नात: याद-ए-मुस्तफ़ा ऐसी बस गई है सीने में

Naat: Yaad-e-Mustafa Aisi Bas Gai Hai Seene Mein

याद-ए-मुस्तफ़ा ऐसी बस गई है सीने में
जिस्म हो कहीं अपना, दिल तो है मदीने में

याद-ए-मुस्तफ़ा ऐसी बस गई है सीने में
जिस्म तो यहीं है अपना, दिल तो है मदीने में

मेरे मदनी आक़ा का घर तो है मदीने में
हाँ ! मगर वो रहते हैं ‘आशिक़ों के सीने में

बा’द मेरे मरने के सारे लोग यूँ बोले
आदमी वो अच्छा था, जो मर गया मदीने में

कौन है ये दीवाना ? किस का है ये दीवाना ?
हश्र में भी कहता है जाना है मदीने में

कौन है ये दीवाना ? किस का है ये दीवाना ?
महशर में भी कहता है कि जाना है मदीने में

कौन सी जगह उन के ‘आशिक़ों से ख़ाली है
हर जगह है परवाने, शम’अ है मदीने में

कितना प्यारा सीना है, बस गया मदीना है
प्यारे तयबा वाले हैं जो रहते हैं मदीने में

काश ! उन के कूचे से लाए ये सबा पैग़ाम
चल तुझे बुलाते हैं मुस्तफ़ा मदीने में

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