50 सूरह काफ़ हिंदी में पेज 1

50 सूरह काफ़ | Surah Qaf

सूरह काफ़ में 45 आयतें और 3 रुकू है। इसका नाम आरम्भ ही के अक्षर काफ़ से लिया गया है। सूरह काफ़ मक्का में नाजिल हुई। यह पारा 26 मे है। पूरी सूरह का विषय आख़िरत (परलोक) है।

50 सूरह काफ़ हिंदी में | Surah Qaf in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. क़ाफ़्। वल्-क़ुर्-आनिल् – मजीद
    क़ाफ़। शपथ है आदरणीय क़ुरान की!
  2. बल् अ़जिबू अन् जा-अहुम् मुन्ज़िरुम्- मिन्हुम् फ़क़ालल्-काफ़िरू-न हाज़ा शैउन् अ़जीब
    बल्कि उन्हें आश्चर्य हुआ कि उनके पास उन्हीं मे से एक सावधान करने वाला आ गया। तो काफ़िरों ने कहा: ये तो बड़े आश्चर्य की बात है।(कि हमारे जैसा एक मनुष्य रसूल कैसे हो गया?)
  3. अ-इज़ा मित्ना व कुन्ना तुराबन् ज़ालि-क रज्अुम्–बईद
    क्या जब हम मर जायेंगे और धूल हो जायेंगे (तो पुनः जीवित किये जायेंगे)? ये वापसी तो दूर की बात (असंभव) है।
  4. क़द् अ़लिम्ना मा तन्क़ुसुल्-अर्जु मिन्हुम् व अिन्दना किताबुन् हफ़ीज़
    हम जानते हैं धरती उनमें जो कुछ कमी करती है और हमारे पास सुरक्षित रखने वाली एक किताब[लौह़े मह़फ़ूज़] भी है।
  5. बल् क़ज़्ज़बू बिल्- हक़्क़ि लम्मा जा- अहुम् फ़हुम् फ़ी अम्म्रिम्-मरीज
    बल्कि उन्होंने सत्य को झुठला दिया जब वह उनके पास आया। अतः वे एक उलझन भरी बात में पड़े हुए हैं।
  6. अ-फ़ लम् यन्ज़ुरू इलस्समा-इ फ़ौक़हुम् कै-फ़ बनैनाहा व ज़य्यन्नाहा व मा लहा मिन् फ़ुरूज
    अच्छा तो क्या उन्होंने अपने ऊपर आकाश को नहीं देखा, हमने उसे कैसा बनाया और उसे सजाया। और उसमें कोई दरार नहीं।
  7. वल्अर्-ज़ मदद्नाहा व अल्क़ैना फ़ीहा रवासि-य व अम्बत्ना फ़ीहा मिन् कुल्लि ज़ौजिम्-बहीज
    और धरती को हमने फैलाया और उसमे पहाड़ डाल दिए। और हमने उसमें हर प्रकार की सुन्दर वनस्पतियाँ उगाईं।
  8. तब्सि – रतंव्-व ज़िक्रा लिकुल्लि अ़ब्दिम्-मुनीब
    आँखें खोलने और याद दिलाने के उद्देश्य से, हर उस बन्दे के लिए जो अल्लाह की ओर ध्यान करने वाला हो।
  9. व नज़्ज़ल्ना मिनस्समा-इ मा अम् मुबा-रकन् फ़-अम्बत्ना बिही जन्नातिंव्-व हब्बल्-हसीद
    और हमने आकाश से शुभ पानी उतारा, फिर उससे बाग़ और फ़सल के अनाज उगाये, जो काटे जायें।
  10. वन्नख़्-ल बासिक़ातिल्-लहा तल्अुन्- नज़ीद
    और ऊँचे-ऊँचे खजूर के वृक्ष उगाए जिनके गुच्छे गुथे हुए हैं।
  11. रिज़्कल्-लिल्अिबादि व अह्यैना बिही बल्द-तम्-मैतन्, कज़ालिकल्-ख़ुरूज
    बन्दों की रोज़ी के लिए। और हमने उस (पानी) के द्वारा निर्जीव धरती को जीवन प्रदान किया। इसी प्रकार (तुम्हें भी) निकलना है।
  12. कज़्ज़बत् क़ब्लहुम् क़ौमु नूहिंव्-व अस्हाबुर्रस्सि व समूदझुठलाया इससे पहले नूह़ की जाति तथा कुवें के वासियों एवं समूद ने।
  13. व आदुंव्-व फिर्-औ़नु व इख़्वानु लूततथा आद और फ़िरऔन एवं लूत के भाईयों ने।
  14. व अरहाबुल्-ऐ- कति व क़ौमु तुब्बअिन्, कुल्लुन् कज़्ज़- बर्रुसु-ल फ़-हक़्-क़ वईद‘अल-ऐका’ वाले और तुब्बा के लोग भी झुठला चुके हैं। प्रत्येक ने रसूलों को झुठलाया। अन्ततः मेरी धमकी सत्य होकर रही।
  15. अ-फ़-अ़यीना बिल्ख़ल्किल्- अव्वलि, बल् हुम् फ़ी लब्सिम्-मिन् ख़ल्किन् जदीद 
    क्या हम पहली बार पैदा करने से असमर्थ रहे? नहीं, बल्कि वे एक नये जीवन के विषय में सन्देह में पड़े हैं।
  16. व ल-क़द् ख़लक़्नल्-इन्सा-न व नअ्लमु मा तुवस्विसु बिही नफ़्सुहू व नह्नु अक़्रबु इलैहि मिन् हब्लिल् – वरीद
    हमने मनुष्य को पैदा किया है और हम जानते हैं जो बातें उसके जी में आती हैं। और हम उससे उसकी गरदन की रग से भी अधिक निकट हैं।
  17. इज़् य-तलक़्क़ल्-मु-तलक़्क़ियानि अ़निल्- यमीनि व अ़निश्शिमालि क़ईद
    जबकि (उसके) दायें-बायें दो फ़रिश्ते लिख रहे हैं।
    (अर्थात प्रत्येक व्यक्ति के दायें तथा बायें दो फ़रिश्ते नियुक्त हैं जो उस की बातों तथा कर्मों को लिखते रहते हैं। जो दायें है वह पुण्य को लिखता है और जो बायें है वह पाप को लिखता है।)
  18. मा यल्फ़िज़ु मिन् क़ौलिन् इल्ला लदैहि रक़ीबुन् अ़तीद
    कोई बात उसने कही नहीं कि उसके पास उसे लिखने के लिए एक निरीक्षक तैयार रहता है।
  19. व जाअत् सक्-रतुल्-मौति बिल्हक़्क़ि, ज़ालि-क मा कुन्-त मिन्हु तहीद
    और मौत की बेहोशी ले आई सत्य लेकर! यही वह चीज़ है जिससे तू कतराता था।
  20. व नुफ़ि-ख़ -फ़िस्सूरि, ज़ालि-क यौमुल्-वईद
    और फूँक दिया गया सूर (नरसिंघा) में। यही है वह दिन जिसकी धमकी दी गई थी।
  21. व जाअत् कुल्लु नफ़्सिम् म अ़हा सा-इक़ुंव्-व शहीद
    हर व्यक्ति इस दशा में आ गया कि उसके साथ एक लानेवाला है और एक गवाही देनेवाला।(यह दो फ़रिश्ते होंगे एक उसे ह़िसाब के लिये हाँक कर लायेगा, और दूसरा उस का कर्म पत्र परस्तुत करेगा।)
  22. ल-क़द् कुन्-त फ़ी ग़फ़्लतिम्-मिन् हाज़ा फ़-कशफ़्ना अ़न्-क ग़िता-अ-क फ़-ब-सरुकल्-यौ-म हदीदतू इस चीज़ की ओर से ग़फ़लत में था। अब हमने तुझसे तेरा परदा हटा दिया, तो तेरी आँख आज ख़ूब देख रही है।

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