49 सूरह अल-हुजुरात हिंदी में

49 सूरह अल-हुजुरात | Surah Al-Hujurat

इस सूर में 18 आयतें और 2 रुकू हैं। यह सूरह पारा 26 में है। यह सूरह मदीना मे नाज़िल हुई।

49 सूरह अल-हुजुरात हिंदी में | Surah Al-Hujurat in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. या अय्युहल्लज़ी – न आमनू ला तुक़द्दमू बै-न य-दयिल्लाहि व रसूलिही वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह समीअुन् अ़लीम
    ऐ ईमानदारों! अल्लाह और उसके रसूल के सामने किसी बात में आगे न बढ़ जाया करो। और अल्लाह से डरते रहो बेशक अल्लाह बड़ा सुनने वाला वाकि़फ़कार है।
  2. या अय्युहल्लज़ी – न आमनू ला तर्फअू अस्वातकुम् फ़ौ-क़ सौतिन्-नबिय्यि व ला तज्हरू लहू बिल्क़ौलि क – ज िह्र बअ्ज़िकुम् लि- बअ्ज़िन् अन् तह्ब-त अअ्मालुकुम् व अन्तुम् ला तश्अुरून
    ऐ ईमानदारों! (बोलने में) अपनी आवाज़े पैग़म्बर की आवाज़ से ऊँची न किया करो। और जिस तरह तुम आपस में एक दूसरे से ज़ोर (ज़ोर) से बोला करते हो। उनके रूबरू ज़ोर से न बोला करो। (ऐसा न हो कि) तुम्हारा किया कराया सब अकारत हो जाए और तुमको ख़बर भी न हो।
  3. इन्नल्लज़ी – न यग़ुज़्ज़ू-न अस्वातहुम् अिन्-द रसूलिल्लाहि उलाइ-कल्लज़ीनम् -त-हनल्लाहु क़ुलू- बहुम् लित्तक्वा, लहुम्-मग्फ़ि-रतुंव्-व अज्रुन् अ़ज़ीम
    बेशक जो लोग रसूले अल्लाह के सामने अपनी आवाज़ें धीमी कर लिया करते हैं। यही लोग हैं जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँच लिया है उनके लिए (आख़ेरत में) बख्शिश और बड़ा अज्र है।
  4. इन्नल्लज़ी-न युनादून-क मिंव्वरा-इल्-हुजुराति अक्सरुहुम् ला यअ्क़िलून
    (ऐ रसूल!) जो लोग तुमको हुजरों के बाहर से आवाज़ देते हैं।उनमें के अक़्सर बे अक़्ल हैं।
  5. व लौ अन्नहुम् स-बरू हत्ता तख़्रु-ज इलैहिम् लका-न ख़ैरल्-लहुम्, वल्लाहु ग़फ़ूरुर्रहीम
    और अगर ये लोग इतना ताम्मुल करते कि तुम ख़ुद निकल कर उनके पास आ जाते (तब बात करते) तो ये उनके लिए बेहतर था। और अल्लाह तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  6. या, अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् जा- अकुम् फ़ासिक़ुम् बि-न-बइन् फ़-तबय्यनू अन् तुसीबू क़ौमम्-बि-जहालतिन् फ़तुस्बिहू अ़ला मा फ़-अ़ल्तुम् नादिमीन
    ऐ ईमानदारों! अगर कोई बदकिरदार तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए। तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो (ऐसा न हो) कि तुम किसी क़ौम को नादानी से नुक़सान पहुँचाओ फिर अपने किए पर नादिम हो।
  7. वअ्लमू अन् न फ़ीकुम् रसूलल्लाहि, लौ युतीअुकुम् फ़ी कसीरिम् मिनल् – अम्रि ल-अ़नित्तुम् व लाकिन्नल्ला-ह हब्ब-ब इलैकुमुल् – ईमा-न व ज़य्य-नहू फ़ी क़ुलूबिकुम् व कर्र-ह इलैकुमुल्-कुफ़्-र वल्फ़ुसू-क़- वल् – अिस्या-न, उलाइ-क हुमुर्-राशिदून
    और जान रखो कि तुम में अल्लाह के पैग़म्बर (मौजूद) हैं। बहुत सी बातें ऐसी हैं कि अगर रसूल उनमें तुम्हारा कहा मान लिया करें तो (उलटे) तुम ही मुश्किल में पड़ जाओ। लेकिन अल्लाह ने तुम्हें ईमान की मोहब्बत दे दी है और उसको तुम्हारे दिलों में उमदा कर दिखाया है। और कुफ़्र और बदकारी और नाफ़रमानी से तुमको बेज़ार कर दिया है। यही लोग अल्लाह के फ़ज़ल व एहसान से राहे हिदायत पर हैं।
  8. फ़ज़्लम्-मिनल्लाहि व निअ्-मतन्, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
    और अल्लाह तो बड़ा वाकि़फ़कार और हिकमत वाला है।
  9. व इन् ताइ-फ़तानि मिनल् – मुअ्मिनीनक़्त-तलू फ़-अस्लिहू बैनहुमा फ़-इम् ब-ग़त् इह्दाहुमा अ़लल्-उख़्रा फ़क़ातिलुल्लती तब्ग़ी हत्ता तफ़ी-अ इला अम्रिल्लाहि फ़-इन् फ़ाअत् फ़-अस्लिहू बैनहुमा बिल्अ़द्लि व अक़्सितू, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल्-मुक़्सितीन
    और अगर मोमिनीन में से दो फिरक़े आपस में लड़ पड़े तो उन दोनों में सुलह करा दो। फिर अगर उनमें से एक (फ़रीक़) दूसरे पर ज़्यादती करे तो जो (फिरक़ा) ज़्यादती करे तुम (भी) उससे लड़ो। यहाँ तक वह अल्लाह के हुक्म की तरफ रूझू करे। फिर जब रूजू करे तो फरीकै़न में मसावात के साथ सुलह करा दो। और इन्साफ़ से काम लो। बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है।
  10. इन्नमल्- मुअ्मिनू-न इख़्वतुन् फ़-अस्लिहू बै-न अ-ख़वैकुम् वत्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तुर्हमून
    मोमिनीन तो आपस में बस भाई भाई हैं। तो अपने दो भाईयों में मेल जोल करा दिया करो। और अल्लाह से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाए।
  11. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला यस्ख़र् कौमुम् – मिन् क़ौमिन् अ़सा अंय्यकूनू ख़ैरम्-मिन्हुम् व ला निसा-उम् मिन्-निसाइन् अ़सा अंय्यकुन्-न ख़ैरम् – मिन्हुन्-न व ला तल्मिज़ू अन्फ़ु-सकुम् व ला तनाबज़ू बिल्-अल्क़ाबि, बिअ् – स लिस्मुल् – फ़ुसूक़ु बअ्दल् – ईमानि व मल्-लम् यतुब् फ़-उलाइ-क हुमुज़्- ज़ालिमन्
    ऐ ईमानदारों! (तुम किसी क़ौम का) कोई मर्द ( दूसरी क़ौम के मर्दों की हँसी न उड़ाये मुमकिन है कि वह लोग (अल्लाह के नज़दीक) उनसे अच्छे हों। और न औरते औरतों से (तमसख़ुर करें) क्या अजब है कि वह उनसे अच्छी हों और तुम आपस में एक दूसरे को मिलने न दो। न एक दूसरे का बुरा नाम धरो। ईमान लाने के बाद बदकारी का नाम ही बुरा है। और जो लोग बाज़ न आएँ तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं।
  12. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुज्तनिबू क़सीरम् मिनज़्ज़न्नि इन्-न बअ्ज़ज़्ज़न्नि इस्मुंव्-व ला तजस्स-सू व ला यग़्तब् बअ्ज़ुकुम् बअ्ज़न्, अ-युहिब्बु अ-हदुकुम् अंय्यअ्कु-ल लहू-म अख़ीहि मैतन् “फ़-करिह्तुमूहु, वत्तक़ुल्ला-ह, इन्नल्ला-ह तव्वाबुर्रहीम
    ऐ ईमानदारों! बहुत से गुमान (बद) से बचे रहो। क्यों कि बाज़ बदगुमानी गुनाह हैं। और आपस में एक दूसरे के हाल की टोह में न रहा करो। और न तुममें से एक दूसरे की ग़ीबत करे। क्या तुममें से कोई इस बात को पसन्द करेगा कि अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए। तो तुम उससे (ज़रूर) नफ़रत करोगे। और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है।
  13. या अय्युहन्नासु इन्ना ख़लक्नाकुम् मिन् ज़-करिंव् व उन्सा व ज- अ़ल्नाकुम् शुअूबंव् व क़बाइ-ल लि-तआ़-रफ़ू, इन्-न अक्र-मकुम् अिन्दल्लाहि अत्क़ाकुम्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुन् ख़बीर
    लोगों! हमने तो तुम सबको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया। और हम ही ने तुम्हारे कबीले और बिरादरियाँ बनायीं ताकि एक दूसरे की शिनाख़्त करे। इसमें शक नहीं कि अल्लाह के नज़दीक तुम सबमें बड़ा इज़्ज़तदार वही है जो बड़ा परहेज़गार हो। बेशक! अल्लाह बड़ा वाकि़फ़कार ख़बरदार है।
  14. क़ालतिल्- अअ्-राबु आमन्ना, क़ुल्-लम् तुअ्मिनू व लाकिन् क़ूलू अस्लम्ना व लम्मा यद्ख़ुलिल्-ईमानु फ़ी क़ुलूबिकुम्, व इन् तुतीअुल्ला-ह व रसूलहू ला यलित्कुम् मिन् अअ्मालिकुम् शैअन् इन्नल्ला – ह ग़फ़ूरुर्रहीम
    अरब के देहाती कहते हैं कि हम ईमान लाए। (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम ईमान नहीं लाए। बल्कि (यूँ) कह दो कि इस्लाम लाए हालाँकि ईमान का अभी तक तुम्हारे दिल में गुज़र हुआ ही नहीं। और अगर तुम अल्लाह की और उसके रसूल की फरमाबरदारी करोगे। तो अल्लाह तुम्हारे आमाल में से कुछ कम नहीं करेगा। बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  15. इन्नमल्-मुअ्मिनूनल्लज़ी – न आमनू बिल्लाहि व रसूलिही सुम्- म लम् यर्ताबू व जा-हदू बिअम्वालिहिम् व अन्फ़ुसिहिम् फ़ी सबीलिल्लाहि, उलाइ – क हुमुस्सादिक़ून
    (सच्चे मोमिन) तो बस वही हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए। फिर उन्होंने उसमें किसी तरह का शक शुबह न किया। और अपने माल से और अपनी जानों से अल्लाह की राह में जेहाद किया। यही लोग (दावाए ईमान में) सच्चे हैं।
  16. क़ुल् अ-तुअ़ल्लिमूनल्ला-ह बिदीनिकुम्, वल्लाहु यअ्लमु मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, वल्लाहु
    बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
    (ऐ रसूल! इनसे) पूछो तो कि क्या तुम अल्लाह को अपनी दीदारी जताते हो। और अल्लाह तो जो कुछ आसमानों मे है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) जानता है। और अल्लाह हर चीज़ से ख़बरदार है।
  17. यमुन्नू न अ़लैक अन् अस्लमू, क़ुल् ला तमुन्नू अ़लय्-य इस्लामकुम् बलिल्लाहु यमुन्नु अ़लैकुम् अन् हदाकुम् लिल्ईमानि इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    (ऐ रसूल!) तुम पर ये लोग (इसलाम लाने का) एहसान जताते हैं। तुम (साफ़) कह दो कि तुम अपने इसलाम का मुझ पर एहसान न जताओ। (बल्कि) अगर तुम (दावाए ईमान में) सच्चे हो तो समझो कि, अल्लाह ने तुम पर एहसान किया कि उसने तुमको ईमान का रास्ता दिखाया।
  18. इन्नल्ला-ह यअ्लमु ग़ैबस्समावाति वल्अर्ज़ि, वल्लाहु बसीरुम् – बिमा तअ्मलून*
    बेशक अल्लाह तो सारे आसमानों और ज़मीन की छिपी हुयी बातों को जानता है। और जो तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है।

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