42 सूरह अश-शूरा हिंदी में पेज 1

सूरह अल-अहक़ाफ़ में 53 आयतें और 5 रुकू हैं। यह सूरह पारा 25 में है। यह सूरह मक्का मे नाज़िल हुई।

सूरह अश-शूरा हिंदी में | Surah Ash-Shuraa in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. हा- मीम्
    हा मीम।
  2. ऐन्- सीन् – क़ाफ़्
    ऐन सीन काफ़।
  3. कज़ालि क यूही इलै-क व इलल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिकल्लाहुल् अ़ज़ीज़ुल्-हकीम
    (ऐ रसूल!) ग़ालिब व दाना अल्लाह तुम्हारी तरफ़ और जो (पैग़म्बर) तुमसे पहले गुज़रे उनकी तरफ़ यूँ ही वही भेजता रहता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है ग़रज़ सब कुछ उसी का है।
  4. लहू मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व हुवल् अ़लिय्युल- अ़ज़ीम
    और वह तो (बड़ा) आलीशान (और) बुज़ुर्ग है।
  5. तकादुस्- समावातु य-तफ़त्तर्न मिन् फ़ौक़िहिन्-न वल्मलाइ-कतु युसब्बिहू-न बिहन्दि-रब्बिहिम् व यस्तग़्फ़िरू न लिमन् फ़िल्- अर्ज़ि, अला इन्नल्ला-ह हुवल् ग़फ़ूरुर्- रहीम
    (उनकी बातों से) क़रीब है कि सारे आसमान (उसकी हैबत के मारे) अपने ऊपर वार से फट पड़े और फ़रिश्ते तो अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और जो लोग ज़मीन में हैं उनके लिए (गुनाहों की) माफी माँगा करते हैं सुन रखो कि अल्लाह ही यक़ीनन बड़ा बक्शने वाला मेहरबान है।
  6. वल्लज़ीनत्त – ख़ज़ू मिन् दूनिही औलिया-अल्लाहु हफ़ीज़ुन् अ़लैहिम् व मा अन्-त अ़लैहिम् बि-वकील
    और जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं अल्लाह उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो।
  7. व कज़ालि-क औहैना इलै-क कुर्आनन् अ़-रबिय्यल्- लितुन्ज़ि-र उम्मल् क़ुरा व मन् हौ-लहा व तुन्ज़ि-र यौमल्-जम्अि ला रै-ब फ़ीहि, फ़रीक़ुन् फ़िल्-जन्नति व फ़रीक़ुन् फ़िस्सईर 
    और हमने तुम्हारे पास अरबी क़़ुरआन यूँ भेजा ताकि तुम मक्का वालों को और जो लोग इसके इर्द गिर्द रहते हैं उनको डराओ और (उनको) क़यामत के दिन से भी डराओ जिस (के आने) में कुछ भी शक नहीं (उस दिन) एक फरीक़ (मानने वाला) जन्नत में होगा और फरीक़ (सानी) दोज़ख़ में।
  8. व लौ शा- अल्लाहु ल-ज-अ़-लहुम् उम्म- तंव्- वाहि-दतंव्-व लाकिंय्युद्ख़िलु मंय्यशा-उ फ़ी रह्मतिही, वज़्ज़ालिमू-न मा लहुम् मिंव्वलिय्यिंव्-व ला नसीर
    और अगर अल्लाह चाहता तो इन सबको एक ही गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है (हिदायत करके) अपनी रहमत में दाखि़ल कर लेता है और ज़ालिमों का तो (उस दिन) न कोई यार है और न मददगार।
  9. अमित्त – ख़ज़ू मिन् दूनिही औलिया-अ फ़ल्लाहु हुवल् वलिय्यु व हु-व युह्यिल्-मौता व हु-व अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
    क्या उन लोगों ने अल्लाह के सिवा (दूसरे) कारसाज़ बनाए हैं तो कारसाज़ बस अल्लाह ही है और वही मुर्दों को जि़न्दा करेगा और वही हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है।
  10. व मख़्त-लफ़्तुम् फ़ीहि मिन् शैइन् फ़हुक्मुहू इलल्लाहि, ज़ालिकुमुल्लाहु रब्बी अ़लैहि तवक्कल्तु व इलैहि उनीब
    और तुम लोग जिस चीज़ में बाहम एख़्तेलाफ़ात रखते हो उसका फैसला अल्लाह ही के हवाले है वही अल्लाह तो मेरा परवरदिगार है मैं उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी की तरफ़ रूजू करता हूँ।
  11. फ़ातिरुस्समावाति वल्अर्ज़ि, ज-अ़-ल लकुम् मिन् अन्फ़ुसिकुम् अज़्वाजंव्-व मिनल्-अन्आ़मि अज़्वाजन् यज़्- रउकुम् फ़ीहि, लै-स कमिस्लही शैउन् व हुवस्समीअुल्-बसीर
    सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही) है उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और चारपायों के जोड़े भी (उसी ने बनाए) उस (तरफ़) में तुमको फैलाता रहता है कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है।
  12. लहू मक़ालीदुस्समावाति वल्अर्ज़ि यब्सुतुर्रिज़् क लिमंय्- यशा-उ व यक़्दिरु, इन्नहू बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
    सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास हैं जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ कर देता है (जिसके लिए) चाहता है तंग कर देता है बेशक वह हर चीज़ से ख़ूब वाकि़फ़ है।
  13. श र अ़ लकुम् मिनद्दीनि मा वस्सा बिही नूहंव्वल्लज़ी औहैना इलै-क व मा वस्सैना बिही इब्राही-म व मूसा व ईसा अन् अक़ीमुद्दीन व ला त-तफ़र्रक़ू फ़ीहि, कबु-र अ़लल् – मुश्रिकी – न मा तद्अूहुम् इलैहि, अल्लाहु यज्तबी इलैहि मंय्यशा-उ व यह्दी इलैहि मंय्युनीब
    उसने तुम्हारे लिए दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया जिस (पर चलने का) नूह को हुक्म दिया था और (ऐ रसूल) उसी की हमने तुम्हारे पास वही भेजी है और उसी का इबराहीम और मूसा और ईसा को भी हुक्म दिया था (वह) ये (है कि) दीन को क़ायम रखना और उसमें तफ़रक़ा न डालना जिस दीन की तरफ़ तुम मुशरेकीन को बुलाते हो वह उन पर बहुत याक़ ग़ुज़रता है अल्लाह जिसको चाहता है अपनी बारगाह का बरगुज़ीदा कर लेता है और जो उसकी तरफ़ रूजू करे (अपनी तरफ़ (पहुँचने) का रास्ता दिखा देता है।
  14. व मा त- फ़र्रक़ू इल्ला मिम्-बअ्दि मा जा- अहुमुल्-अिल्मु बग़्यम् बैनहुम्, व लौ ला कलि-मतुन् स-बक़त् मिर्रब्बि-क इला अ-जलिम् मुसम्मल्-लक़ुज़ि-य बैनहुम्, व इन्नल्लज़ी-न ऊरिसुल्-किता-ब मिम्- बअ्दिहिम् लफ़ी शक्किम् – मिन्हु मुरीब
    और ये लोग मुतफ़र्रिक़ हुए भी तो इल्म (हक़) आ चुकने के बाद और (वह भी) महज़ आपस की जि़द से और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक वक़्ते मुक़र्रर तक के लिए (क़यामत का) वायदा न हो चुका होता तो उनमें कबका फैसला हो चुका होता और जो लोग उनके बाद (अल्लाह की) किताब के वारिस हुए वह उसकी तरफ़ से बहुत सख़्त शुबहे में (पड़े हुए) हैं।
  15. फ़-लिज़ालि क फ़द्अु वस्तक़िम् कमा उमिर्-त व ला तत्तबिअ् अह्वा- अहुम् व क़ुल् आमन्तु बिमा अन्ज़-लल्लाहु मिन् किताबिन् व उमिर्तु लि-अअ्दि-ल बैनकुम्, अल्लाहु रब्बुना व रब्बुकुम्, लना अअ्मालुना व लकुम् अअ्मालुकुम्, ला हुज्ज-त बैनना व बैनकुम्, अल्लाहु यज्मअु बैनना व इलैहिल्-मसीर
    तो (ऐ रसूल!) तुम (लोगों को) उसी (दीन) की तरफ़ बुलाते रहे जो और जैसा तुमको हुक्म हुआ है (उसी पर क़ायम रहो और उनकी नफ़सियानी ख़्वाहिशों की पैरवी न करो और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब अल्लाह ने नाजि़ल की है उस पर मैं ईमान रखता हूँ और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तुम्हारे एख़्तेलाफात के (दरमेयान) इन्साफ़ (से फ़ैसला) करूँ अल्लाह ही हमारा भी परवरदिगार है और वही तुम्हारा भी परवरदिगार है हमारी कारगुज़ारियाँ हमारे ही लिए हैं और तुम्हारी कारस्तानियाँ तुम्हारे वास्ते हममें और तुममें तो कुछ हुज्जत (व तक़रार की ज़रूरत) नहीं अल्लाह ही हम (क़यामत में) सबको इकट्ठा करेगा।
  16. वल्लज़ी-न युहाज्जू-न फ़िल्लाहि मिम्-बअ्दि मस्तुजी-ब लहू हुज्जतुहुम् दाहि-ज़तुन् अिन्-द रब्बिहिम् व अ़लैहिम् ग़-ज़बुंव् व लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीद
    और उसी की तरफ़ लौट कर जाना है और जो लोग उसके मान लिए जाने के बाद अल्लाह के बारे में (ख़्वाहमख़्वाह) झगड़ा करते हैं उनके परवरदिगार के नज़दीक उनकी दलील लग़ो बातिल है और उन पर (अल्लाह का) ग़ज़ब और उनके लिए सख़्त अज़ाब है।
  17. अल्लाहुल्लज़ी अन्ज़लल्-किता-ब बिल्हक़्क़ि वल्मीज़ा-न व मा युद्री-क लअ़ल्लस्सा-अ़-त क़रीब
    अल्लाह ही तो है जिसने सच्चाई के साथ किताब नाजि़ल की और अदल (व इन्साफ़ भी नाजि़ल किया) और तुमको क्या मालूम शायद क़यामत क़रीब ही हो।
  18. यस्तअ्जिलु बि- हल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिहा वल्लज़ी-न आमनू मुश्फ़िक़ू-न मिन्हा व यअ्लमू-न अन्नहल्-हक़्क़ु, अला इन्नल्लज़ी-न युमारू न फ़िस्सा-अ़ति लफ़ी ज़लालिम् – बईद 
    (फिर ये ग़फ़लत कैसी) जो लोग इस पर ईमान नहीं रखते वह तो इसके लिए जल्दी कर रहे हैं और जो मोमिन हैं वह उससे डरते हैं और जानते हैं कि क़यामत यक़ीनी बरहक़ है आगाह रहो कि जो लोग क़यामत के बारे में शक किया करते हैं वह बड़े परले दर्जे की गुमराही में हैं।
  19. अल्लाहु लतीफ़ुम् – बिअिबादिही यर्जुकु मंय्यशा-उ व हुवल्- क़विय्युल-अ़ज़ीज़
    और अल्लाह अपने बन्दों (के हाल) पर बड़ा मेहरबान है जिसको (जितनी) रोज़ी चाहता है देता है वह ज़ेार वाला ज़बरदस्त है।
  20. मन् का-न युरीदु हर्सल् – आख़िरति नज़िद् लहू फ़ी हर्सिही व मन् का-न युरीदु हर्सद्दुन्या नुअ्तिही मिन्हा व मा लहू फ़िल्आख़िरति मिन् – नसीब
    जो शख़्स आख़ेरत की खेती का तालिब हो हम उसके लिए उसकी खेती में अफ़ज़ाइश करेंगे और दुनिया की खेती का ख़ास्तगार हो तो हम उसको उसी में से देंगे मगर आखे़रत में फिर उसका कुछ हिस्सा न होगा।
  21. अम् लहुम् शु-रका-उ श-रअू लहुम् मिनद्दीनि मा लम् यअ्ज़म्-बिहिल्लाहु व लौ ला कलि-मतुल्- फ़स्लि लक़ुज़ि-य बैनहुम् व इन्नज़्- ज़ालिमीन-न लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    क्या उन लोगों के (बनाए हुए) ऐसे शरीक हैं जिन्होंने उनके लिए ऐसा दीन मुक़र्रर किया है जिसकी अल्लाह ने इजाज़त नहीं दी और अगर फ़ैसले (के दिन) का वायदा न होता तो उनमें यक़ीनी अब तक फैसला हो चुका होता और ज़ालिमों के वास्ते ज़रूर दर्दनाक अज़ाब है।
  22. तरज़्ज़ालिमी-न मुश्फ़िक़ी -न मिम्मा क-सबू व हु-व वाक़िअुम् बिहिम्, वल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति फ़ी रौज़ातिल्-जन्नाति लहुम्-मा यशाऊ-न अिन्- द रब्बिहिम्, ज़ालि-क हुवल् फ़ज़्लुल्-कबीर
    (क़यामत के दिन) देखोगे कि ज़ालिम लोग अपने आमाल (के वबाल) से डर रहे होंगे और वह उन पर पड़ कर रहेगा और जिन्होने ईमान क़़ुबूल किया और अच्छे काम किए वह बेहिष्त के बाग़ों में होंगे वह जो कुछ चाहेंगे उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में (मौजूद) है यही तो (अल्लाह का) बड़ा फज़ल है।
  23. ज़ालिकल्लज़ी युबश्शिरुल्लाहु अिबा-दहुल् -लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति, कुल्-ला अस्- अलुकुम् अ़लैहि अज्रन् इल्लल्-म-वद्द -त फ़िल्-र्क़ुबा, व मंय्-यक़्तरिफ़् ह-स- नतन् नज़िद् लहू फ़ीहा हुस्नन्, इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुन् शकूर
    यही (ईनाम) है जिसकी अल्लाह अपने उन बन्दों को ख़ुशख़बरी देता है जो ईमान लाए और नेक काम करते रहे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं इस (तबलीग़े रिसालत) का अपने क़रातबदारों (एहले बैत) की मोहब्बत के सिवा तुमसे कोई सिला नहीं मांगता और जो शख़्स नेकी हासिल करेगा हम उसके लिए उसकी ख़ूबी में इज़ाफा कर देंगे बेशक वह बड़ा बख्शने वाला क़दरदान है।
  24. अम्यक़ूलूनफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन् फ़-इंय्य-श-इल्लाहु यख़्तिम् अ़ला क़ल्बि-क, व यम्हुल्लाहुल्-बाति-ल व युहिक़्क़ुल्-हक़्-क़ बि-कलिमातिही, इन्नहू अ़लीमुम् – बिज़ातिस्सुदूर 
    क्या ये लोग (तुम्हारी निस्बत कहते हैं कि इस (रसूल) ने अल्लाह पर झूठा बोहतान बाँधा है तो अगर (ऐसा) होता तो) अल्लाह चाहता तो तुम्हारे दिल पर मोहर लगा देता (कि तुम बात ही न कर सकते) और अल्लाह तो झूठ को नेस्तनाबूद और अपनी बातों से हक़ को साबित करता है वह यक़ीनी दिलों के राज़ से ख़ूब वाकि़फ है।
  25. व हुवल्लज़ी यक़्बलुत्तौ-ब-त अ़न् अिबादिही व यअ्फू अ़निस्सय्यिआति व यअ्लमु मा तफ़्अ़लून
    और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और गुनाहों को माफ़ करता है और तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह जानता है।

Surah Ash-Shuraa Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!