73 सूरह मुज़म्मिल​ हिंदी में

73 सूरह मुज़म्मिल | Surah Al-Muzzammil

कुरान पाक की एक बेहतरीन सूरह है। सूरह मुज़म्मिल मक्का में नाज़िल हुई। कुरान पाक में ये अल मुज़म्मिल  नाम से 29वें पारा में मौजूद है। सूरह मुज़म्मिल कुरान पाक की 73वीं सूरह है।  इसमें 20 आयत हैं।

जो रोजाना सूरह मुज़म्मिल की तिलावत करता है उसे कभी भी किसी भी तरह की भयानक परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इंशाअल्लाह! इस सूरह की तिलावत रोजाना तिलावत करने से आपको पाकीजगी मिलेगी।
इस सूरह की तिलावत करना, जब फैसले का दिन होगा तब ये आपके लिए बहुत अहम होगी।
 
सूरह मुज़म्मिल वज़ीफ़ा आम तौर पर आपकी सख्त ज़रूरत या हज की कामयाबियों के लिए किया जाता है। जैसे, यदि आप बेरोजगारी के मुद्दे का सामना कर रहे हैं या आपके पास कोई सरगर्मी नहीं है, तो उस समय इस सूरह मुज़म्मिल को रोजाना 3-7 बार पढ़ें और अल्लाह से दुआ करें। इंशाअल्लाह, अल्लाह आपकी सभी दुआओं को पूरा करेगा।
 
यदि जुमेरात की रात को इस सूरह को कई बार पढ़ें, तो अल्लाह आपके गलत कामों को माफ कर देगा।
अपने रिज़्क़ को बढ़ाने के लिए, हर दिन सूरह मुज़म्मिल की तिलावत करें और समय बीतने के साथ, आप अपने लिए अल्लाह की अनगिनत बरकतों को महसूस करेंगे।
 
ऐसे कई लोग हैं जो जरूरत के समय भारी कर्ज चुकाने को लेकर परेशान रहते हैं और अब उनके पास लौटाने के लिए कुछ नहीं है। सूरह मुज़म्मिल को पूरे भरोसे के साथ पढ़ें और अल्लाह से दुआ करें। आपको यकीनन अज्र मिलेगा।

सूरह मुज़म्मिल हिंदी में | Surah Al-Muzzammil in Hindi​

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. या अय्युहल मुज़ ज़ममिल
    ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल!
  2. क़ुमिल लैला इल्ला क़लीला
    कुछ हिस्से को छोड़ कर रात में नमाज़ पढ़ा कीजिये।
  3. निस्फहू अविन क़ुस मिन्हु क़लीला
    यानि आधी रात या उस से कुछ कम।
  4. अव्ज़िद अलैहि वरत तिलिल कुरआन तरतीला
    या आधी से कुछ ज़्यादा, और ठहर ठहर कर क़ुरान पढ़िए।
  5. इन्ना सनुल्की अलैका कौलन सक़ीला
    अनक़रीब हम आप पर एक भारी फरमान उतारेंगे। यानी हम आप पर कुरान नाजिल फ़रमाएँगे और रिसालत की तब्लीग और इस्लाम की दावत का भारी बोझ डालेगे। 
  6. इन्न नाशिअतल लैलि हिया अशद्दु वत अव वअक्वमु कीला
    वास्तव में, रात में जो इबादत होती है, वह अधिक प्रभावी है (मन को) एकाग्र करने में तथा अधिक उचित है बात प्रार्थना के लिए।
  7. इन्ना लका फिन नहारि सबहन तवीला
    और दिन में तो आप बहुत सारा काम करते हो।
  8. वज कुरिस्मा रब्बिका व तबत तल इलैहि तब्तीला
    और अपने पालनहार का नाम लेते रहिये और सबसे अलग होकर उसी के हो जायें।
  9. रब्बुल मशरिकि वल मगरिबि ला इलाहा इल्ला हुवा फत तखिज्हू वकीला
    वह पूर्व तथा पश्चिम का पालनहार है। नहीं है कोई पूज्य (वंदनीय) उसके सिवा, अतः, उसी को अपना करता-धरता बना लें।
  10. वसबिर अला मा यकूलूना वह्जुर हुम हजरन जमीला
    और जो कुछ लोग बका करते हैं, उस पर सब्र कीजिये और भली रीति से उन से अलग हो जाइये।
  11. वज़रनी वल मुकज्ज़िबीना उलिन नअ,मति वमह हिल्हुम क़लीला
    और तुम्हें झुटलाने वाले सुखी (सम्पन्न) लोगों को, उन का मामला मुझ पर छोड़ दो और उन्हें थोड़े दिन और अवसर दो।
  12. इन्ना लदैना अन्कालव वजहीमा
    निश्चय ही हमारे पास सख्त बेड़ियाँ हैं, और जलाने वाली आग (भी) है।
  13. व तआमन ज़ा गुस्सतिव व अज़ाबन अलीमा
    और गले में अटक जाने वाला खाना और दर्दनाक अज़ाब भी।
  14. यौमा तरजुफुल अरजु वल जिबालु व कानतिल जिबालु कसीबम महीला
    उस दिन ज़मीन और पहाड़ कांपने लगेंगे और पहाड़ रेत के ढेर हो जायेंगे।
  15. इन्ना अरसलना इलैकुम रसूला शाहिदन अलैकुम कमा अरसलना इला फ़िरऔना रसूला
    हम ने तुम्हारे तरफ एक ऐसे रसूल को भेजा है जो तुम पर गवाही देंगे जैसा कि हम ने फिरौन की तरफ़ पैगम्बर भेजा था।
  16. फ़असा फ़िरऔनुर रसूला फ़अख्ज्नाहू अख्ज़व वबीला
    फिर फिरौन ने पैगम्बर का कहा न माना तो हम ने भी (उसकी सज़ा में) उसको बहुत सख़्त पकड़ा।
  17. फ़कैफ़ा तत तकूना इन कफरतुम यौमय यजअलुल विल्दाना शीबा
    यदि तुमने इनकार किया तो उस दिन से कैसे बचोगे जो बच्चों को बूढ़ा कर देगा।
  18. अस समाउ मुन्फतिरुम बिह कान वअदुहू मफ़ऊला
    उस दिन आसमान फट जायेगा और उस का वादा पूरा होकर रहेगा।
  19. इन्ना हाज़िही तज्किरह फ़मन शाअत तखज़ा इला रब्बिही सबीला
    ये तो एक शिक्षा है, तो जो चाहे अपने परवरदिगार की तरफ रास्ता बना ले।
  20. इन्ना रब्बका यअलमु अन्नका तकूमु अदना मिन सुलुसयिल लैलि व निस्फहू व सुलुसहू व ताइफतुम मिनल लज़ीना मअक वल्लाहु युक़द्दिरुल लैला वन नहार
    आप के पालनहार खूब जानते हैं कि आप और जो लोग आप के साथ हैं, उन में से कुछ लोग दो तिहाई रात के क़रीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात अल्लाह के करीब खड़े रहते हैं और अल्लाह ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है।
    अलिमा अल लन तुह्सूहू फताबा अलैकुम फकरऊ मा तयस सरा मिनल कुरआन अलिमा अन सयकूनु मिन्कुम मरजा व आखरूना यजरिबूना फ़िल अरज़ि यब्तगूना मिन फजलिल लाहि व आख़रूना युकातिलूना फ़ी सबीलिल लाहि
    अल्लाह तआला ने जान लिया कि तुम उसको निर्वाह न सकोगे इसलिए उस ने तुम पर मेहरबानी की, लिहाज़ा जितना कुरान आसानी से पढ़ सको, पढ़ लिया करो, अल्लाह को मालूम है कि तुम में से बीमार भी होंगे, और कुछ लोग रोजी की तलाश के लिए ज़मीन में यात्रा करेंगे, कुछ और लोग अल्लाह के रस्ते में युद्ध करेंगे।
    फकरऊ मा तयस सरा मिनहु व अक़ीमुस सलाता व आतुज़ ज़काता व अकरिजुल लाहा करजन हसना
    इसलिए जितना आसानी से हो सके, पढ़ लो, नमाज़ की पाबन्दी करो, ज़कात देते रहो, अल्लाह को अच्छी तरह क़र्ज़ दो, (यानि इखलास के साथ भलाई के रास्ते में ख़र्च करो)।
    वमा तुक़ददिमू लि अन्फुसिकुम मिन खैरिन तजिदूहू इन्दल लाहि हुवा खैरव व अ’अज़मा अजरा वस ताग्फिरुल लाह इन्नल लाहा गफूरुर रहीम
    और तुम अपने लिए जो नेक अमल आगे भेजोगे, उसको अल्लाह के पास ज़्यादा बेहतर और ज़्यादा सवाब वाला पाओगे, और अल्लाह से क्षमा माँगते रहो, वास्तव में वह अति क्षमाशील, दयावान है।

पहली 7 आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को आदेश दिया गया है कि जिस महान कार्य का बोझ आप पर डाला गया है, उसके दायित्वों के निर्वाह के लिए आप अपने को तैयार करें, और उसका व्यावहारिक रूप यह बताया गया है कि रातों को उठ कर आप आधी-आधी रात या उससे कुछ कम-ज़्यादा नमाज़ पढ़ा करें,

आयत 8 से 14 तक नबी (सल्ल0) को यह निर्देश दिया गया है कि सबसे कट कर उस अल्लाह के हो रहें जो सारे दुनिया का मालिक है।
अपने सारे मामले उसी को सौंपकर निश्चिन्त हो जाएँ। विरोधी जो बातें आपके विरुद्ध बना रहे हैं उन पर धैर्य से काम लें, उनके मुंह न लगें और उनका मामला ईश्वर पर छोड़ दें कि वही उनसे निपट लेगा।

इसके बाद आयत 15 से 19 तक मक्का के उन लोगों को, जो अल्लाह के रसूल (सल्ल0) का विरोध कर रहे थे, सावधान किया गया है कि हम ने उसी तरह तुम्हारी ओर एक रसूल भेजा है, जिस तरह फिरौन की ओर भेजा था।

फिर देख लो कि जब फिरौन ने अल्लाह के रसूल की बात न मानी तो उसका क्या अनजाम हुआ। यदि मान लो कि दुनिया में तुम पर कोई यातना नहीं आई तो कयामत के दिन तुम कुफ्र (इन्कार) की सजा से कैसे बच निकलोगे? ये पहले खण्ड की बाते हैं।

दूसरे भाग में तहज्जुद की नमाज़ (अनिवार्य नमाज़ों के अतिरिक्त रात में पढ़ी जाने. वाली नमाज़ जो अनिवार्य तो नहीं है किन्तु ईमान वालों के लिए कुछ कम भी नहीं है) के सम्बन्ध में उस आरम्भिक आदेश के सिलसिले में कुछ छूट दे दी गई जो पहले भाग के आरम्भ में दिया गया था।

अब यह आदेश दिया गया कि जहाँ तक तहज्जुद की नमाज़ का सम्बन्ध है वह तो जितनी आसानी से पढ़ी जा सके, पढ़ लिया करो, लेकिन मुसलमानों को मौलिक रूप से जिस चीज़ का पूर्ण रूप से आयोजन करना चाहिए वह यह है कि पाँच वक्तों की अनिवार्य नमाज़ पूरी पाबन्दी के साथ कायम रखें, ज़कात (दान) देने के अनिवार्य कर्तव्य का ठीक-ठीक पालन करते रहें। और अल्लाह के मार्ग में अपना माल सच्ची लगन के साथ खर्च करें।

बाद में मुसलमानों को यह शिक्षा दी गई है कि जो भलाई के काम तुम दुनिया में करोगे, वे बरबादनहीं होंगे, बल्कि अल्लाह के यहाँ तुम्हें बड़ा बदला मिलेगा।

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