31 सूरत लुकमान हिंदी में पेज 1

31: सूरत लुकमान | Surah Luqman

(मक्की) सूरत लुक्मान में 34 आयतें और 4 रुकू हैं। सूरए लुक़मान मक्का में नाजि़ल हुआ। यह सूरह पारा 21 मे है।

इस का नाम रखने का कारण इस सूरह की आयत 12 से 19 तक में वे उपदेश लिए गए हैं, जो हकीम लुकमान ने अपने बेटे को किए थे। इसी लिये इसका नाम लुकमान रखा गया है।

सूरत लुकमान हिंदी में | Surah Luqman in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

  1. अलिफ़् – लाम्-मीम्
    अलिफ, लाम, मीम।
  2. तिल् – क आयातुल्-किताबिल्-हकीम
    ये आयतें हैं ज्ञानपूर्ण पुस्तक की।
  3. हुदंव् – व रह्म-तल् लिल्मुह्सिनीन
    मार्गदर्शन तथा दया है सदाचारियों के लिए।
  4. अल्लज़ी-न यु क़ीमूनस्- सला- त व युअ्तूनज़्-ज़का-त व हुम् बिल्- आख़िरति हुम् यूक़िनून
    जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं और ज़कात देते हैं और वही लोग आखि़रत का भी यक़ीन रखते हैं।
  5. उलाइ – क अ़ला हुदम्-मिर्रब्बिहिम् व उलाइ – क हुमुल् – मुफ़्लिहून
    यही लोग अपने परवरदिगार के सुपथ पर हैं। और यही लोग (क़यामत में) अपनी दिली मुरादें पाएँगे।
  6. व मिनन्नासि मंय्यश्तरी लह्वल्-हदीसि लियुज़िल्-ल अ़न् सबीलिल्लाहि बिग़ैरि अिल्मिंव्-व यत्तख़ि- ज़हा हुज़ुवन्, उलाइ-क लहुम् अज़ाबुम् – मुहीन
    और लोगों में बाज़ (नज़र बिन हारिस) ऐसा है जो बेहूदा कि़स्से (कहानियाँ) ख़रीदता है ताकि बग़ैर समझे बूझे (लोगों को) अल्लाह की (सीधी) राह से भड़का दे। और आयातें अल्लाह से मसख़रापन करे ऐसे ही लोगों के लिए बड़ा अपमानकारी यातना है।
  7. व इज़ा तुत्ला अ़लैहि आयातुना वल्ला मुस्तक्बिरन् क-अल्लम् यस्मअ्हा क-अन्-न फ़ी उज़ुनैहि वक्रन् फ़-बश्शिर्-हु बि- अ़ज़ाबिन् अलीम
    और जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो शेखी के मारे मुँह फेरकर (इस तरह) चल देता है जैसे उसने इन आयतों को सुना ही नहीं। जैसे उसके दोनो कान बहरे हैं। तो (ऐ रसूल) तुम उसको  दुःखदायी यातना की (अभी से) खुशख़बरी दे दे।
  8. इन्नल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति लहुम् जन्नातुन्- नईम
    वस्तुतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे काम किए।उनके लिए सुख के (हरे भरे) बाग़ हैं कि यो उनमें हमेशा रहेंगे।
  9. ख़ालिदी-न फ़ीहा, वदल्लाहि ह क़्क़न्, व हुवल् – अ़ज़ीज़ुल् – हकीम
    ये अल्लाह का पक्का वायदा है। और वह तो (सब पर) प्रभुत्वशाली, सर्व ज्ञानी है।
  10. ख़-लक़स्समावाति बिग़ैरि अ़-मदिन् तरौनहा व अल्क़ा फ़िल्अर्ज़ि रवासि-य अन् तमी-द बिकुम् व बस्- स फ़ीहा मिन् कुल्लि दाब्बतिन्, व अन्ज़ल्ना मिनस्समा – इ मा – अन् फ़- अम्बत्ना फ़ीहा मिन् क़ुल्लि ज़ौजिन् करीम
    उसने आकाशों को पैदा किया, (जो थमे हुए हैं) बिना ऐसे स्तम्भों के जो तुम्हें दिखाई दें। और उसने धरती में पहाड़ डाल दिए कि ऐसा न हो कि तुम्हें लेकर डाँवाडोल हो जाए। और उसने उसमें हर प्रकार के जानवर फैला दिए। और हमने ही आकाश से पानी उतारा, फिर उसमें हर प्रकार की उत्तम चीज़ें उगाईं।
  11. हाज़ा ख़ल्क़ुल्लाहि फ़-अरूनी माज़ा ख़-लक़ल्लज़ी – न मिन् दूनिही, बलिज़्ज़ालिमू-न फ़ी ज़लालिम् – मुबीन
    (ऐ रसूल उनसे कह दो कि) ये तो अल्लाह की उत्पत्ति है कि (भला) तुम लोग मुझे दिखाओं। तो कि जो (जो माबूद) अल्लाह के सिवा तुमने बना रखे है उन्होंने क्या पैदा किया। बल्कि अत्याचारी लोग (कुफ़्फ़ार) खुले कुपथ में (पडे़) हैं।
  12. व ल-क़द् आतैना लुक़्मानल्- हिक्म-त अनिश्कुर् लिल्लाहि, व मंय्यश्कुर् फ़-इन्नमा यश्कुरु लिनफ़्सिही व मन् क-फ़-र फ़-इन्नल्ला – ह ग़निय्युन् हमीद
    और यक़ीनन हम ने लुक़मान को शिक्षा अता की (और हुक्म दिया था कि) तुम अल्लाह का शुक्र करो। और जो अल्लाह का शुक्र करेगा, वह अपने ही फायदे के लिए शुक्र करता है। और जिसने नाशुक्री की तो (अपना बिगाड़ा) क्योंकी अल्लाह तो (बहरहाल) निःस्वार्थ (और) सराहनीय है।
  13. व इज़् क़ा-ल लुक़्मानु लिब्निही व हु-व यअिजुहू या – बुनय्-य ला तुश्रिक् बिल्लाहि, इन्नश्शिर्-क ल- ज़ुल्मुन् अ़ज़ीम
    और (वह वक़्त याद करो) जब लुक़मान ने अपने बेटे से उसकी नसीहत करते हुए कहा। ऐ बेटा! (ख़बरदार कभी किसी को) अल्लाह का शरीक न बनाना। (क्योंकि) शिर्क यक़ीनी बड़ा सख़्त गुनाह है।
  14. व वस्सैनल् – इन्सा-न बिवालिदैहि ह – मलत्हू उम्मुहू वह्नन् अ़ला वह्निंव्-व फ़िसालुहू फ़ी आ़मैनि अनिश्कुर् ली व लिवालिदै – क, इलय्यलू – मसीर
    (जिस की बख्शिश नहीं) और हमने इन्सान को जिसे उसकी माँ ने दुख पर दुख सह के पेट में रखा। (इसके अलावा) दो बरस में (जाके) उसका दूध छुड़ाया। उसके माँ बाप के बारे में ताक़ीद की कि मेरा भी शुक्रिया अदा करो और अपने माता-पिता का (भी)। और आखि़र सबको मेरी तरफ लौट कर जाना है।
  15. व इन् जा-हदा-क अला अन् तुश्रि- क बी मा लै – स ल क बिही इल्मुन् फ़ला तुति अ्हुमा व साहिब्हुमा फ़िद्-दुन्या – मअ्-रूफंव्-वत्तबिअ् सबी-ल मन् अना-ब इलय् य सुम्-म इलय् य मर्जिअुकुम् फ़-उनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    और अगर तेरे माँ बाप तुझे इस बात पर मजबूर करें कि तू मेरा शरीक ऐसी चीज़ को क़रार दे जिसका तुझे इल्म भी नहीं तो तू (इसमें)  न मानो उन दोनों की बात। (मगर तकलीफ़ न पहुँचाना) और दुनिया (के कामों) में उनका अच्छी तरह साथ दे। और उन लोगों के तरीक़े पर चल, जो (हर बात में) मेरी (ही) तरफ ध्यानमग्न हो। फिर (तो आखि़र) मेरी ही ओर तुम्हें फिरकर आना है तब (दुनिया में) जो कुछ तुम करते थे।
  16. या बुनय्-य इन्नहा इन् तकु मिस्क़ा-ल हब्बतिम् मिन् ख़र्-दलिन् फ़-तकुन् फ़ी सख्रतिन् औ फ़िस्समावाति औ फिल्अर्ज़ि यअ्ति बिहल्लाहु, इन्नल्ला-ह लतीफ़ुन् ख़बीर
    (उस वक़्त उसका अन्जाम) बता दूँगा। ऐ बेटा! इसमें शक नहीं कि वह अमल (अच्छा हो या बुरा)। अगर राई के बराबर भी हो और फिर वह किसी सख़्त पत्थर के अन्दर या आसमान में या ज़मीन मे (छुपा हुआ) हो तो भी अल्लाह उसे (क़यामत के दिन) हाजि़र कर देगा। वास्तव में, अल्लाह, सब छोटी बातों से सूचित है।
  17. या बुनय्-य अक़िमिस्सला-त वअ्मुर् बिल्मअ्-रूफ़ि वन्-ह अ़निल्-मुन्करि वस्बिर् अ़ला मा असा-ब-क, इन्- न ज़ालि-क मिन् अ़ज़्मिल् – उमूर
    ऐ बेटा! नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा कर और (लोगों से) अच्छा काम करने को कहो। और बुरे काम से रोको। और जो मुसीबत तुम पर पडे़ उस पर सब्र करो। (क्योंकि) बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है।
  18. व ला तुसअ्अिर् खद्द-क लिन्नासि व ला तम्शि फ़िल्अर्ज़ि म-रहन्, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बु कुल्-ल मुख़्तालिन् फ़ख़ूर
    और लोगों के सामने (गु़रुर से) अपना मुँह न फुलाना और ज़मीन पर अकड़कर न चलना। क्योंकि अल्लाह किसी अकड़ने वाले और इतराने वाले को दोस्त नहीं रखता। 
  19. वक़्सिद् फ़ी मश्यि-क वग्ज़ुज़् मिन् सौति-क, इन्-न अन्करल्- अस्वाति लसौतुल् – हमीर
    और अपनी चाल ढाल में संतुलन रख। और दूसरो से बोलने में अपनी आवाज़ धीमी रखो क्योंकि आवाज़ों में तो सब से बुरी आवाज़ (चीख़ने की वजह से) गधों की है।
  20. अलम् तरौ अन्नल्ला-ह सख़्ख़-र लकुम् मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि व अस्ब-ग़ अ़लैकुम् नि-अ़-महू ज़ाहि-रतंव्-व बाति-नतन्, व मिनन्नासि मंय्युजादिलु फ़िल्लाहि बिग़ैरि अिल्मिंव्-व ला हुदंव्-व ला किताबिम् मुनीर
    क्या तुम लोगों ने इस पर ग़ौर नहीं किया कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (सब कुछ)।अल्लाह ही ने यक़ीनी तुम्हारे वश में कर दिया है और तुम पर अपनी खुली तथा छुपी नेअमतें पूरी कर दीं और कुछ लोग (नुसर बिन हारिस वगै़रह) ऐसे भी हैं जो (बिना किसी बात के) अल्लाह के बारे में झगड़ते हैं (हालांकि उनके पास) न इल्म है और न मार्गदर्शन है और न कोई रौशन किताब है।

सूरत लुकमान वीडियो | Surah Luqman Video

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