हैं उससे अल्लाह यक़ीनी वाकि़फ है और वह तो (सब पर) ग़ालिब (और) हिकमत वाला है।
  20. व तिल्कल्-अम्सालु नश्रिबुहा लिन्नासि व मा यअ्किलुहा इल्लल्-आलिमून
    और हम ये मिसाले लोगों के (समझाने) के वास्ते बयान करते हैं और उन को तो बस उलमा ही समझते हैं।
  21. ख़-लक़ल्लाहुस्-समावाति वल्अर्-ज़ बिल्हक़्क़ि, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् लिल्मुअ्मिनीन *
    अल्लाह ने सारे आसमान और ज़मीन को बिल्कुल ठीक पैदा किया इसमें शक नहीं कि उसमें इमानदारों के वास्ते (कुदरते अल्लाह की) यक़ीनी बड़ी निशानी है। (पारा 20 समाप्त)

पारा 21 शुरू

  1. उत्लु मा ऊहि-य इलै-क मिनल-किताब व अकिमिस्सला-त, इन्नस्सला-त तन्हा अनिल् फ़ह्शा-इ वल्मुन्करि, व ल-ज़िक्रुल्लाहि अक्बरु, वल्लाहु यअ्लमु मा तस्नअून
  2. (ऐ रसूल!) जो किताब तुम्हारे पास नाजि़ल की गयी है उसकी तिलावत करो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो बेशक नमाज़ बेहयाई और बुरे कामों से बाज़ रखती है और अल्लाह की याद यक़ीनी बड़ा मरतबा रखती है और तुम लोग जो कुछ करते हो अल्लाह उससे वाकि़फ है।
  3. व ला तुजादिलू अह़्लल्-किताब इल्ला बिल्लती हि-य अह्सनु इल्लल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्हुम् व कूलू आमन्ना बिल्लज़ी उन्जि-ल इलैना व उन्ज़ि-ल इलैकुम् व इलाहुना व इलाहुकुम् वाहिदुंव्-व नह्नु लहू मुस्लिमून और (ऐ इमानदारों!) एहले किताब से मनाजि़रा न किया करो मगर उमदा और शाएस्ता अलफाज़ व उनवान से लेकिन उनमें से जिन लोगों ने तुम पर ज़ुल्म किया (उनके साथ रिआयत न करो) और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब हम पर नाजि़ल हुयी और जो किताब तुम पर नाजि़ल हुयी है हम तो सब पर इमान ला चुके और हमारा माबूद और तुम्हारा माबूद एक ही है और हम उसी के फरमाबरदार है।

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