32 सूरह अस सज्दह हिंदी में पेज 1

32 सूरह अस सजदह | Surah As-Sajdah

सूरह अस-सजदा में 30 आयतें और 3 रुकू हैं। सूरह सजदा मक्का में उतरी।
यह सूरह पारा 21 मे है। इस सूरह का नाम आयत 15 में आये सज्दा के प्रसंग से दिया गया है।

सूरह अस सजदह हिंदी में | Surah As-Sajdah in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है।

  1. अलिफ़्-लाम्-मीम्
    अलिफ लाम मीम।
  2. तन्ज़ीलुल् – किताबि ला रै – ब फीहि मिर्रब्बिल – आलमीन
    इसमे कुछ शक नहीं कि किताब क़ुरान का उतारना सारे जहाँ के पालनहार की तरफ से है।
  3. अम् – यक़ूलूनफ़्तराहु बल् हुवल्-हक़्क़ू मिर्रब्बि-क लितुन्ज़ि-र क़ौमम् – मा अताहुम् मिन् नज़ीरिम् – मिन् क़ब्लि-क लअ़ल्लहुम् यह्तदून
    क्या ये लोग ये कहते हैं कि इसको इस शख़्स (रसूल) ने अपनी जी से गढ़ लिया है। नहीं ये बिल्कुल तुम्हारे पालनहार की तरफ से सत्य है ताकि तुम उन लोगों को (अल्लाह के दण्ड से) सावधान करें जिनके पास तुमसे पहले कोई सावधान करने वाला आया ही नहीं। ताकि ये लोग राह पर आएँ।
  4. अल्लाहुल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वल् अर् ज़ व मा बैनहुमा फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अ़लल्-अ़र्शि, मा लकुम् मिन् दूनिही मिंव्वलिय्यिंव्-वला शफ़ीअिन्, अ-फ़ला त-तज़क्करून
    अल्लाह ही तो है जिसने सारे आसमान और ज़मीन और जितनी चीज़े इन दोनो के बीच हैं छहः दिन में पैदा की। फिर आकाश (के बनाने) पर आमादा हुआ। उसके सिवा न कोई तुम्हारा संरक्षक है न कोई सिफारिशी। तो क्या तुम (इससे भी) शिक्षा हासिल नहीं करते।
  5. युदब्बिरुल् – अम् – र मिनस्समा – इ इलल् – अर्ज़ि सुम्-म यअ्-रुजु इलैहि फ़ी यौमिन् का-न मिक़्दारुहू अल्-फ़ स-नतिम् – मिम्मा तअुद्-दून
    आसमान से ज़मीन तक के हर कार्य का वही उपाय करता है। फिर ये बन्दोबस्त उस दिन जिस की माप तुम्हारी गणना से हज़ार बरस से होगी उसी के सामने पेश होगा।
  6. ज़ालि-क आ़लिमुल् – ग़ैबि वश्शहा-दतिल् अ़ज़ीजुर् – रहीम
    वही ज्ञानी छुपे तथा खुले का जानने वाला अत्यन्त प्रभुत्वशाली, मेहरबान है।
  7. अल्लज़ी अह्स-न कुल्-ल शैइन् ख़-ल- क़हू व ब-द-अ ख़ल्क़ल् – इन्सानि मिन् तीन
    वह (अल्लाह) जिसने जो चीज़ बनाई ख़ूब (ठीक) बनाई। और आरंभ के इन्सान की उत्पत्ति मिट्टी से की।
  8. सुम्-म ज-अ़-ल नस्- लहु मिन् सुला-लतिम् मिम्मा-इम्- महीन
    उसका वंश (इन्सानी जिस्म के) बनाया ज़लील पानी से (यानी वीर्य से) बनाई।
  9. सुम् – म सव्वाहु व न-फ़-ख़ फ़ीहि मिर्रूहिही व ज-अ़-ल लकुमुस्- सम्-अ़ वल्-अब्सा – र वल्- अफ्इ-द-त, क़लीलम् – मा तश्कुरून
    फिर उस (के पुतले) को ठीक किया और उसमें अपनी तरफ से रुह फूँकी। और तुम लोगों के (सुनने के) लिए कान और (देखने के लिए) आँखें और (समझने के लिए) दिल बनाएँ (इस पर भी) तुम लोग बहुत कम आभारी होते  हो।
  10. व कालू अ- इज़ा ज़लल्ना फ़िल्अर्ज़ि अ-इन्ना लफ़ी ख़ल्किन् जदीदिन्, बल् हुम् बिलिक़ा – इ रब्बिहिम् काफ़िरून
    और ये लोग कहते हैं कि जब हम ज़मीन में मिल जाएँगे। तो क्या हम फिर नया जन्म लेगे (क़यामत से नही) बल्कि ये लोग अपने पालनहार के (सामने मिलने का) से इन्कार रखते हैं।
  11. कुल् य-तवफ़्फ़ाकुम् म-लकुल्-मौतिल्लज़ी वुक्कि – ल बिकुम् सुम्- म इला रब्बिकुम् तुर्जअून
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मल्कुलमौत(मृत्यु का फ़रिश्ता) जो तुम्हारे ऊपर तैनात है वही तुम्हारा प्राण निकाल लेगा। उसके बाद तुम सबके सब अपने पालनहार की तरफ लौटाए जाओगे।
  12. व लौ तरा इज़िल् – मुज्रिमू – न नाकिसू रुऊसिहिम् अिन्- द रब्बिहिम्, रब्बना अब्सर्न व समिअ्ना फ़र्जिअ़ना नअ्मल् सालिहन् इन्ना मूक़िनून
    और (ऐ रसूल) तुम को बहुत अफसोस होगा अगर तुम मुजरिमों को देखोगे कि वह (हिसाब के वक़्त) अपने पालनहार के सामने अपने सर झुकाए खड़े हैं। और(कह रहे होंगे) पालनहार हमने (अच्छी तरह) देखा और सुन लिया। तू हमें दुनिया में एक दफा फिर लौटा दे कि हम नेक काम करें।
  13. व लौ शिअ्ना लआतैना कुल्-ल नफ़्सिन् हुदाहा व लाकिन् हक़्क़ल् – क़ौलु मिन्नी ल-अम्-लअन् न जहन्न-म मिनल्- जिन्नति वन्नासि अज्मई
    और अब तो हमको (क़यामत का) पे पूरा पूरा यक़ीन है। और (अल्लाह फरमाएगा कि) अगर हम चाहते तो दुनिया ही में हर शख़्स को (मजबूर करके) पुण्य मार्ग पर ले आते। मगर मेरी तरफ से (रोजे़ अज़ा) ये बात सत्य होकर रही कि मै जहन्नुम को जिन्नों और आदमियों से भर दूँगा।
  14. फ़ज़ूक़ू बिमा नसीतुम् लिक़ा – अ यौमिकुम् हाज़ा इन्ना नसीनाकुम् व ज़ूक़ू अ़ज़ाबल् – ख़ुल्दि बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    तो चूँकि तुम आज के दिन मिलने को भूले बैठे थे। तो अब उसका मज़ा चखो हमने तुमको क़सदन भुला दिया। और जैसी जैसी तुम्हारी करतूतें थीं (उनके बदले) अब हमेशा के यातना के मज़े चखो।
  15. इन्नमा युम्मिनु बिआयातिनल्लज़ी – न इज़ा जुक्किरू बिहा ख़र्रू सुज्जदंव्-व सब्बहू बिहम्दि रब्बिहिम् व हुम् ला यस्तक्बिरून *सज्दा*
    हमारी आयतों पर ईमान बस वही लोग लाते हैं कि जिस वक़्त उन्हें वह (आयते) याद दिलायी गयीं तो फौरन सजदे में गिर जाते हैं। और अपने पालनहार की पवित्रता का गान करने लगे। और ये लोग अभिमान नही करते।
  16. त – तजाफ़ा जुनूबुहुम् अ़निल् – मज़ाजिअि यद्अू-न रब्बहुम् ख़ौफंव्-व त-मअंव्-व मिम्मा रज़क्नाहुम् युन्फिक़ून
    (रात) के वक़्त उनके पहलू बिस्तरों से अलग रहते हैं और (अज़ाब के) ख़ौफ और (रहमत की) उम्मीद पर अपने पालनहार की प्रार्थना करते हैं। और हमने जो कुछ उन्हें  दिया है उसमें से (अल्लाह की) राह में ख़र्च करते हैं।
  17. फ़ला तअ्लमु नफ़्सुम् – मा उख़्फ़ि-य लहुम् मिन् क़ुर्रति अअ्युनिन् जज़ा – अम् बिमा कानू यअ्मलून
    उन लोगों की कारगुज़ारियों के बदले में कैसी कैसी आँखों की ठन्डक उनके लिए ढकी छिपी रखी है। उसको कोई शख़्स जानता ही नहीं।
  18. अ-फ़-मन् का-न मुअ्मिनन् कमन् का-न फ़ासिक़न्, ला यस्तवून
    तो क्या जो शख़्स ईमानदार है। उस शख़्स के बराबर हो जाएगा जो अवज्ञाकारी है। (हरगिज़ नहीं) ये दोनों बराबर नही हो सकते।
  19. अम्मल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति फ़-लहुम् जन्नातुल्- मअ्वा नुज़ुलम् बिमा कानू यअ्मलून
    लेकिन जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम किए। उनके लिए तो रहने के लिए (स्वर्ग के) बाग़ हैं। ये अतिथि सत्कार उन कारगुज़ारियों का बदला है जो वह (दुनिया में) कर चुके थे।
  20. व अम्मल्लज़ी-न फ़-सक़ू फ़-मअ्वाहुमुन्नारु, कुल्-लमा अरादू अंय्यख़्-रुजू मिन्हा उईदू फ़ीहा व क़ी-ल लहुम् ज़ूक़ू अ़ज़ाबन्नारिल्लज़ी कुन्तुम् बिही तुकज़्ज़िबून
    और जिन लोगों ने  सीमा का उल्लंघन किया उनका ठिकाना तो (बस) नरक है। वह जब उसमें से निकल जाने का इरादा करेंगे तो उसी में फिर ढकेल दिए जाएँगे। और उन से कहा जाएगा कि नरक के जिस यातना को तुम झुठलाते थे। अब उसके मज़े चखो।

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