70 सूरह मआरिज हिंदी में​

70 सूरह मआरिज | Surah Al Maarij

सूरह मआरिज में 44 आयतें और 2 रुकू हैं। यह सूरह मक्की है। यह सूरह पारा 29 में है। इस सूरह का नाम “तीसरी आयत के शब्द “उत्थान की सीढ़ियों का मालिक” (ज़िल-मआरिज) से लिया गया है।

इसमें उन काफ़िरों के लिए चेतावनी और नसीहत है जो क़यामत और आख़िरत की ख़बरों का मज़ाक उड़ाते थे और अल्लाह के रसूल को चुनौती देते थे कि अगर तुम सच्चे हो यदि ऐसा है तो वह कयामत लाओ जिससे तुम हमें डराते हो।

सूरह मआरिज हिंदी में | Surah Al Maarij in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. स-अ-ल साइलुम्-बि-अ़ज़ाबिंव् – वाक़िअिल्
    एक माँगने वाले ने काफ़िरों के लिए होकर रहने वाले अज़ाब को माँगा। (कहा जाता है नज़्र पुत्र ह़ारिस अथवा अबू जह्ल ने यह माँग की थी कि “हे अल्लाह! यदि यह सत्य है तेरी ओर से तू हम पर आकाश से पत्थर बरसा दे।)
  2. लिल्-काफ़िरी-न लै-स लहू दाफ़िअुम्
    जिसको कोई टाल नहीं सकता।
  3. मिनल्लाहि जिल्-मआ़रिज
    जो ऊँचाईयों वाले अल्लाह की तरफ़ से (होने वाला) था।
  4. त़अ् रुजुल् मलाइ – कतु वर्रूहु इलैहि फी यौमिन् का-न मिक्दारुहू ख़म्सी – न अल्-फ स-नतिन्
    जिसकी तरफ फ़रिश्ते और रूह(फ़रिश्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम) चढ़ते हैं। (और ये) एक दिन में इतनी दूरी तय करते हैं जिसका अन्दाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा।
  5. फ़स्बिर सब्रन् जमीला
    तो तुम अच्छी तरह इन तक़लीफों को बरदाश्त करते रहो। (अर्थात संसार में सत्य को स्वीकार करने से)
  6. इन्नहुम् यरौनहू बईदंव्
    वह (क़यामत) उनकी निगाह में बहुत दूर है।
  7. व नराहु क़रीबा
    और हमारी नज़र में नज़दीक है।
  8. यौ – म तकूनुस्समा – उ कल्मुहिल
    जिस दिन आसमान पिघले हुए ताँबे का सा हो जाएगा।
  9. व तकूनुल्-जिबालु कल्अिह्नि
    और पहाड़ धुनके हुए ऊन का सा।
  10. व ला यस् अलु हमीमुन् हमीमंय्
    बावजूद कि एक दूसरे को देखते होंगे कोई किसी दोस्त को न पूछेगा।
  11. युबस्सरू-नहुम्, य-वद्दुल्-मुज्-रिमु लौ यफ़्तदी मिन् अज़ाबि यौमिइज़िम् बि-बनीहि
    पापी तो आरज़ू करेगा कि काश उस दिन के दण्ड के बदले उसके बेटों को दे दे।
  12. व साहि-बतिही व अखीहि
    और उसकी बीवी और उसके भाई।
  13. व फ़सी – लतिहिल्लती तुअ् वीहि
    और समीपवर्ती परिवार को जिसमें वह रहता था।
  14. व मन् फिल्अर्ज़ि जमींअन् सुम्-म युन्जीहि
    और जितने आदमी ज़मीन पर हैं सब को ले ले और उसको छुटकारा दे दें।
  15. कल्ला, इन्नहा लज़ा
    (मगर) ये कदापि न होगा।
  16. नज़्ज़ा-अ़तल्- लिश्शवा
    जहन्नुम की वह भड़कती आग है कि खाल उधेड़ कर रख देगी।
  17. तद्अू  मन् अद्-ब-र व त-वल्ला
    (और) उन लोगों को अपनी तरफ़ बुलाती होगी।
  18. व ज-म-अ़ फ़औआ़
    जिन्होंने (दीन से) पीठ फेरी और मुँह मोड़ा और (माल जमा किया)।
  19. इन्नल्-इन्सा-न खुलि-क़ हलूआ
    और बन्द कर रखा बेशक इन्सान बड़ा लालची पैदा हुआ है।
  20. इज़ा मस्सहुश्शर्रु ज़ज़ूआ
    जब उसे तक़लीफ छू भी गयी तो घबरा गया।
  21. व इज़ा मस्सहुल्-ख़ैरु मनूआ
    किन्तु जब उसे सम्पन्नता प्राप्त होती है तो वह कृपणता दिखाता है।
  22. इल्लल्-मुसल्लीन
    मगर जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं।
  23. अल्लज़ी – न हुम् अ़ला सलातिहिम् दा-इमून
    जो अपनी नमाज़ पर सदैव जमे रहते हैं।
  24. वल्लज़ी-न फ़ी अम्वालिहिम् हक्कुम्- मअ्लूम
    और जिनके माल में माँगने वाले और न माँगने वाले के।
  25. लिस्सा-इलि वल्-महरूम
    लिए एक निश्चित हिस्सा है।
  26. वल्लज़ी-न युसद्दिक़ू-न बियौमिद्- दीन
    और जो लोग प्रलय की तस्दीक़ करते हैं।
  27. वल्लज़ी-न हुम् मिन् अज़ाबि रब्बिहिम् मुश् फिक़ून
    और जो लोग अपने परवरदिगार के यातना से डरते रहते हैं।
  28. इन्-न अज़ा-ब रब्बिहिम् ग़ैरु मअ्मून
    वास्तव में, आपके पालनहार की यातना निर्भय रहने योग्य नहीं है।
  29. वल्लज़ी – न हुम् लिफ़ुरुजिहिम् हाफ़िज़ून
    और जो लोग अपनी शर्मगाहों को अपनी बीवियों और अपनी लौन्डियों के सिवा से हिफाज़त करते हैं।
  30. इल्ला अला अज़वाजिहिम् औ मा म-लकत् ऐमानुहुम् फ-इन्नहुम् गैरु मलूमीन
    तो इन लोगों की हरगिज़ भर्त्सना न की जाएगी।
  31. फ-मनिब्तग़ा वरा-अ ज़ालि-क फ-उलाइ – क हुमुल्-आदून
    तो जो लोग उनके सिवा और के चाहने वाले हों तो यही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं।
  32. वल्लज़ी-न हुम् लि-अमानातिहिम् व अहिदहिम् राज़ून
    और जो लोग अपनी अमानतों और वचन का पालन करते हैं।
  33. वल्लज़ी – न हुम् बि-शहादातिहिम् का-इमून
    और जो लोग अपनी गवाहियों पर क़ायम रहते हैं।
  34. वल्लज़ी-न हुम् अला सलातिहिम् युहाफ़िज़ून
    और जो लोग अपनी नमाज़ो का ख़्याल रखते हैं।
  35. उलाइ – क फ़ी जन्नातिम्-मुक्रमून
    यही लोग स्वर्ग के बाग़ों में इज़्ज़त से रहेंगे।
  36. फ़मालिल्लज़ी-न क-फरू कि-ब-ल- क मुहितईन
    तो (ऐ रसूल) इनकार करनेवालों को क्या हो गया है।
  37. अनिल्-यमीनि व अनिश्शिमालि अिज़ीन
    कि तुम्हारे पास गिरोह समूहों में बाएँ से दौड़े चले आ रहे हैं।
  38. अ-यत्मऊ कुल्लुरिइम् – मिन्हुम् अय्युख़-ल जन्नत नईम
    क्या इनमें से हर शख़्स इस का लालचीहै कि चैन के बाग़ (स्वर्ग) में दाखि़ल होगा।
  39. कल्ला, इन्ना ख़लक़्नाहुम् मिम्मा यअ्लमून
    हरगिज़ नहीं हमने उनको जिस (गन्दी) चीज़ से पैदा किया ये लोग जानते हैं।
  40. फला उक्सिमु बिरब्बिल्-मशारिक़ि वल्-मग़ारिबि इन्ना ल-क़ादिरून
    तो मैं पूर्वों तथा पश्चिमों के परवरदिगार की क़सम खाता हूँ कि वास्तव में हम अवश्य सामर्थ्यवान हैं।
  41. अला अन् नुबद्दि – ल ख़ैरम् – मिन्हुम् व मा नह्नु बिमस्बूकीन
    कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला (बसाएँ) और हम विवश नहीं हैं।
  42. फ-ज़रहुम् यख़ूज़ू व यल् अबू हत्ता युलाक़ू यौमहुमुल्लज़ी यू- अदून
    अतः उन्हें छोड़ो कि वे व्यर्थ बातों में पड़े रहें और खेलते रहें, यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो।
  43. यौ-म यख् रुजु न मिनल्-अज्दासि सिराअन् क- अन्नहुम् इला नुसुबिंय् – यूफिज़ून
    उसी दिन ये लोग क़ब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे। गोया वह किसी झन्डे की तरफ़ दौड़े चले जाते हैं।
  44. ख़ाशि-अतन् अब्सारुहुम् तर्-हक़ुहुम् ज़िल्लतुन्, ज़ालिकल् यौमुल्लज़ी कानू यू-अदून
    (निदामत से) उनकी आँखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुयी होगी। ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था।

सूरह मआरिज वीडियो | Surah Al Maarij Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!