35 सूरह फातिर हिंदी में पेज 1

35 सूरह फातिर | Surah Fatir

सूरह फातिर में 45 आयतें हैं। यह सूरह पारा 22 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम पहली ही आयत का शब्द ‘फातिर’ (बनाने वाला) से लिया गया है।

सूरह फातिर हिंदी में | Surat Fatir in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अल्हम्दु लिल्लाहि फ़ातिरिस्समावाति वल्अर्ज़ि जाअिलिल्-मलाइ-कति रुसुलन् उली अज्नि-हतिम् मस्ना व सुला-स व रुबा-अ़, यज़ीदु फ़िल्-ख़ल्क़ि मा यशा-उ, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
    हर तरह की तारीफ अल्लाह ही के लिए (मख़सूस) है जो सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करने वाला फरिश्तों का (अपना) क़ासिद बनाने वाला है जिनके दो-दो और तीन-तीन और चार-चार पर होते हैं (मख़लूक़ात की) पैदाइश में जो (मुनासिब) चाहता है बढ़ा देता है बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर (व तवाना है)।
  2. मा यफ़्तहिल्लाहु लिन्नासि मिर्रह्मतिन् फ़ला मुम्सि-क लहा व मा युम्सिक् फ़ला मुर्सि-ल लहू मिम्बअ्दिही, व हुवल् अ़ज़ीज़ुल्-हकीम
    लोगों के वास्ते जब (अपनी) रहमत (के दरवाजे़) खोल दे तो कोई उसे जारी नहीं कर सकता और जिस चीज़ को रोक ले उसके बाद उसे कोई रोक नहीं सकता और वही हर चीज़ पर ग़ालिब और दाना व बीना हकीम है।
  3. या अय्युहन्नासुज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अ़लैकुम्, हल् मिन् ख़ालिकिन् ग़ैरुल्लाहि यर्ज़ुक़ुकुम् मिनस्समा-इ वल्अर्ज़ि, ला इला-ह इल्ला हु-व फ़-अन्ना तुअ्फ़कून
    लोगों अल्लाह के एहसानात को जो उसने तुम पर किए हैं याद करो क्या अल्लाह के सिवा कोई और ख़ालिक है जो आसमान और ज़मीन से तुम्हारी रोज़ी पहुँचाता है उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं फिर तुम किधर बहके चले जा रहे हो।
  4. व इंय्युकज़्ज़िबू-क फ़-क़द् कुज़्ज़िबत् रुसुलुम् मिन् क़ब्लि-क, व इलल्लाहि तुर्जअुल्-उमूर
    और (ऐ रसूल!) अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो (कुढ़ो नहीं) तुमसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर (लोगों के हाथों) झुठलाए जा चुके हैं और (आखि़र) कुल उमूर की रूजू तो अल्लाह ही की तरफ है।
  5. या अय्युहन्नासु इन्-न वअ्दल्लाहि हक़्क़ुन् फ़ला तग़ुर्रन्नकुमुल्-हयातुद्-दुन्या व ला यग़ुर्रन्नकुम् बिल्लाहिल्-ग़रूर
    लोगों अल्लाह का (क़यामत का) वायदा यक़ीनी बिल्कुल सच्चा है तो (कहीं) तुम्हें दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी फ़रेब में न लाए (ऐसा न हो कि शैतान) तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा दे।
  6. इन्नश्- शैता- न लकुम् अ़दुव्वुन् फ़ित्तख़िजूहु अ़दुव्वन्, इन्नमा यद्अू हिज़्बहू लि-यकूनू मिन् अस्हाबिस्सईर
    बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है तो तुम भी उसे अपना दुशमन बनाए रहो वह तो अपने गिरोह को बस इसलिए बुलाता है कि वह लोग (सब के सब) जहन्नुमी बन जाएँ।
  7. अल्लज़ी-न क-फ़रू लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीदुन्, वल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति लहुम् मग़्फ़ि-रतुंव्-व अज्रून् कबीर*
    जिन लोगों ने (दुनिया में) कुफ्र इख़तेयार किया उनके लिए (आखे़रत में) सख़्त अज़ाब है और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उनके लिए (गुनाहों की) मग़फेरत और निहायत अच्छा बदला (बहिश्त) है।
  8. अ-फ़-मन् ज़ुय्यि-न लहू सूउ अ़-मलिही फ़-रआहु ह-सननू, फ़-इन्नल्ला-ह युज़िल्लु मंय्यशा- उ व यह्दी मंय्यशा-उ फ़ला तज़्हब् नफ़्सु-क अ़लैहिम् ह-सरातिन्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुम्- बिमा यस्-नअून
    तो भला वह शख़्स जिसे उस का बुरा काम शैतानी (अग़वा से) अच्छा कर दिखाया गया है औ वह उसे अच्छा समझने लगा है (कभी मोमिन नेकोकार के बराबर हो सकता है हरगिज़ नहीं) तो यक़ीनी (बात) ये है कि अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है राहे रास्त पर आने (की तौफ़ीक़) देता है तो (ऐ रसूल! कहीं) उन (बदबख़्तों) पर अफसोस कर करके तुम्हारे दम न निकल जाए जो कुछ ये लोग करते हैं अल्लाह उससे खू़ब वाकि़फ़ है।
  9. वल्लाहुल्लज़ी अर्-सलर्-रिया-ह फ़-तुसीरु सहाबन् फ़- सुक़्नाहु इला ब-लदिम्-मय्यितिन् फ़-अह्यैना बिहिल्-अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा, कज़ालिकन्- नुशूर
    और अल्लाह ही वह (क़ादिर व तवाना) है जो हवाओं को भेजता है तो हवाएँ बादलों को उड़ाए-उड़ाए फिरती है फिर हम उस बादल को मुर्दा (उफ़तादा) शहर की तरफ हका देते हैं फिर हम उसके ज़रिए से ज़मीन को उसके मर जाने के बाद शादाब कर देते हैं यूँ ही (मुर्दों को क़यामत में जी उठना होगा)।
  10. मन् का-न युरीदुल्-अिज़्ज़-त फ़लिल्लाहिल्-अिज़्ज़तु जमीअ़न्, इलैहि यस्-अ़दुल्-कलिमुत्तय्यिबु वल्-अ़-मलुस्- सालिहु यर्-फ़अुहू, वल्लज़ी-न यम्कुरूनस्सय्यिआति लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीदुन्, व मक् रू उलाइ-क हु-व यबूर
    जो शख़्स इज़्ज़त का ख्वाहाँ हो तो अल्लाह से माँगे क्योंकि सारी इज़्ज़त अल्लाह ही की है उसकी बारगाह तक अच्छी बातें (बुलन्द होकर) पहुँचतीं हैं और अच्छे काम को वह खु़द बुलन्द फरमाता है और जो लोग (तुम्हारे खि़लाफ) बुरी-बुरी तदबीरें करते रहते हैं उनके लिए क़यामत में सख़्त अज़ाब है और (आखि़र) उन लोगों की तदबीर मटियामेट हो जाएगी।
  11. वल्लाहु ख़-ल- क़कुम् मिन् तुराबिन् सुम्-म मिन् नुत्फ़तिन् सुम्-म ज-अ़-लकुम् अ़ज्वाजन्, व मा तह्मिलु मिन् उन्सा व ला त-ज़अु इल्ला बिअिल्मिही, व मा युअ़म्म-रु मिम् – मुअ़म्म-रिंव्-व ला युन्क़सु मिन् अुमुरिही इल्ला फ़ी किताबिन, इन्-न ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीर
    और अल्लाह ही ने तुम लोगों को (पहले पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नतफ़े से फिर तुमको जोड़ा (नर मादा) बनाया और बग़ैर उसके इल्म (इजाज़त) के न कोई औरत हमेला होती है और न जनती है और न किसी शख़्स की उम्र में ज़्यादती होती है और न किसी की उम्र से कमी की जाती है मगर वह किताब (लौहे महफूज़) में (ज़रूर) है बेशक ये बात अल्लाह पर बहुत ही आसान है।
  12. व मा यस्तविल्-बह्-रानि हाज़ा अ़ज़्बुन् फ़ुरातुन सा-इग़ुन् शराबुहू व हाज़ा मिल्हुन् उजाजुनू, व
    मिन् कुल्लिन् तअ्कुलू- न लह्मन् तरिय्यंव्-व तस्तख़्रिजू-न हिल्य-तन् तल्बसूनहा व तरल्- फ़ुल्-क फ़ीहि मवाख़ि-र लितब्तग़ू मिन् फ़ज़्लिही व लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
    (उसकी कु़दरत देखो) दो समन्दर बावजूद मिल जाने के यकसाँ नहीं हो जाते ये (एक तो) मीठा खु़श ज़ाएका कि उसका पीना सुवारत है और ये (दूसरा) खारी कडुवा है और (इस इख़तेलाफ पर भी) तुम लोग दोनों से (मछली का) तरो ताज़ा गोश्त (यकसाँ) खाते हो और (अपने लिए ज़ेवरात (मोती वग़ैरह) निकालते हो जिन्हें तुम पहनते हो और तुम देखते हो कि कश्तियां दरिया में (पानी को) फाड़ती चली जाती हैं ताकि उसके फज़्ल (व करम तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो।
  13. यूलिजुल्लै-ल फ़िन्नहारि व यूलिजुन्नहा-र फ़िल्लैलि व सख़्ख़-रश्शम् स वल्क़-म-र कुल्लुंय्-यज्री लि-अ-जलिम्-मुसम्मन्, ज़ालिकुमुल्लाहु रब्बुकुम् लहुल्-मुल्कु, वल्लज़ी-न तद्अू-न मिन् दूनिही मा यम्लिकू-न मिन् क़ित्मीर
    वही रात को (बढ़ा के) दिन में दाखि़ल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और वही दिन को (बढ़ा के) रात में दाखि़ल करता है (तो दिन बढ़ जाता है और) उसी ने सूरज और चाँद को अपना मुतीइ बना रखा है कि हर एक अपने (अपने) मुअय्यन (तय) वक़्त पर चला करता है वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसी की सलतनत है और उसे छोड़कर जिन माबूदों को तुम पुकारते हो वह छुवारों की गुठली की झिल्ली के बराबर भी तो इख़तेयार नहीं रखते।
  14. इन् तद् अूहुम् ला यस्मअू दुआ़-अकुम् व लौ समिअू मस्तजाबू लकुम्, व यौमल्-क़ियामति यक्फ़ुरू-न बिशिर्किकुम् व ला युनब्बिउ-क मिस्लु ख़बीर*
    अगर तुम उनको पुकारो तो वह तुम्हारी पुकार को सुनते नहीं अगर (बिफ़रज़े मुहाल) सुनों भी तो तुम्हारी दुआएँ नहीं कु़बूल कर सकते और क़यामत के दिन तुम्हारे शिर्क से इन्कार कर बैठेंगें और वाकि़फकार (शख़्स की तरह कोई दूसरा उनकी पूरी हालत) तुम्हें बता नहीं सकता।
  15. या अय्युहन्नासु अन्तुमुल्-फ़ु-क़रा-उ इलल्लाहि वल्लाहु हुवल् ग़निय्युल्-हमीद
    लोगों तुम सब के सब अल्लाह के (हर वक़्त) मोहताज हो और (सिर्फ) अल्लाह ही (सबसे) बेपरवा सज़ावारे हम्द (व सना) है।
  16. इंय्यशस् युज़्हिब्कुम् व यअ्ति बिख़ल्क़िन् जदीद
    अगर वह चाहे तो तुम लोगों को (अदम के पर्दे में) ले जाए और एक नयी खि़लक़त ला बसाए।
  17. व मा जालि-क अलल्लाहि बि-अज़ीज़
    और ये कुछ अल्लाह के वास्ते दुशवार नहीं।
  18. व ला तज़िरु वाज़ि-रतुंव्-विज़-र उख़् रा, व इन् तद्अू मुस्क़ -लतुन् इला हिम्लिहा ला युह्मल् मिन्हु शैउंव्-व लौ का-न ज़ा-क़ुर्बा, इन्नमा तुन्ज़िरुल्लज़ी-न यख़्शौ-न रब्बहुम् बिल्ग़ैबि व अक़ामुस्-सला-त, व मन् तज़क्का फ़-इन्नमा य-तज़क्का लि-नफ़्सिही, व इलल्लाहिल्-मसीर
    और याद रहे कि कोई शख़्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा और अगर कोई (अपने गुनाहों का) भारी बोझ उठाने वाला अपना बोझ उठाने के वास्ते (किसी को) बुलाएगा तो उसके बारे में से कुछ भी उठाया न जाएगा अगरचे (कोई किसी का) कराबतदार ही (क्यों न) हो (ऐ रसूल!) तुम तो बस उन्हीं लोगों को डरा सकते हो जो बे देखे भाले अपने परवरदिगार का ख़ौफ रखते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और (याद रखो कि) जो शख़्स पाक साफ रहता है वह अपने ही फ़ायदे के वास्ते पाक साफ रहता है और (आखि़रकार सबको हिरफिर के) अल्लाह ही की तरफ जाना है।
  19. व मा यस्तविल्-अअ्मा वल्बसीर
    और अन्धा (क़ाफिर) और आँखों वाला (मोमिन किसी तरह) बराबर नहीं हो सकते।
  20. व लज़्ज़ुलुमातु व लन्नूर
    और न अंधेरा (कुफ्र) और उजाला (ईमान) बराबर है।
  21. व लज़्ज़िल्लु व लल्हरूर
    और न छाँव (बेहिश्त) और धूप (दोज़ख़ बराबर है)।
  22. व मा यस्तविल्-अह्या-उ व लल्अम्वातु, इन्नल्ला-ह
    युस्मिअु मंय्यशा-उ व मा अन्-त बिमुस्मिअिम्-मन् फ़िल्क़ुबूर
    और न जि़न्दे (मोमिनीन) और न मुर्दें (क़ाफिर) बराबर हो सकते हैं और अल्लाह जिसे चाहता है अच्छी तरह सुना (समझा) देता है और (ऐ रसूल) जो (कुफ़्फ़ार मुर्दों की तरह) क़ब्रों में हैं उन्हें तुम अपनी (बातें) नहीं समझा सकते हो।

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