42 सूरह अश-शूरा हिंदी में पेज 2

सूरह अश-शूरा हिंदी में | Surah Ash-Shuraa in Hindi

  1. व यस्तजीबुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति व यज़ीदुहुम् – मिन् फज़्लिही, वल्काफ़िरू-न लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीद
    और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे उनकी (दुआ) क़़ुबूल करता है फज़ल व क़रम से उनको बढ़ कर देता है और काफ़िरों के लिए सख़्त अज़ाब है।
  2. व लौ ब – सतल्लाहुर्रिज़्-क़ लिअिबादिही ल-बग़ौ फिल्अर्ज़ि व लाकिंय्-युनज़्ज़िलु बि-क-दरिम्-मा यशा-उ, इन्नहू बिअिबादिही ख़बीरुम्-बसीर
    और अगर अल्लाह ने अपने बन्दों की रोज़ी में फराख़ी कर दे तो वह लोग ज़रूर (रूए) ज़मीन से सरकशी करने लगें मगर वह तो बाक़दरे मुनासिब जिसकी रोज़ी (जितनी) चाहता है नाजि़ल करता है वह बेशक अपने बन्दों से ख़बरदार (और उनको) देखता है।
  3. व हुवल्लज़ी युनज़्ज़िलुल्- ग़ै-स मिम्बअ्दि मा क़-नतू व यन्शुरु रह्म-तहू, व हुवल् वलिय्युल्- हमीद
    और वही तो है जो लोगों के नाउम्मीद हो जाने के बाद मेंह बरसाता है और अपनी रहमत (बारिश की बरकतों) को फैला देता है और वही कारसाज़ (और) हम्द व सना के लायक़ है।
  4. व मिन् आयातिही ख़ल्क़ुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बस्-स फ़ीहिमा मिन् दाब्बतिन्, व हु-व अ़ला जम्अिहिम् इज़ा यशा- उ क़दीर
    और उसी की (क़ु़दरत की) निशानियों में से सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करना और उन जानदारों का भी जो उसने आसमान व ज़मीन में फैला रखे हैं और जब चाहे उनके जमा कर लेने पर (भी) क़ादिर है।
  5. व मा असाबकुम् मिम्- मुसी-बतिन् फ़बिमा क-सबत् ऐदीकुम् व यअ्फू अ़न् कसीर
    और जो मुसीबत तुम पर पड़ती है वह तुम्हारे अपने ही हाथों की करतूत से और (उस पर भी) वह बहुत कुछ माफ़ कर देता है।
  6. व मा अन्तुम् बिमुअ्जिज़ी-न फ़िल्अर्ज़ि व मा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-व ला नसीर
    और तुम लोग ज़मीन में (रह कर) तो अल्लाह को किसी तरह हरा नहीं सकते और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई दोस्त है और न मददगार।
  7. व मिन् आयातिहिल्-जवारि फ़िल्-बह्-रि कल्- अअ्लाम
    और उसी की (क़़ुदरत) की निशानियों में से समन्दर में (चलने वाले) (बादबानी जहाज़) है जो गोया पहाड़ हैं।
  8. इंय्य-शय् युस्किनिर्-री-ह फ़-यज़्लल्-न रवाकि-द अ़ला ज़ह्-रिही, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिकुल्लि सब्बारिन् शकूर
    अगर अल्लाह चाहे तो हवा को ठहरा दे तो जहाज़ भी समन्दर की सतह पर (खड़े के खड़े) रह जाएँ बेशक तमाम सब्र और शुक्र करने वालों के वास्ते इन बातों में (अल्लाह की क़़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  9. औ यूबिक़्हुन्-न बिमा क-सबू व यअ्फ़ु अ़न् कसीर 
    (या वह चाहे तो) उनको उनके आमाल (बद) के सबब तबाह कर दे।
  10. व यअ् -ल-मल्लज़ी-न युजादिलू-न फ़ी आयातिना, मा लहुम् मिम्-महीस
    और वह बहुत कुछ माफ़ करता है और जो लोग हमारी निशानियों में (ख़्वाहमाख़्वाह) झगड़ा करते हैं वह अच्छी तरह समझ लें कि उनको किसी तरह (अज़ाब से) छुटकारा नहीं।
  11. फ़मा ऊतीतुम् मिन् शैइन् फ़-मताअुल्- हयातिद्-दुन्या व मा अिन्दल्लाहि ख़ैरुंव्-व अब्क़ा लिल्लज़ी-न आमनू व अ़ला रब्बिहिम् य- तवक्कलून
    (लोगों) तुमको जो कुछ (माल) दिया गया है वह दुनिया की जि़न्दगी का (चन्द रोज़) साज़ोसामान है और जो कुछ अल्लाह के यहाँ है वह कहीं बेहतर और पायदार है (मगर ये) ख़ास उन ही लोगों के लिए है जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं।
  12. वल्लज़ी-न यज्तनिबू-न कबा-इरल्-इस्मि वल्फ़्वाहि-श व इज़ा मा ग़ज़िबू हुम् यग़्फ़िरून 
    और जो लोग बड़े बड़े गुनाहों और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं और ग़ुस्सा आ जाता है तो माफ़ कर देते हैं।
  13. वल्लज़ीनस्तजाबू लिरब्बिहिम् व अक़ामुस्सला-त व अम्रुहुम् शूरा बैनहुम् व मिम्मा रज़क़् नाहुम् युन्फ़िक़ून
    और जो अपने परवरदिगार का हुक्म मानते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं और उनके कुल काम आपस के मशवरे से होते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (राहे अल्लाह में) ख़र्च करते हैं।
  14. वल्लज़ी-न इज़ा असा-बहुमुल्-बग़्यु हुम् यन्तसिरून
    और (वह ऐसे हैं) कि जब उन पर किसी किस्म की ज़्यादती की जाती है तो बस वाजिबी बदला ले लेते हैं।
  15. व जज़ा-उ सिय्य अतिन् सय्यि-अतुम्-मिस्लुहा फ़-मन् अ़फ़ा व अस्ल ह फ़-अज्-रूहू अ़लल्लाहि, इन्नहू ला युहिब्बुज़्-ज़ालिमीन
    और बुराई का बदला तो वैसी ही बुराई है उस पर भी जो शख़्स माफ़ कर दे और (मामले की) इसलाह कर दें तो इसका सवाब अल्लाह के जि़म्मे है बेशक वह ज़ुल्म करने वालों को पसन्द नहीं करता।
  16. व ल-मनिन्त-स-र बअ् -द ज़ुल्मिही फ़-उलाइ-क मा अ़लैहिम् मिन् सबील
    और जिस पर ज़़ुल्म हुआ हो अगर वह उसके बाद इन्तेक़ाम ले तो ऐसे लोगों पर कोई इल्ज़ाम नहीं।
  17. इन्नमस्सबीलु अ़लल्लज़ी-न यज़्लिमूनन्ना-स व यब्ग़ू-न फ़िल्अर्ज़ि बिग़ैरिल्-हक़्क़ि, उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    इल्ज़ाम तो बस उन्हीं लोगों पर होगा जो लोगों पर ज़़ुल्म करते हैं और रूए ज़मीन में नाहक़ ज़्यादतियाँ करते फिरते हैं उन्हीं लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है।
  18. व ल-मन् स-ब-र व ग़-फ़-र इन्-न ज़ालि-क लमिन् अ़ज़्मिल्-उमूर
    और जो सब्र करे और कुसूर माफ़ कर दे तो बेशक ये बड़े हौसले के काम हैं।
  19. व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फ़मा लहू मिंव्- वलिय्यिम् – मिम्-बअ्दिही, व तरज़ू – ज़ालिमी न लम्मा र अवुल् – अ़ज़ा-ब यक़ूलू-न हल् इला मरद्दिम् – मिन् सबील
    और जिसको अल्लाह गुमराही में छोड़ दे तो उसके बाद उसका कोई सरपरस्त नहीं और तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब (दोज़ख़) का अज़ाब देखेंगे तो कहेंगे कि भला (दुनिया में) फिर लौट कर जाने की कोई सबील है।
  20. व तराहुम् युअ्-रज़ू-न अ़लैहा ख़ाशिई-न मिनज़्ज़ुल्लि यन्ज़ुरू -न मिन् तर्फिन् ख़ाफ़िय्यन्, व क़ालल्लज़ी-न आमनू इन्नल्- ख़ासिरीनल्लज़ी-न ख़सिरू अन्फ़ु-सहुम् व अह्लीहिम् यौमल्- क़ियामति, अला इन्नज़्ज़ालिमी-न फ़ी अ़ज़ाबिम्-मुक़ीम
    और तुम उनको देखोगे कि दोज़ख़ के सामने लाए गये हैं (और) ज़िल्लत के मारे कटे जाते हैं (और) कनक्खियों से देखे जाते हैं और मोमिनीन कहेंगे कि हकीक़त में वही बड़े घाटे में हैं जिन्होने क़यामत के दिन अपने आप को और अपने घर वालों को ख़सारे में डाला देखो ज़ुल्म करने वाले दाएमी अज़ाब में रहेंगे।
  21. व मा का-न लहुम् मिन् औलिया-अ यन्सुरूनहुम् मिन् दूनिल्लाहि, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फ़मा लहू मिन् सबील
    और अल्लाह के सिवा न उनके सरपरस्त ही होंगे जो उनकी मदद को आएँ और जिसको अल्लाह गुमराही में छोड़ दे तो उसके लिए (हिदायत की) कोई राह नहीं।
  22. इस्तजीबू लि- रब्बिकुम् मिन् क़ब्लि अंय्यअ्ति-य यौमुल् ला मरद्-द लहू मिनल्लाहि मा लकुम् मिम्- मल्ज – इंय्यौमइजिंव्-व मा लकुम् मिन्-नकीर
    (लोगों) उस दिन के पहले जो अल्लाह की तरफ़ से आयेगा और किसी तरह (टाले न टलेगा) अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो (क्यों कि) उस दिन न तो तुमको कहीं पनाह की जगह मिलेगी और न तुमसे (गुनाह का) इन्कार ही बन पड़ेगा।
  23. फ़-इन् अअ्-रज़ू फ़मा अर्सल्ना-क अ़लैहिम् हफ़ीज़न्, इन् अ़लै-क इल्लल्-बलाग़ु, व इन्ना इज़ा अज़क़्नल-इन्सा-न मिन्ना रह्म-तन् फ़रि-ह बिहा व इन् तुसिब्हुम् सय्यि-अतुम् बिमा क़द्द-मत् ऐदीहिम् फ़-इन्नल्-इन्सा-न कफ़ूर
    फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ़ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ़ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है।
  24. लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, यख़्लुक़ु मा यशा-उ, य-हबु लिमंय्यशा-उ इनासंव्-व य-हबु लिमंय्यशा-उज़्-ज़ुकूर
    सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ास अल्लाह ही की है जो चाहता है पैदा करता है (और) जिसे चाहता है (फ़क़त) बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है (महज़) बेटा अता करता है।
  25. औ युज़ब्विजुहुम् ज़ुक्रानंव्-व इनासन् व यज्अ़लु मंय्यशा-उ अ़क़ीमन्, इन्नहू अ़लीमुन् क़दीर
    या उनको बेटे बेटियाँ (औलाद की) दोनों किस्में इनायत करता है और जिसको चाहता है बांझ बना देता है बेशक वह बड़ा वाकिफ़कार क़ादिर है।
  26. व मा का-न लि-ब-शरिन् अंय्युकल्लि-महुल्लाहु इल्ला वह्यन् औ मिंव्वरा-इ हिजाबिन् औ युर्सि-ल रसूलन् फ़यूहि-य बि-इज़्निही मा यशा-उ, इन्न्हू अ़लिय्युन् हकीम
    और किसी आदमी के लिए ये मुमकिन नहीं कि अल्लाह उससे बात करे मगर वही के ज़रिए से (जैसे) (दाऊद) परदे के पीछे से जैसे (मूसा) या कोई फ़रिश्ता भेज दे (जैसे मोहम्मद) ग़रज़ वह अपने एख़्तेयार से जो चाहता है पैग़ाम भेज देता है बेशक वह आलीशान हिकमत वाला है।
  27. व कज़ालि-क औहैना इलै-क रूहम्-मिन् अम्रिना, मा कुन्-त तद्री मल्किताबु व लल्-ईमानु व लाकिन् ज- अ़ल्नाहु नूरन् – नह्दी बिही मन् नशा-उ मिन् अिबादिना, व इन्न- क ल-तह्दी इला सिरातिम्-मुस्तक़ीम
    और इसी तरह हमने अपने हुक्म को रूह (क़ुरआन) तुम्हारी तरफ ‘वही’ के ज़रिए से भेजे तो तुम न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को मगर इस (क़ुरआन) को एक नूर बनाया है कि इससे हम अपने बन्दों में से जिसकी चाहते हैं हिदायत करते हैं और इसमें शक नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो।
  28. सिरातिल्लाहिल्लज़ी लहू मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, अला इलल्लाहि तसीरुल्-उमूर*
    (यानि) उसका रास्ता कि जो आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है सुन रखो सब काम अल्लाह ही की तरफ़ रूजू होंगे और वही फैसला करेगा।

Surah Ash-Shuraa Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!