47 सूरह मुहम्मद हिंदी में

47 सूरह मुहम्मद | Surah Muhammad

इस सूर में 38 आयतें और 4 रुकू हैं। यह सूरह पारा 26 में है। यह सूरह मदीना मे नाज़िल हुई।

सूरह मुहम्मद हिंदी में | Surah Muhammad

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अल्लज़ी – न क – फ़रू व सट्टू अ़न् सबीलिल्लाहि अज़ल्-ल अअ्मालहुम्
    जिन लोगों ने कुफ़्र एख़्तेयार किया और (लोगों को) अल्लाह के रास्ते से रोका अल्लाह ने उनके आमाल अकारत कर दिए।
  2. वल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्- सालिहाति व आमनू बिमा नुज़्ज़ि -ल अ़ला मुहम्मदिंव्-व हुवल्-हक़्क़ु मिर्रब्बि-हिम् कफ़्फ़-र अ़न्हुम् सय्यिआतिहिम् व अस्ल-ह बालहुम्
    और जिन लोगों ने ईमान क़़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए और जो (किताब) मोहम्मद पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से नाज़िल हुयी है और वह बरहक़ है उस पर ईमान लाए तो अल्लाह ने उनके गुनाह उनसे दूर कर दिए और उनकी हालत संवार दी।
  3. ज़ालि-क बिअन्नल्लज़ी न क फ़रुत्त-बअुल्- बाति-ल व अन्नल्लज़ी-न आमनुत्-ब- अुल्-हक़्-क़ मिर्-रब्बिहिम्, कज़ालि-क यज़्रिबुल्लाहु लिन्नासि अम्सालहुम्
    ये इस वजह से कि काफ़िरों ने झूठी बात की पैरवी की और ईमान वालों ने अपने परवरदिगार का सच्चा दीन एख़्तेयार किया यूँ अल्लाह लोगों के समझाने के लिए मिसालें बयान करता है।
  4. फ-इज़ा लक़ीतुमुल्लज़ी-न क-फ़रू फ़ज़र्बर्रिक़ाबि, हत्ता इज़ा अस्ख़न्तुमूहुम् फ़शुद्-दुल् – वसा-क़ फ़-इम्मा मन्नम्-बअ्दु व इम्मा फ़िदा अन् हत्ता त-ज़अ़ल्- हर्बु औज़ा रहा, ज़ालि – क, व लौ यशा-उल्लाहु लन्त-स-र मिन्हुम् व लाकिल्-लियब्लु-व बअ्-ज़कुम् बिबअ्ज़िन्, वल्लज़ी-न क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि फ़-लंय्युज़िल्-ल अअ्मालहुम्
    तो जब तुम काफ़िरों से भिड़ो तो (उनकी) गर्दनें मारो यहाँ तक कि जब तुम उन्हें ज़ख़्मों से चूर कर डालो तो उनकी मुश्कें कस लो फिर उसके बाद या तो एहसान रख (कर छोड़ दे) या मुआवेज़ा लेकर, यहाँ तक कि (दुशमन) लड़ाई के हथियार रख दे तो (याद रखो) अगर अल्लाह चाहता तो (और तरह) उनसे बदला लेता मगर उसने चाहा कि तुम्हारी आज़माइश एक दूसरे से (लड़वा कर) करे। और जो लोग अल्लाह की राह में शाहीद किये गए उनकी कारगुज़ारियों को अल्लाह हरगिज़ अकारत न करेगा।
  5. स-यह्दीहिम् व युस्लिहु बालहुम
    उन्हें अनक़रीब मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचाएगा।
  6. व युद्ख़िलुहुमुल्-जन्न-त अ़र्र-फ़हा लहुम्
    और उनकी हालत सवार देगा और उनको उस बेहिश्त में दाखि़ल करेगा जिसका उन्हें (पहले से) शानासा कर रखा है।
  7. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तन्सुरुल्ला-ह यन्सुर्कुम् व युसब्बित् अक़्दामकुम्
    ऐ ईमानदारों अगर तुम अल्लाह (के दीन) की मदद करोगे तो वह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें साबित क़दम रखेगा।
  8. वल्लज़ी-न क-फ़रू फ़-तअ्सल्-लहुम् व अज़ल्-ल अअ्मालहुम
    और जो लोग काफि़र हैं उनके लिए तो डगमगाहट है और अल्लाह (उनके) आमाल बरबाद कर देगा।
  9. ज़ालि-क बिअन्नहुम् करिहू मा अन्ज़लल्लाहु फ़-अह्ब-त अअ्मालहुम
    ये इसलिए कि अल्लाह ने जो चीज़ नाजि़ल फ़रमायी उसे उन्होने (नापसन्द किया) तो अल्लाह ने उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया।
  10. अ-फ़ लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फयन्ज़ुरू कै-फ़ का न आ़क़ि-बतुल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, दम्म-रल्लाहु अ़लैहिम् व लिल्काफ़िरी-न अम्सालुहा
    तो क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं तो देखते जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या (ख़राब) हुआ कि अल्लाह ने उन पर तबाही डाल दी और इसी तरह (उन) काफ़िरों को भी (सज़ा मिलेगी)।
  11. ज़ालि-क बि-अन्नल्ला-ह मौलल्लज़ी-न आमनू व अन्नल्-काफ़िरी-न ला मौला लहुम
    ये इस वजह से कि ईमानदारों का अल्लाह सरपरस्त है और काफ़िरों का हरगिज़ कोई सरपरस्त नहीं।
  12. इन्नल्ला-ह युद्ख़िलुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति जन्नातिन् तज्-री मिन् तह्तिहल्- अन्हारु, वल्लज़ी-न क-फ़रू य-तमत्तअू-न व यअ्कुलू-न कमा तअ्कुलुल्-अन्आ़मु वन्नारु मस्वल्-लहुम
    अल्लाह उन लोगों को जो इमान लाए और अच्छे (अच्छे) काम करते रहे ज़रूर बहिश्त के उन बाग़ों में जा पहुँचाएगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं और जो काफि़र हैं वह (दुनिया में) चैन करते हैं और इस तरह (बेफ़िक्री से खाते (पीते) हैं जैसे चारपाए खाते पीते हैं और आखि़र) उनका ठिकाना जहन्नुम है।
  13. व क- अय्यिम् मिन् क़र्-यतिन् हि-य अशद्-दु क़ुव्वतम्-मिन् क़र्-यतिकल्लती अख़्र-जत्-क अह्लक्नाहुम् फ़ला नासि-र लहुम
    और जिस बस्ती से तुम लोगों ने निकाल दिया उससे ज़ोर में कहीं बढ़ चढ़ के बहुत सी बस्तियाँ थीं जिनको हमने तबाह बर्बाद कर दिया तो उनका कोई मददगार भी न हुआ।
  14. अ-फ़ मन् का-न अ़ला बय्यि-नतिम् मिर्रब्बिही क- मन् ज़ुय्यि-न लहू सू-उ अ़-मलिही वत्त-बअू अह्वा- अहुम
    क्या जो शख़्स अपने परवरदिगार की तफ़फ से रौशन दलील पर हो उस शख़्स के बराबर हो सकता है जिसकी बदकारियाँ उसे भली कर दिखायीं गयीं हों वह अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिशों पर चलते हैं।
  15. म-सलुल्-जन्नतिल्लति वुअिदल्- मुत्तक़ू-न, फ़ीहा अन्हारुम् – मिम्मा-इन् ग़ैरि आसिनिन् व अन्हारुम् मिल्- ल-बनिल्- लम् य-तग़य्यर् तअ्मुहू व अन्हारुम्-मिन् ख़म्रिल् लज़्ज़तिल् – लिश्शारिबी-न व अन्हारुम् – मिन् अ़-सलिम् मुसफ्फ़न्, व लहुम् फ़ीहा मिन् कुल्लिस्स-मराति व मग़्फ़ि-रतुम् मिर्रब्बिहिम्, क- मन् हु-व ख़ालिदुन् फ़िन्नारि व सुक़ू मा-अन् हमीमन् फ़- क़त्त-अ़ अम्आ़-अहुम
    जिस बहिश्त का परहेज़गारों से वायदा किया जाता है उसकी सिफ़त ये है कि उसमें पानी की नहरें जिनमें ज़रा बू नहीं और दूध की नहरें हैं जिनका मज़ा तक नहीं बदला और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों के लिए (सरासर) लज़्ज़त है और साफ़ शफ़्फ़ाफ़ शहद की नहरें हैं और वहाँ उनके लिए हर किस्म के मेवे हैं और उनके परवरदिगार की तरफ़ से बख़शिश है (भला ये लोग) उनके बराबर हो सकते हैं जो हमेशा दोज़ख़ में रहेंगे और उनको खौलता हुआ पानी पिलाया जाएगा तो वह आँतों के टुकड़े टुकड़े कर डालेगा।
  16. व मिन्हुम् मंय्यस्तमिअु इलै-क हत्ता इज़ा ख़-रजू मिन् अिन्दि-क क़ालू लिल्लज़ी न ऊतुल् – अिल्-म माज़ा क़ा- ल आनिफन्, उलाइ-कल्लज़ी-न त-बअ़ल्लाहु अ़ला क़ुलूबिहिम् वत्त-बअू अह्वा-अहुम 
    और (ऐ रसूल!) उनमें से बाज़ ऐसे भी हैं जो तुम्हारी तरफ़ कान लगाए रहते हैं यहाँ तक कि सब सुन कर जब तुम्हारे पास से निकलते हैं तो जिन लोगों को इल्म (कु़रआन) दिया गया है उनसे कहते हैं (क्यों भई) अभी उस शख़्स ने क्या कहा था ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर अल्लाह ने (कुफ़्र की) अलामत मुक़र्रर कर दी है और ये अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिशों पर चल रहे हैं।
  17. वल्लज़ीनह्-तदौ ज़ा-दहुम् हुदंव् व आताहुम् तक़्वाहुम 
    और जो लोग हिदायत याफ़ता हैं उनको अल्लाह (क़ुरआन के ज़रिए से) मज़ीद हिदायत करता है और उनको परहेज़गारी अता फ़रमाता है।
  18. फ़-हल् यन्ज़ुरू – न इल्लस्- सा-अ़-त अन् तअ्ति -यहुम् बग़् -ततन् फ़-क़द् जा अ अश्रातुहा फ़-अन्ना लहुम् इज़ा जा-अत्हुम् ज़िक्राहुम
    तो क्या ये लोग बस क़यामत ही के मुनतजि़र हैं कि उन पर एक बारगी आ जाए तो उसकी निशानियाँ आ चुकी हैं तो जिस वक़्त क़यामत उन (के सर) पर आ पहुँचेगी फिर उन्हें नसीहत कहाँ मुफीद हो सकती है।
  19. फ़अ्लम् अन्नहू ला इला-ह इल्लल्लाहु वस्तग़्फ़िर् लि-ज़म्बि-क व लिल्-मुअ्मिनी-न वल्-मुअ्मिनाति, वल्लाहु यअ्लमु मु-तक़ल्ल-बकुम् व मस्वाकुम् 
    तो फिर समझ लो कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और (हम से) अपने और ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों के गुनाहों की माफ़ी मांगते रहो और अल्लाह तुम्हारे चलने फिरने और ठहरने से (ख़ूब) वाकि़फ़ है।
  20. व यक़ूलुल्लज़ी-न आमनू लौ ला नुज़्ज़िलत् सू-रतुन् फ़-इज़ा उन्ज़िलत् सू-रतुम् मुह्क-मतुंव्-व ज़ुकि-र फ़ीहल्- क़ितालु रऐतल्लज़ी न फ़ी क़ुलूबिहिम् म-रजुंय्-यन्ज़ुरू- न इलै-क न-ज़रल्-मग़्शिय्यि अ़लैहि मिनल्-मौति, फ़-औला लहुम 
    और मोमिनीन कहते हैं कि (जेहाद के बारे में) कोई सूरा क्यों नहीं नाजि़ल होता लेकिन जब कोई साफ़ सरीही मायनों का सूरा नाजि़ल हुआ और उसमें जेहाद का बयान हो तो जिन लोगों के दिल में (नेफ़ाक़) का मर्ज़ है तुम उनको देखोगे कि तुम्हारी तरफ़ इस तरह देखते हैं जैसे किसी पर मौत की बेहोशी (छायी) हो (कि उसकी आँखें पथरा जाएं) तो उन पर वाए हो।
  21. ता-अ़तुंव्-व क़ौलुम्-मअ्-रूफ़ुन्, फ़-इज़ा अ़-ज़मल्-
    अम्-रू फ़लौ स-दक़ुल्ला-ह लका-न ख़ैरल्-लहुम
    (उनके लिए अच्छा काम तो) फ़रमाबरदारी और पसन्दीदा बात है फिर जब लड़ाई ठन जाए तो अगर ये लोग अल्लाह से सच्चे रहें तो उनके हक़ में बहुत बेहतर है।
  22. फ़-हल् अ़सैतुम् इन् तवल्लैतुम् अन् तुफ़्सिदू फ़िल्अर्ज़ि व तुक़त्तिअू अर्-हा-मकुम
    (मुनाफि़क़ों) क्या तुमसे कुछ दूर है कि अगर तुम हाकि़म बनो तो रूए ज़मीन में फसाद फैलाने और अपने रिश्ते नातों को तोड़ने लगो ये वही लोग हैं जिन पर अल्लाह ने लानत की है।
  23. उलाइ-कल्लज़ी-न ल-अ़-नहुमुल्लाहु फ़-असम्म हुम् व अअ्मा अब्सा रहुम 
    और (गोया ख़ुद उसने) उन (के कानों) को बहरा और आँखों को अँधा कर दिया है।
  24. अ-फ़ला य-तदब्बरूनल-क़ुर्आ-न अम् अ़ला कुलूबिन् अक़्फ़ालुहा 
    तो क्या लोग क़़ुरआन में (ज़रा भी) ग़ौर नहीं करते या (उनके) दिलों पर ताले लगे हुए हैं।
  25. इन्नल्- लज़ीनर्तद् दू अ़ला अद्बारिहिम् मिम्बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल्-हुदश्शैतानु सव्व-ल लहुम्, व अम्ला लहुम 
    बेशक जो लोग राहे हिदायत साफ़ साफ़ मालूम होने के बाद उलटे पाँव (कुफ़्र की तरफ़) फिर गये शैतान ने उन्हें (बुते देकर) ढील दे रखी है और उनकी (तमन्नाओं) की रस्सियाँ दराज़ कर दी हैं।
  26. ज़ालि क बि- अन्नहुम् क़ालू लिल्लज़ी न करिहू मा नज़्ज़-लल्लाहु सनुती अुकुम् फ़ी बअ्ज़िल-अम्रि वल्लाहु यअ्लमु इस्रा-रहुम 
    यह इसलिए जो लोग अल्लाह की नाजि़ल की हुई (किताब) से बेज़ार हैं ये उनसे कहते हैं कि बाज़ कामों में हम तुम्हारी ही बात मानेंगे और अल्लाह उनके पोशीदा मशवरों से वाकि़फ है।
  27. फ़कै-फ इज़ा तवफ़्फ़त्हुमुल्-मलाइ-कतु यज़िरबू-न वुजू-हहुम् व अद्बारहुम 
    तो जब फ़रिश्ते उनकी जान निकालेंगे उस वक़्त उनका क्या हाल होगा कि उनके चेहरों पर और उनकी पुश्त पर मारते जाएँगे।
  28. ज़ालि-क बिअन्नहुमुत्त-बअू मा अस्ख़तल्ला-ह व करिहू रिज़् वानहू फ़-अह्ब त अअ्मालहुम 
    ये इस सबब से कि जिस चीज़ों से अल्लाह नाख़ुश है उसकी तो ये लोग पैरवी करते हैं। और जिसमें अल्लाह की ख़ुशी है उससे बेज़ार हैं तो अल्लाह ने भी उनकी कारस्तानियों को अकारत कर दिया।
  29. अम् हसिबल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम्-म- रज़ुन् अल्-लंय्युख़्रिजल्लाहु अज़्ग़ा -नहुम 
    क्या वह लोग जिनके दिलों में (नेफ़ाक़ का) मर्ज़ है ये ख़्याल करते हैं कि अल्लाह दिल के कीनों को भी न ज़ाहिर करेगा।
  30. व लौ नशा-उ ल-अरैना- कहुम् फ़-ल-अ़रफ़्तहुम् बिसीमाहुम्, व ल-तअ्-रिफ़न्नहुम् फ़ी लह्निल्-क़ौलि, वल्लाहु यअ्लमु अअ्मालकुम
    तो हम चाहते तो हम तुम्हें इन लोगों को दिखा देते तो तुम उनकी पेशानी ही से उनको पहचान लेते अगर तुम उन्हें उनके अन्दाज़े गुफ़्तगू ही से ज़रूर पहचान लोगे और अल्लाह तो तुम्हारे आमाल से वाकि़फ है।
  31. व ल-नब्लुवन्नकुम् हत्ता नअ्-लमल्- मुजाहिदी- न मिन्कुम् वस्साबिरी-न व नब्लु-व अख़्बा-रकुम
    और हम तुम लोगों को ज़रूर आज़माएँगे ताकि तुममें जो लोग जेहाद करने वाले और (तकलीफ़) झेलने वाले हैं उनको देख लें और तुम्हारे हालात जाँच लें।
  32. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू व सद्दू अ़न् सबीलिल्लाहि व शाक़्क़ुर्रसू–ल मिम्बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल्-हुदा लंय्यजुर्रुल्ला-ह शैअन्, व स-युह्बितु अअ्मालहुम
    बेशक जिन लोगों पर (दीन की) सीधी राह साफ़ ज़ाहिर हो गयी उसके बाद इन्कार कर बैठे और (लोगों को) अल्लाह की राह से रोका और पैग़म्बर की मुख़ालेफ़त की तो अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे और वह उनका सब किया कराया अक़ारत कर देगा।
  33. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अती अुल्ला-ह व अतीअुर्रसू-ल व ला तुब्तिलू अअ् मालकुम
    ऐ ईमानदारों! अल्लाह का हुक्म मानों और रसूल की फरमाँबरदारी करो और अपने आमाल को ज़ाया न करो।
  34. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू व सद्दू अ़न् सबीलिल्लाहि सुम्- म मातू व हुम् कुफ़्फ़ारून् फ़-लंयू- यग़्फिरल्लाहु लहुम
    बेशक जो लोग काफि़र हो गए और लोगों को अल्लाहकी राह से रोका, फिर काफ़िर ही मर गए तो अल्लाह उनको हरगिज़ नहीं बख़शेगा तो तुम हिम्मत न हारो।
  35. फ़ला तहिनू व तद्अू इलस्सल्मि व अन्तुमुल्-अअ्लौ-न वल्लाहु म अ़कुम् व लंय्यति रकुम् अअ्मालकुम
    और (दुशमनों को) सुलह की दावत न दो तुम ग़ालिब हो ही और अल्लाह तो तुम्हारे साथ है और हरगिज़ तुम्हारे आमाल (के सवाब को कम न करेगा)।
  36. इन्नमल्-हयातुद्-दुन्या लअिबुंव्-व लह्वुन्, व इन् तुअ्मिनू व तत्तक़ू युअ्तिक़ुम् उजू-रकुम् व ला यस्अल्कुम् अम्वालकुम
    दुनियावी जि़न्दगी तो बस खेल तमाशा है और अगर तुम (अल्लाह पर) ईमान रखोगे और परहेज़गारी करोगे तो वह तुमको तुम्हारे अज्र इनायत फ़रमाएगा और तुमसे तुम्हारे माल नहीं तलब करेगा।
  37. इंय्यस्अल्कुमूहा फ़-युह्फिकुम् तब्ख़लू व युख़्रिज् अज़्गा-नकुम
    और अगर वह तुमसे माल तलब करे और तुमसे चिमट कर माँगे भी तो तुम (ज़रूर) बुख़्ल करने लगो।
  38. हा-अन्तुम् हा-उला-इ तुद्औ़-न लितुन्फ़िक़ू फ़ी सबीलिल्लाहि फ़मिन्कुम् मंय्यब्ख़लु व मंय्यब्ख़ल् फ़-इन्नमा यब्ख़लु अ़न्-नफ़्सिही, वल्लाहुल-ग़निय्यु व अन्तुमुल्-फ़ु-क़रा-उ व इन् त-तवल्लौ यस्तब्दिल् क़ौमन् ग़ैरक़ुम् सुम्-म ला यकूनू अम्सालकुम
    और अल्लाह तो तुम्हारे कीने को ज़रूर ज़ाहिर करके रहेगा देखो तुम लोग वही तो हो कि अल्लाह की राह में ख़र्च के लिए बुलाए जाते हो तो बाज़ तुम में ऐसे भी हैं जो बुख़ल करते हैं और (याद रहे कि) जो बुख़्ल करता है तो ख़ुद अपने ही से बुख़्ल करता है और अल्लाह तो बेनियाज़ है और तुम (उसके) मोहताज हो और अगर तुम (अल्लाह के हुक्म से) मुँह फेरोगे तो अल्लाह (तुम्हारे सिवा) दूसरों को बदल देगा और वह तुम्हारे ऐसे (बख़ील) न होंगे।

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