36 सूरह यासीन​ हिन्दी में पेज 1

36 सूरह यासीन शरीफ़ | Surah Ya-Sin

सूरह यासीन मक्का में उतरी, इसमें 83 आयतें और पांच रूकू हैं। सात सौ उनतीस कलिमे और तीन हज़ार अक्षर हैं। यह सूरह पारा 22 और पारा 23 में है।

हदीस शरीफ में आया हैं की रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया – मरने वाले के पास यासीन शरीफ पढ़ो। इसकी बरकत से मरने वाले की रूह आसानी से कब्ज़ की जाती है।  इंतकाल के बाद इसे पढ़कर इसाले सवाब करोगे तो उसके गुनाह बख्श दिए जाएंगे, कब्र पर पढ़ोगे तो बख्श दिया जाएगा।

एक रिवायत में है की हुज़ूर सल्लल लहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मेरा दिल चाहता है कि सूरह यासीन मेरे हर उम्मती के दिल में हो यानी हर उम्मती को ज़ुबानी याद हो।

पढ़कर किसी पर दम करने से शैतानी साया दूर हो जाता है जो इंसान जुम्मे के दिन सूरह यासीन पढ़ेगा, अल्लाह पाक उसकी मुराद पूरी फरमाएंगे।

जो आदमी हर रोज़ अपने मां-बाप को सवाब पहचाने की नियत से सूरह यासीन पढ़ता है तो उनकी गिनती वालेदैन के फर्माबरदार में होती है। जो आदमी रोजी की बरकत तरक्की के लिए पढ़ता है तो उसकी रोजी में बरकत हो जाती है। जो मुसीबत के वक्त पढ़ेगा तो उसकी परेशानियां दूर हो जाएगी।

सूरह यासीन शरीफ़ हिन्दी में | Surah Yasin in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रही
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है

  1. यासीन
    यासीन।
  2. वल कुर आनिल हकीम
    इस पुरअज़ हिकमत कु़रान की क़सम।
  3. इन्नका लमिनल मुरसलीन
    (ऐ रसूल!) तुम बिलाशक यक़ीनी पैग़म्बरों में से हो।
  4. अला सिरातिम मुस्तकीम
    (और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो।
  5. तनजीलल अजीज़िर रहीम
    जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (अल्लाह) का नाजि़ल किया हुआ (है)।
  6. लितुन ज़िरा कौमम मा उनज़िरा आबाउहुम फहुम गाफिलून
    ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाबे अल्लाह से) डराओ जिनके बाप दादा (तुमसे पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नहीं गए।
  7. लकद हक कल कौलु अला अकसरिहिम फहुम ला युअ’मिनून
    तो वह दीन से बिल्कुल बेख़बर हैं उन में अक्सर तो (अज़ाब की) बातें यक़ीनन बिल्कुल ठीक पूरी उतरे ये लोग तो ईमान लाएँगे नहीं।
  8. इन्ना जअल्ना फी अअ’ना किहिम अगलालन फहिया इलल अजक़ानि फहुम मुक़महून
    हमने उनकी गर्दनों में (भारी-भारी लोहे के) तौक़ डाल दिए हैं और ठुड्डियों तक पहुँचे हुए हैं कि वह गर्दनें उठाए हुए हैं (सर झुका नहीं सकते)।
  9. व जअल्ना मिम बैनि ऐदी हिम सद्दव वमिन खलफिहिम सद्दन फअग शैनाहुम फहुम ला युबसिरून
    हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे फिर ऊपर से उनको ढाँक दिया है तो वह कुछ देख नहीं सकते।
  10. वसवाउन अलैहिम अअनजर तहुम अम लम तुनजिरहुम ला युअ’मिनून
    और (ऐ रसूल!) उनके लिए बराबर है ख़्वाह तुम उन्हें डराओ या न डराओ ये (कभी) ईमान लाने वाले नहीं हैं।
  11. इन्नमा तुन्ज़िरू मनित तब अज़ ज़िकरा व खशियर रहमान बिल्गैब फबश्शिर हु बिमग फिरतिव व अजरिन करीम
    तुम तो बस उसी शख़्स को डरा सकते हो जो नसीहत माने और बेदेखे भाले अल्लाह का ख़ौफ़ रखे तो तुम उसको (गुनाहों की) माफी और एक बाइज़्ज़त (व आबरू) अज्र की खु़शख़बरी दे दो।
  12. इन्ना नहनु नुहयिल मौता वनकतुबु मा क़द्दमु व आसारहुम वकुल्ला शयइन अहसैनाहु फी इमामिम मुबीन
    हम ही यक़ीन्न मुर्दों को जि़न्दा करते हैं और जो कुछ लोग पहले कर चुके हैं (उनको) और उनकी (अच्छी या बुरी बाक़ी माँदा) निशानियों को लिखते जाते हैं और हमने हर चीज़ का एक सरीह व रौशन पेशवा में घेर दिया है।
  13. वज़ रिब लहुम मसलन असहाबल करयह इज़ जा अहल मुरसळून
    और (ऐ रसूल!) तुम (इनसे) मिसाल के तौर पर एक गाँव (अता किया) वालों का कि़स्सा बयान करो जब वहाँ (हमारे) पैग़म्बर आए।
  14. इज़ अरसलना इलयहिमुस नैनि फकज जबूहुमा फ अज़ ज़ज्ना बिसा लिसिन फकालू इन्ना इलैकुम मुरसळून
    इस तरह कि जब हमने उनके पास दो (पैग़म्बर योहना और यूनुस) भेजे तो उन लोगों ने दोनों को झुठलाया जब हमने एक तीसरे (पैग़म्बर शमऊन) से (उन दोनों को) मद्द दी तो इन तीनों ने कहा कि हम तुम्हारे पास अल्लाह के भेजे हुए (आए) हैं।
  15. कालू मा अन्तुम इल्ला बशरुम मिसळूना वमा अनजलर रहमानु मिन शय इन इन अन्तुम इल्ला तकज़िबुन
    वह लोग कहने लगे कि तुम लोग भी तो बस हमारे ही जैसे आदमी हो और अल्लाह ने कुछ नाजि़ल (वाजि़ल) नहीं किया है तुम सब के सब बस बिल्कुल झूठे हो।
  16. क़ालू रब्बुना यअ’लमु इन्ना इलैकुम लमुरसळून
    तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीन्न उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो)।
  17. वमा अलैना इल्लल बलागुल मुबीन
    हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे अल्लाह का पहुँचा देना फज्र है।
  18. कालू इन्ना ततैयरना बिकुम लइल लम तनतहू लनरजु मन्नकूम वला यमस सन्नकुम मिन्ना अज़ाबुन अलीम
    वह बोले हमने तुम लोगों को बहुत नहस क़दम पाया कि (तुम्हारे आते ही क़हत में मुबतेला हुए) तो अगर तुम (अपनी बातों से) बाज़ न आओगे तो हम लोग तुम्हें ज़रूर संगसार कर देगें और तुमको यक़ीनी हमारा दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा।
  19. कालू ताइरुकुम म अकुम अइन ज़ुक्किरतुम बल अन्तुम क़ौमूम मुस रिफून
    पैग़म्बरों ने कहा कि तुम्हारी बद शुगूनी (तुम्हारी करनी से) तुम्हारे साथ है क्या जब नसीहत की जाती है (तो तुम उसे बदफ़ाली कहते हो नहीं) बल्कि तुम खु़द (अपनी) हद से बढ़ गए हो।
  20. व जा अमिन अक्सल मदीनति रजुलुय यसआ काला या कौमित त्तबिउल मुरसलीन
    और (इतने में) शहर के उस सिरे से एक शख़्स (हबीब नज्जार) दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (इन) पैग़म्बरों का कहना मानो।
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