46 सूरह अल-अहक़ाफ़ हिंदी में

46 सूरह अल-अहक़ाफ़ | Surah Al-Ahqaf

सूरह अल-अहक़ाफ़ में 35 आयतें और 4 रुकू हैं। यह सूरह पारा 26 में है। यह सूरह मक्का मे नाज़िल हुई।

सूरह अल-अहक़ाफ़ हिंदी में | Surah Al-Ahqaf in Hindi

पारा 26 शुरू

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. हा-मीम्
    हा मीम।
  2. तन्ज़ीलुल्-किताबि मिनल्लाहिल्- अ़ज़ीज़िल् -हकीम
    ये किताब ग़ालिब (व) हकीम अल्लाह की तरफ़ से नाजि़ल हुयी है।
  3. मा ख़लक़्नस्समावाति वल्अर्-ज़ व मा बैनहुमा इल्ला बिल्हक़्क़ि व अ-जलिम् – मुसम्मन्, वल्लज़ी-न क- फ़रू अ़म्मा उन्ज़िरू मुअ्-रिज़ून
    हमने तो सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है हिकमत ही से एक ख़ास वक़्त तक के लिए ही पैदा किया है और कुफ़्फ़ार जिन चीज़ों से डराए जाते हैं उन से मुँह फेर लेते हैं।
  4. क़ुल् अ-रऐतुम्- मा तद्अू न मिन् दूनिल्लाहि अरूनी माज़ा ख़-लक़ू मिनल्-अर्ज़ी अम् लहुम् शिर्कुन् फ़िस्समावाति, ईतूनी बिकिताबिम् मिन् क़ब्लि हाज़ा औ असा रतिम्- मिन् अिल्मिन् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    (ऐ रसूल) तुम पूछो कि अल्लाह को छोड़ कर जिनकी तुम इबादत करते हो क्या तुमने उनको देखा है मुझे भी तो दिखाओ कि उन लोगों ने ज़मीन में क्या चीज़े पैदा की हैं या आसमानों (के बनाने) में उनकी शिरकत है तो अगर तुम सच्चे हो तो उससे पहले की कोई किताब (या अगलों के) इल्म का बकि़या हो तो मेरे सामने पेश करो।
  5. व मन् अज़ल्लु मिम्मंय्यद्अू मिन् दूनिल्लाहि मल्-ला यस्तजीबु लहू इला यौमिल्- क़ियामति व हुम् अ़न् दुआ़ – इहिम् ग़ाफिलून
    और उस शख़्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो अल्लाह के सिवा ऐसे शख़्स को पुकारे जो उसे क़यामत तक जवाब ही न दे और उनको उनके पुकारने की ख़बरें तक न हों।
  6. व इज़ा हुशिरन्नासु कानू लहुम् अअ्दाअंव् व कानू बिअिबा – दति-हिम् काफ़िरीन
    और जब लोग (क़यामत) में जमा किये जाएगें तो वह (माबूद) उनके दुशमन हो जाएंगे और उनकी परसतिश से इन्कार करेंगे।
  7. व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना बय्यिनातिन् क़ालल्लज़ी – न क – फ़रू लिल्हक़्क़ि लम्मा जा-अहुम् हाज़ा सिह्-रूम्-मुबीन
    और जब हमारी खुली खुली आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो जो लोग काफ़िर हैं हक़ के बारे में जब उनके पास आ चुका तो कहते हैं ये तो सरीही जादू है।
  8. अम् यक़ूलूनफ़्तराहु, क़ुल् इनिफ़्तरैतुहू फ़ला तम्लिकू न ली मिनल्लाहि शैअन् हु-व अअ्लमु बिमा तुफ़ीज़ू-न फ़ीहि, कफ़ा बिही शहीदम्-बैनी व बैनकुम्, व हुवल् ग़फ़ूरुर्- रहीम
    क्या ये कहते हैं कि इसने इसको ख़ुद गढ़ लिया है तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं इसको (अपने जी से) गढ़ लेता तो तुम अल्लाह के सामने मेरे कुछ भी काम न आओगे जो जो बातें तुम लोग उसके बारे में करते रहते हो वह ख़ूब जानता है मेरे और तुम्हारे दरमियान वही गवाही को काफ़ी है और वही बड़ा बख्शने वाला है मेहरबान है।
  9. क़ुल् मा कुन्तु बिद्अ़म् – मिनर्रुसुलि व मा अद्री मा युफ़्अ़लु बी व ला बिकुम्, इन् अत्तबिअु इल्ला मा यूहा इलय् य व मा अ-न इल्ला नज़ीरुम् – मुीबन
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल तो आया नहीं हूँ और मैं कुछ नहीं जानता कि आइन्दा मेरे साथ क्या किया जाएगा और न (ये कि) तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा मैं तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरे पास वही आयी है और मैं तो बस एलानिया डराने वाला हूँ।
  10. क़ुल् अ-रऐतुम् इन् का न मिन् अिन्दिल्लाहि व कफ़र्तुम् बिही व शहि-द शाहिदुम् मिम् बनी इस्राई-ल अ़ला मिस्लिही फ़-आम-न वस्तक्बर्तुम्, इन्नल्ला-ह ला यह्दिल्- कौमज़्ज़ालिमीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर ये (क़़ुरआन) अल्लाह की तरफ़ से हो और तुम उससे इन्कार कर बैठे हालाँकि (बनी इसराईल में से) एक गवाह उसके मिसल की गवाही भी दे चुका और ईमान भी ले आया और तुमने सरकशी की (तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक है) बेशक अल्लाह ज़ालिम लोगों को मन्जि़ल ए मक़सूद तक नहीं पहुँचाता।
  11. व क़ालल्लज़ी-न क- फ़रु लिल्लज़ी-न आमनू लौ का न ख़ैरम्-मा स-बक़ूना इलैहि व इज़् लम् यह्तदू बिही फ़-स-यक़ूलू-न हाज़ा इफ़्कुन् क़दीम
    और काफ़िर लोग मोमिनों के बारे में कहते हैं कि अगर ये (दीन) बेहतर होता तो ये लोग उसकी तरफ़ हमसे पहले न दौड़ पड़ते और जब क़ुरआन के ज़रिए से उनकी हिदायत न हुयी तो अब भी कहेंगे ये तो एक क़दीमी झूठ है।
  12. व मिन् क़ब्लिही किताबु मूसा इमामंव्-व रह्म-तन्, व हाज़ा किताबुम् मुसद्दिक़ुल्-लिसानन् अ़-रबिय्यल् लियुन्ज़ि रल्लज़ी न ज़-लमू व बुश्रा लिल् मुह्सिनीन
    और इसके क़ब्ल मूसा की किताब पेशवा और (सरासर) रहमत थी और ये (क़ुरआन) वह किताब है जो अरबी ज़बान में (उसकी) तसदीक़ करती है ताकि (इसके ज़रिए से) ज़ालिमों को डराए और नेकी कारों के लिए (अज़सरतापा) ख़ुशख़बरी है।
  13. इन्नल्लज़ी-न क़ालू रब्बुनल्लाहु सुम्मस्तक़ामू फ़ला ख़ौफ़ुन् अ़लैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून
    बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है फिर वह इस पर क़ायम रहे तो (क़यामत में) उनको न कुछ ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मग़ीन होंगे।
  14. उलाइ क अस्हाबुल -जन्नति ख़ालिदी-न फ़ीहा जज़ा अम् बिमा कानू यअ्मलून
    यही तो अहले जन्नत हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे (ये) उसका सिला है जो ये लोग (दुनिया में) किया करते थे।
  15. व वस्सैनल्-इन्सा-न बिवालिदैहि इह्सानन्, ह-मलत्हु उम्मुहू कुर्हव्- व व-ज़अ़त्हु कुर्हन्, व हम्लुहू व फ़िसालुहू सलासू-न शह्-रन्, हत्ता इज़ा ब-ल-ग़ अशुद्-दहू व ब-ल-ग़ अर्बई-न स-नतन् क़ा-ल रब्बि ‘औज़िअ्नी अन् अश्कु-र निअ्-म-त-कल्लती अन्अ़म्-त अ़लय्-य व अ़ला वालिदय्य व अन् अअ्म-ल सालिहन् तर्ज़ाहु व अस्लिह् ली फ़ी ज़ुर्रिय्यती, इन्नी तुब्तु इलै-क व इन्नी मिनल्- मुस्लिमीन
    और हमने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ भलाई करने का हुक्म दिया (क्यों कि) उसकी माँ ने रंज ही की हालत में उसको पेट में रखा और रंज ही से उसको जना और उसका पेट में रहना और उसको दूध बढ़ाई के तीस महीने हुए यहाँ तक कि जब अपनी पूरी जवानी को पहुँचता। और चालीस बरस (के सिन) को पहुँचता है तो (अल्लाह से) अर्ज़ करता है परवरदिगार तू मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा कि तूने जो एहसानात मुझ पर और मेरे वालदैन पर किये हैं मैं उन एहसानों का शुक्रिया अदा करूँ। और ये (भी तौफीक दे) कि मैं ऐसा नेक काम करूँ जिसे तू पसन्द करे और मेरे लिए मेरी औलाद में सुलाह व तक़वा पैदा करे तेरी तरफ़ रूजू करता हूँ और मैं यक़ीनन फरमाबरदारो में हूँ।
  16. उलाइ-कल्लज़ी-न न तक़ब्बलु अ़न्हुम् अह्स-न मा अ़मिलू व न-तजा-वज़ु अ़न् सय्यिअतिहिम् फ़ी अस्हाबिल-जन्नति, वअ्दस्- सिद्दिल्लज़ी कानू यू अ़दून
    यही वह लोग हैं जिनके नेक अमल हम क़ुबूल फरमाएँगे और बहिश्त (के जाने) वालों में उनके गुनाहों से दरग़ुज़र करेंगे (ये वह) सच्चा वायदा है जो उन से किया जाता था।
  17. वल्लज़ी क़ा-ल लिवालिदैहि उफ़्फ़िल्-लकुमा अ-तअिदानिनी अन् उख़र-ज व क़द् ख़-लतिल-क़ुरूनु मिन् क़ब्ली व हुमा यस्तग़ीसानिल्ला-ह वैल-क आमिन् इन्-न वअ्दल्लाहि हक़्क़ुन् फ़-यक़ूलु मा हाज़ा इल्ला असातीरुल्-अव्वलीन
    और जिसने अपने माँ बाप से कहा कि तुम्हारा बुरा हो, क्या तुम मुझे धमकी देते हो कि मैं दोबारा (कब्र से) निकाला जाऊँगा हालाँकि बहुत से लोग मुझसे पहले गुज़र चुके (और कोई जि़न्दा न हुआ) और दोनों फ़रियाद कर रहे थे कि तुझ पर वाए हो ईमान ले आ अल्लाह का वायदा ज़रूर सच्चा है तो वह बोल उठा कि ये तो बस अगले लोगों के अफ़साने हैं।
  18. उलाइ – कल्लज़ी न हक़् क़ अ़लैहिमुल्-क़ौलु फ़ी उ-ममिन् क़द् ख़-लत् मिन् क़ब्लिहिम्- मिनल्-जिन्नि वल्-इन्सि, इन्नहुम् कानू ख़ासिरीन
    ये वही लोग हैं कि जिन्नात और आदमियों की (दूसरी) उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी हैं उन ही के शुमूल में उन पर भी अज़ाब का वायदा मुस्तहक़ हो चुका है ये लोग बेशक घाटा उठाने वाले थे।
  19. व लि-कुल्लिन् द-रजातुम्-मिम्मा अ़मिलू व लियुवफ़्फ़ि-यहुम् अअ्मालहुम् व हुम् ला युज़्लमून
    और लोगों ने जैसे काम किये होंगे उसी के मुताबिक सबके दर्जे होंगे और ये इसलिए कि अल्लाह उनके आमाल का उनको पूरा पूरा बदला दे और उन पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएं।
  20. व यौ म युअ़रज़ुल्लज़ी-न क-फ़रु अ़लन्-नारि, अज़्हब्तुम् तय्यिबातिकुम् फ़ी हयातिक़ुमुद्-दुन्या वस्तम्तअ्तुम् बिहा फ़ल्यौ म तुज्ज़ौ -न अ़ज़ाबल्-हूनि बिमा कुन्तुम् तस्तक्बिरू-न फ़िल्अर्ज़ि बिग़ैरिल्- हक़्क़ि व बिमा कुन्तुम् तफ़्सुक़ून
    और जिस दिन कुफ्फार जहन्नुम के सामने लाएँ जाएँगे (तो उनसे कहा जाएगा कि) तुमने अपनी दुनिया की जि़न्दगी में अपने मज़े उड़ा चुके और उसमें ख़ूब चैन कर चुके तो आज तुम पर जि़ल्लत का अज़ाब किया जाएगा इसलिए कि तुम अपनी ज़मीन में अकड़ा करते थे और इसलिए कि तुम बदकारियां करते थे।
  21. वज़्कुर् अख़ा आ़दिन्, इज़् अन्ज़-र इन्नी क़ौमहू बिलू- अह्क़ाफ़ि व क़द् ख़-लतिन्- नुज़ुरु मिम्बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही अल्ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, अख़ाफ़ु अ़लैकुम् अ़ज़ा-ब यौमिन् अ़ज़ीम
    और (ऐ रसूल) तुम आद के भाई (हूद) को याद करो जब उन्होंने अपनी क़ौम को (सरज़मीन) अहक़ाफ़ में डराया और उनके पहले और उनके बाद भी बहुत से डराने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे (और हूद ने अपनी क़ौम से कहा) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो क्योंकि तुम्हारे बारे में एक बड़े सख़्त दिन के अज़ाब से डरता हूँ।
  22. क़ालू अजिअ्-तना लितअ्फ़ि-कना अ़न् आलि हतिना फ़अ्तिना बिमा तअिदुना इन् कुन् त मिनस्- सादिक़ीन
    वह बोले क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमको हमारे माबूदों से फेर दो तो अगर तुम सच्चे हो तो जिस अज़ाब की तुम हमें धमकी देते हो ले आओ।
  23. क़ा-ल इन्नमल्- अिल्मु जिन्दल्लाहि व उबल्लिग़ुकुम् मा उर्सिल्तु बिही व लाकिन्नी अराकुम् क़ौमन् तज्हलून
    हूद ने कहा (इसका) इल्म तो बस अल्लाह के पास है और (मैं जो एहकाम देकर भेजा गया हूँ) वह तुम्हें पहुँचाए देता हूँ मगर मैं तुमको देखता हूँ कि तुम जाहिल लोग हो।
  24. फ़-लम्मा रऔहु आ़रिज़म्- मुस्तक़्बि-ल औदि यतिहिम् क़ालू हाज़ा आ़रिज़ुम् मुम्-तिरुना, बल् हु-व मस्तअ्जल्तुम् बिही, रीहुन् फ़ीहा अ़ज़ाबुन् अलीम
    तो जब उन लोगों ने इस (अज़ाब) को देखा कि बादल की तरह उनके मैदानों की तरफ़ उम्ड़ा आ रहा है तो कहने लगे ये तो बादल है जो हम पर बरस कर रहेगा (नहीं) बल्कि ये वह (अज़ाब) जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे (ये) वह आँधी है जिसमें दर्दनाक (अज़ाब) है।
  25. तुदम्मिरु कुल्-ल शैइम्- बि-अम्रि रब्बिहा फ़-अस्बहू ला युरा इल्ला मसाकिनुहुम्, कज़ालि-क नज्-ज़िल- क़ौमल्-मुज्रिमीन
    जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह व बरबाद कर देगी तो वह ऐसे (तबाह) हुए कि उनके घरों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता था हम गुनाहगारों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं।
  26. व ल-क़द् मक्कन्नाहुम् फ़ीमा इम्-मक्कन्नाकुम् फ़ीहि व जअ़ल्ना लहुम् सम्- अ़ंव्-व अब्सारंव् व अफ़्इ-दतन् फ़मा अग़्ना अ़न्हुम् सम्अुहुम् व ला अब्सारुहुम् व ला अफ़्इ-दतुहुम् मिन् शैइन् इज़् कानू यज्हदू-न बिआयातिल्लाहि व हा-क़ बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन
    और हमने उनको ऐसे कामों में मक़दूर दिये थे जिनमें तुम्हें (कुछ भी) मक़दूर नहीं दिया और उन्हें कान और आँख और दिल (सब कुछ दिए थे) तो चूँकि वह लोग अल्लाह की आयतों से इन्कार करने लगे तो न उनके कान ही कुछ काम आए और न उनकी आँखें और न उनके दिल और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे उसने उनको हर तरफ़ से घेर लिया।
  27. ल-क़द् अह्लक्ना मा हौलकुम् मिनल-क़ुरा व सर्रफ़्नल् – आयाति लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
    और (ऐ अहले मक्का) हमने तुम्हारे इर्द गिर्द की बस्तियों को हलाक कर मारा और (अपनी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ तरह तरह से दिखा दी ताकि ये लोग बाज़ आएँ (मगर कौन सुनता है)।
  28. फ़-लौ ला न-स-रहुमुल्लज़ीनत्- त-ख़ज़ू मिन् दूनिल्लाहि क़ुर्बानन् आलि-हतन्, बल् ज़ल्लू अ़न्हुम् व ज़ालि-क इफ़्कुहम् व मा कानू यफ़्तरून
    तो अल्लाह के सिवा जिन को उन लोगों ने तक़र्रुब (अल्लाह) के लिए माबूद बना रखा था उन्होंने (अज़ाब के वक़्त) उनकी क्यों न मदद की बल्कि वह तो उनसे ग़ायब हो गये और उनके झूठ और उनकी (इफ़तेरा) परदाजि़यों की ये हक़ीक़त थी।
  29. व इज़् सरफ़्ना इलै-क न-फ़रम् मिनल-जिन्नि यस्तमिअूनल-क़ुर्आ-न फ़-लम्मा ह-ज़रूहु क़ालू अन्सितू फ़-लम्मा क़ुज़ि-य वल्लौ इला क़ौमिहिम् मुन्ज़िरीन
    और जब हमने जिनों में से कई शख़्सों को तुम्हारी तरफ़ मुतावज्जे किया कि वह दिल लगाकर क़़ुरआन सुनें तो जब उनके पास हाजि़र हुए तो एक दुसरे से कहने लगे ख़ामोश बैठे (सुनते) रहो फिर जब (पढ़ना) तमाम हुआ तो अपनी क़ौम की तरफ़ वापस गए।
  30. क़ालू या क़ौमना इन्ना समिअ्ना किताबन् उन्ज़ि-ल मिम्बअ्दि मूसा मुसद्दि-क़ल्लिमा बै-न यदैहि यह्दी इलल्- हक़्क़ि व इला तरीक़िम्-मुस्तक़ीम
    कि (उनको अज़ाब से) डराएं तो उन से कहना शुरू किया कि ऐ भाइयों हम एक किताब सुन आए हैं जो मूसा के बाद नाजि़ल हुयी है (और) जो किताबें, पहले (नाजि़ल हुयीं) हैं उनकी तसदीक़ करती हैं सच्चे (दीन) और सीधी राह की हिदायत करती हैं।
  31. या क़ौमना अजीबू दाअि-यल्लाहि व आमिनू बिही यग़्फ़िर् लकुम् मिन् ज़ुनूबिक़ुम् व युजिर्कुम् मिन् अ़ज़ाबिन् अलीम
    ऐ हमारी क़ौम! अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले की बात मानों और अल्लाह पर ईमान लाओ वह तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और (क़यामत) में तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से पनाह में रखेगा।
  32. व मल्-ला युजिब् दाअि यल्लाहि फ़लै-स बिमुअ्जिज़िन् फ़िल्अर्ज़ि व लै-स लहू मिन् दूनिही औलिया-उ, उलाइ क फ़ी ज़लालिम्-मुबीन
    और जिसने अल्लाह की तरफ़ बुलाने वाले की बात न मानी तो (याद रहे कि) वह (अल्लाह को रूए) ज़मीन में आजिज़ नहीं कर सकता और न उस के सिवा कोई सरपरस्त होगा यही लोग गुमराही में हैं।
  33. अ-व लम् यरौ अन्नल्लाहल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वल्अर्ज व लम् यअ्-य बिख़ल्कि हिन्-न बिक़ादिरिन् अ़ला अंय्युह्यि –यल्मौता, बला इन्नहू अ़ला क़ुल्लि शैइन् क़दीर
    क्या इन लोगों ने ये ग़ौर नहीं किया कि जिस अल्लाह ने सारे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उनके पैदा करने से ज़रा भी थका नहीं वह इस बात पर क़ादिर है कि मुर्दो को जि़न्दा करेगा हाँ (ज़रूर) वह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  34. व यौ-म युअ्-रज़ुल्लज़ी -न क-फ़रू अ़लन्नारि, अलै-स हाज़ा बिल्हक़्क़ि, क़ालू बला व रब्बिना, क़ा-ल फ़ज़ूकुल्- अ़ज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्फ़ुरून
    जिस दिन कुफ़्फ़ार (जहन्नुम की) आग के सामने पेश किए जाएँगे (तो उन से पूछा जाएगा) क्या अब भी ये बरहक़ नहीं है वह लोग कहेंगे अपने परवरदिगार की क़सम हाँ (हक़ है) अल्लाह फ़रमाएगा तो लो अब अपने इन्कार व कुफ्र के बदले अज़ाब के मज़े चखो।
  35. फ़स्बिर कमा स-ब-र उलुलु अ़ज़्मि मिनर् रुसुलि व ला तस्तअ् जिल्-लहुम्, क-अन्नहुम् यौ-म यरौ-न मा यू- अ़दू-न लम् यल्बसू इल्ला सा-अ़तम् मिन्-नहारिन्, बलाग़ुन् फ़-हल् युह्लकु इल्लल्-क़ौमुल्-फ़ासिक़ून
    तो (ऐ रसूल!) पैग़म्बरों में से जिस तरह अव्वलुल अज़्म (आली हिम्मत), सब्र करते रहे तुम भी सब्र करो और उनके लिए (अज़ाब) की ताज़ील की ख़्वाहिश न करो जिस दिन यह लोग उस कयामत को देखेंगे जिसको उनसे वायदा किया जाता है तो (उनको मालूम होगा कि) गोया ये लोग (दुनिया में) बहुत रहे होगें तो सारे दिन में से एक घड़ी भर तो बस वही लोग हलाक होंगे जो बदकार थे।

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