41 सूरह फुस्सिलत हिंदी में पेज 1

41 सूरह हा मीम अस सजदह, सूरह फुसिलत | Surah Fussilat | Surah ha mim as-Sajdah

सूरह हा मीम अस सजदह में 54 आयतें और 6 रुकू हैं। यह सूरह पारा 24, पारा 25 में है। यह सूरह मक्का मे नाज़िल हुई।

सूरह हा मीम अस सजदह, सूरह फुस्सिलत हिंदी में | Surah Fussilat | Surah ha mim as-Sajdah in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. हा-मीम्
    हा मीम
  2. तन्ज़ीलुम्-मिनर्रह्मा- निर्रहीम
    (ये किताब) रहमान व रहीम अल्लाह की तरफ़ से नाजि़ल हुयी है ये (वह) किताब अरबी कुरान है।
  3. किताबुन् फुस्सिलत् आयातुहू क़ुर्आनन् अ़-रब्य्यिल् लिक़ौमिंय्-यअ्लमून
    जिसकी आयतें समझदार लोगें के वास्ते तफ़सील से बयान कर दी गयीं हैं।
  4. बशी – रंव्-व नज़ीरन् फ़-अअ्-र-ज़ अक्सरुहुम् फ़हुम् ला यस्मअून
    (नेकों कारों को) ख़़ुशख़बरी देने वाली और (बदकारों को) डराने वाली है इस पर भी उनमें से अक्सर ने मुँह फेर लिया और वह सुनते ही नहीं।
  5. व क़ालू क़ुलूबुना फ़ी अकिन्नतिम्-मिम्मा तद्अूना इलैहि व फ़ी आज़ानिना वक्रूंव्-व मिम्बैनिना व बैनि-क हिजाबुन् फ़अ्मल् इन्नना आ़मिलून
    और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ़ तुम हमें बुलाते हो उससे तो हमारे दिल पर्दों में हैं (कि दिल को नहीं लगती) और हमारे कानों में गिर्दानी (बहरापन है) कि कुछ सुनायी नहीं देता और हमारे तुम्हारे दरम्यिान एक पर्दा (हायल) है तो तुम (अपना) काम करो हम (अपना) काम करते हैं।
  6. क़ुल् इन्नमा अ-न ब-शरुम्-मिस्लुकुम् यूहा इलय् य अन्नमा इलाहुकुम् इलाहुंव्-वाहिदुन् फ़स्तक़ीमू इलैहि वस्तग़्फ़िरूहु, व वैलुल्- लिल्- मुश्रि कीन
    (ऐ रसूल!) कह दो कि मैं भी बस तुम्हारा ही सा आदमी हूँ (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर ‘वही’ आती है कि तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता अल्लाह है तो सीधे उसकी तरफ़ मुतावज्जे रहो और उसी से बख़शिश की दुआ माँगो, और मुशरेकों पर अफ़सोस है।
  7. अल्लज़ी-न ला युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् बिल-आख़िरति हुम् काफ़िरून
    जो ज़कात नहीं देते और आख़ेरत के भी क़ायल नहीं।
  8. इन्नल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति लहुम् अज्-रून् ग़ैरु मम्नून
    बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे और उनके लिए वह सवाब है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं।
  9. क़ुल् अ-इन्नकुम् ल-तक्फ़ुरू-न बिल्लज़ी ख़-लक़ल्- अर्-ज़ फ़ी यौमैनि व तज्अ़लू-न लहू अन्दादन्, ज़ालि-क रब्बुल – आ़लमीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि क्या तुम उस (अल्लाह) से इन्कार करते हो जिसने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया और तुम (औरों को) उसका हमसर बनाते हो, यही तो सारे जहाँ का सरपरस्त है।
  10. व ज-अ़-ल फ़ीहा रवासि-य मिन् फ़ौकिहा व बार-क फ़ीहा व क़द्-द-र फ़ीहा अक़्वा-तहा फ़ी अर्-ब- अ़ति अय्यामिन्, सवा-अल्-लिस्सा-इलीन
    और उसी ने ज़मीन में उसके ऊपर से पहाड़ पैदा किए और उसी ने इसमें बरकत अता की और उसी ने एक मुनासिब अन्दाज़ पर इसमें सामाने माईश्त का बन्दोबस्त किया (ये सब कुछ) चार दिन में और तमाम तलबगारों के लिए बराबर है।
  11. सुम्मस्तवा इलस्समा-इ व हि-य दुख़ानुन् फ़क़ा-ल लहा व लिल्-अर्ज़िअ्तिया तौअ़न् औ कर्हन्, क़ा-लता अतैना ता – इईन
    फिर आसमान की तरफ मुतावज्जे हुआ और (उस वक़्त) धुएँ (का सा) था उसने उससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों आओ ख़ुशी से ख़्वाह कराहत से, दोनों ने अर्ज़ की हम ख़ुशी ख़ुशी हाजि़र हैं।
  12. फ़-क़ज़ाहुन्-न सब्-अ़ समावातिन् फ़ी यौमैनि व औहा फ़ी कुल्लि समा-इन् अम्-रहा, व ज़य्यन्नस्समा – अद्-दुन्या बि-मसाबी-ह व हिफ़्ज़न्, ज़ालि क तक़्दीरुल्-अ़ज़ीज़िल्- अ़लीम 
    (और हुक्म के पाबन्द हैं) फिर उसने दोनों में उस (धुएँ) के सात आसमान बनाए और हर आसमान में उसके (इन्तेज़ाम) का हुक्म (कार कुनान कज़ा व क़दर के पास) भेज दिया और हमने नीचे वाले आसमान को (सितारों के) चिराग़ों से मुज़य्यन किया और (शैतानों से महफूज़) रखा ये वाकि़फ़कार ग़ालिब अल्लाह के (मुक़र्रर किए हुए) अन्दाज़ हैं।
  13. फ-इन् अअ्-रज़ू फ़क़ुल अन्जर्तुकुम् साअि- क़तम् मिस्-ल साअि-क़ति आदिंव्व समूद 
    फिर अगर हम पर भी ये कुफ्फार मुँह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बिजली गिरने (के अज़ाब से) डराता हूँ जैसी क़ौम आद व समूद की बिजली की कड़क।
  14. इज़् जा अत्हुमुर् – रसुलु मिम्-बैनि ऐदीहिम् व मिन् ख़ल्फ़िहिम् अल्ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, क़ालू लौ शा-अ रब्बुना ल-अन्ज़-ल मलाइ-कतन् फ़-इन्ना बिमा उर्सिल्तुम् बिही काफ़िरून 
    जब उनके पास उनके आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर लेकर) आए कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फ़रिश्ते नाजि़ल करता और जो (बातें) देकर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते।
  15. फ़-अम्मा आ़दुन् फ़स्तक्बरू फ़िल्अर्ज़ि बिग़ैरिल्-हक़्क़ि व क़ालू मन् अशद्-दु मिन्ना क़ुव्वतन्, अ-व लम् यरौ अन्नल्लाहल्लज़ी ख़-ल- क़हुम् हु-व अशद्-दु मिन्हुम् क़ुव्वतन्, व कानू बिआयातिना यज्हदून 
    तो आद नाहक़ रूए ज़मीन में ग़़ुरूर करने लगे और कहने लगे कि हम से बढ़ के क़ूवत में कौन है, क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि अल्लाह जिसने उनको पैदा किया है वह उनसे क़ूवत में कहीं बढ़ के है, ग़रज़ वह लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे।
  16. फ़-अर्सल्ना अ़लैहिम् रीहन् सर्- सरन् फ़ी अय्यामिन्-नहिसातिल्-लिनुज़ी-क़हुम् अ़ज़ाबल्- ख़िज़्यि फ़िल्हयातिद्दुन्या, व ल-अ़ज़ाबुल्-आख़िरति अख़्ज़ा व हुम् ला युन्सरून 
    तो हमने भी (तो उनके) नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की आँधी चलाई ताकि दुनिया की जि़न्दगी में भी उनको रूसवाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें और आख़ेरत का अज़ाब तो और ज़्यादा रूसवा करने वाला ही होगा और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी।
  17. व अम्मा समूदु फ़-हदैनाहुम् फ़स्तहब्बुल- अ़मा अ़लल्-हुदा फ़-अ-ख़ज़त्हुम् साअि-क़तुल्-अ़ज़ाबिल् -हूनि बिमा कानू यक्सिबून 
    और रहे समूद तो हमने उनको सीधा रास्ता दिखाया, मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसन्द किया तो उन की करतूतों की बदौलत जि़ल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको ले डाला।
  18. व नज्जैनल्लज़ी-न आमनू व कानू यत्तक़ून 
    और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हमने (इस) मुसीबत से बचा लिया।
  19. व यौ-म युह्शरु अअ्दाउल्लाहि इलन्नारि फ़हुम् यू – ज़अून 
    और जिस दिन अल्लाह के दुशमन दोज़ख़ की तरफ़ हकाए जाएँगे तो ये लोग तरतीब वार खड़े किए जाएँगे।
  20. हत्ता इज़ा मा जाऊहा शहि-द अ़लैहिम् सम्अुहुम् व अब्सारुहुम् व जुलूदुहुम् बिमा कानू यअ्मलून
    यहाँ तक की जब सब के सब जहन्नुम के पास जाएँगे तो उनके कान और उनकी आँखें और उनके (गोश्त पोस्त) उनके खि़लाफ उनके मुक़ाबले में उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें।
  21. व क़ालू लिजुलूदिहिम् लि-म शहित्तुम् अ़लैना, क़ालू अ़न्त- क़नल्लाहुल्लज़ी अन्त-क़ क़ुल-ल शैइंव्-व हु-व ख़-ल-क़कुम् अव्व-ल मर्रतिंव् व इलैहि तुर्जअून 
    और ये लोग अपने आज़ा से कहेंगे कि तुमने हमारे खि़लाफ क्यों गवाही दी तो वह जवाब देंगे कि जिस अल्लाह ने हर चीज़ को गोया किया उसने हमको भी (अपनी क़ुदरत से) गोया किया और उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और (आखि़र) उसी की तरफ़ लौट कर जाओगे।
  22. व मा कुन्तुम् तस्ततिरू न अंय्यश्-ह-द अ़लैकुम् सम्अुकुम् व ला अब्सारुकुम् व ला जुलूदुकुम् व लाकिन् ज़नन्तुम् अन्नल्ला-ह ला यअ्लमु कसीरम्-मिम्मा तअ्मलून 
    और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख़्याल से (अपने गुनाहों की) पर्दा दारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी आँखे और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरखि़लाफ गवाही देंगे बल्कि तुम इस ख़्याल मे (भूले हुए) थे कि अल्लाह को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं।
  23. व ज़ालिकुम् ज़न्नुकुमुल्लज़ी ज़नन्तुम् बिरब्बिकुम् अर्दाकुम् फ़-अस्बह्तुम् मिनल्-ख़ासिरीन 
    और तुम्हारी इस बदख़्याली ने जो तुम अपने परवरदिगार के बारे में रखते थे तुम्हें तबाह कर छोड़ा आखि़र तुम घाटे में रहे।
  24. फ़-इंय्यस्बिरू फ़न्नारु मस्वल- लहुम्, व इंय्यस्तअ्तिबू फ़मा हुम् मिनल्-मुअ्तबीन 
    फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी इनका ठिकाना दोज़ख़ ही है और अगर तौबा करें तो भी इनकी तौबा क़़ुबूल न की जाएगी।
  25. व क़य्यज़्ना लहुम् क़ु-रना-अ फ़-ज़य्यनू लहुम् मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्फ़हुम् व हक़्-क़ अ़लैहिमुल्-क़ौलु फ़ी उ-ममिन् क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिहिम् मिनल्-जिन्नि वल्-इन्सि इन्नहुम् कानू ख़ासिरीन
    और हमने (गोया ख़ुद शैतान को) उनका हमनशीन मुक़र्रर कर दिया था तो उन्होने उनके अगले पिछले तमाम उमूर उनकी नज़रों में भले कर दिखाए तो जिन्नात और इन्सानो की उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके शुमूल {साथ} में (अज़ाब का) वायदा उनके हक़ में भी पूरा हो कर रहा बेशक ये लोग अपने घाटे के दरपै थे।
  26. व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू ला तस्मअू लिहाज़ल्-क़ुर्-आनि वल्ग़ौ फ़ीहि लअ़ल्लक़ुम् तग़्लिबून
    और कुफ़्फ़ार कहने लगे कि इस कुरान को सुनो ही नहीं और जब पढ़ें (तो) इसके (बीच) में ग़ुल मचा दिया करो ताकि (इस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ।
  27. फ़-लनुज़ीक़न्नल्लज़ी-न क-फ़रू अ़ज़ाबन् शदीदंव् व ल – नज्ज़ियन्नहुम् अस्व-अल्लज़ी कानू यअ्मलून 
    तो हम भी काफि़रों को सख़्त अज़ाब के मज़े चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये दोज़ख़ है।

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