45 सूरह-जासिया हिंदी में

45 सुरह जासिया | Surah Al-Jathiyah

(मक्की) इस सूर में 37 आयतें और 4 रुकू हैं। यह सूरह पारा 25 में है।

सूरह अल-जासिया नाम आयत 28 के वाक्यांश “उस समय तुम हर गिरोह को घुटनों के बल गिरा (जासिया) देखोगे” से लिया गया है।

सूरह-जासिया हिंदी में | Surah Al-Jathiyah in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. हा-मीम्
    हा मीम।
  2. तन्ज़ीलुल्-किताबि मिनल्लाहिल् अ़ज़ीज़िल्-हकीम
    ये किताब (कुरान) अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल हुई है जो ग़ालिब और दाना है।
  3. इन्-न फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि लआयातिल्-लिल्- मुअ्मिनीन
    बेशक आसमान और ज़मीन में ईमान वालों के लिए (क़ुदरते अल्लाह की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  4. व फ़ी ख़ल्किकुम् व मा यबुस्सु मिन् दाब्बतिन् आयातुल्-लिकौमिंय्-यूक़िनून
    और तुम्हारी पैदाइश में (भी) और जिन जानवरों को वह (ज़मीन पर) फैलाता रहता है (उनमें भी) यक़ीन करने वालों के वास्ते बहुत सी निशानियाँ हैं।
  5. वख़्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि व मा अन्ज़लल्लाहु मिनस्समा-इ मिर्रिज़्किन् फ़-अह्या बिहिल् – अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा व तस्रीफ़िर्-रियाहि आयातुल् लिक़ौमिंय् -यअ्क़िलून
    और रात दिन के आने जाने में और अल्लाह ने आसमान से जो (ज़रिया) रिज़क (पानी) नाजि़ल फ़रमाया फिर उससे ज़मीन को उसके मर जाने के बाद जि़न्दा किया (उसमें) और हवाओं फेर बदल में अक़्लमन्द लोगों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं।
  6. तिल्-क आयातुल्लाहि नत्लूहा अ़लै-क बिल्हक़्क़ि फ़बि- अय्यि हदीसिम्- बअ्दल्लाहि व आयातिही युअ्मनून
    ये अल्लाह की आयतें हैं जिनको हम ठीक (ठीक) तुम्हारे सामने पढ़ते हैं तो अल्लाह और उसकी आयतों के बाद कौन सी बात होगी।
  7. वैलुल्- लिकुल्लि अफ़्फ़ाकिन् असीम
    जिस पर ये लोग ईमान लाएंगे हर झूठे गुनाहगार पर अफ़सोस है।
  8. यस्-मअु आयातिल्लाहि तुल्ला अ़लैहि सुम्म युसिर्रू मुस्तक्बिरन् क- अल्लम् यस्मअ्हा फ़-बश्शिर्हु बि- अ़ज़ाबिन् अलीम
    कि अल्लाह की आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं और वह सुनता भी है फिर ग़़ुरूर से (कुफ़्र पर) अड़ा रहता है गोया उसने उन आयतों को सुना ही नहीं तो (ऐ रसूल) तुम उसे दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो।
  9. व इज़ा अ़लि-म मिन् आयातिना शै-अ-नित्त-ख़-ज़हा हुजुवन्, उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुम्-मुहीन
    और जब हमारी आयतों में से किसी आयत पर वाकि़फ़ हो जाता है तो उसकी हँसी उड़ाता है ऐसे ही लोगों के वास्ते ज़लील करने वाला अज़ाब है।
  10. मिंव्वरा-इहिम् जहन्नमु व ला युग़्नी अ़न्हुम् मा क-सबू शैअंव्व ला मत्त-ख़ज़ू मिन् दूनिल्लाहि औलिया-अ व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
    जहन्नुम तो उनके पीछे ही (पीछे) है और जो कुछ वह आमाल करते रहे न तो वही उनके कुछ काम आएँगे और न जिनको उन्होंने अल्लाह को छोड़कर (अपने) सरपरस्त बनाए थे और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है।
  11. हाज़ा हुदन् वल्लज़ी-न क-फ़रू बिआयाति रब्बिहिम् लहुम अ़ज़ाबुम् मिर्रिज्ज़िन् अलीम
    ये (कुरान) है और जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की आयतों से इन्कार किया उनके लिए सख़्त किस्म का दर्दनाक अज़ाब होगा।
  12. अल्लाहुल्लज़ी सख़्ख़-र लकुमुल्-बह्-र लितज्-रि यल्-फ़ुल्कु फ़ीहि बिअम्हिी व लि- तब्तग़ू मिन् फ़ज़्लिही व लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
    अल्लाह ही तो है जिसने दरिया को तुम्हारे क़ाबू में कर दिया ताकि उसके हुक्म से उसमें कश्तियाँ चलें और ताकि उसके फज़ल (व करम) से (मआश की) तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो।
  13. व सख़्ख़-र लकुम् मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि जमीअ़म्- मिन्हु, इन्-न फ़ी ज़ालि-क ल-आयातिल् लिक़ौमिंय्य-तफ़क्करून
    और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सबको अपने (हुक्म) से तुम्हारे काम में लगा दिया है जो लोग ग़ौर करते हैं उनके लिए इसमें (क़़ुदरते अल्लाह की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  14. क़ुल् लिल्लज़ी-न आमनू यग़्फ़िरू लिल्लज़ी-न ला यर्जू-न अय्यामल्लाहि लि-यज्ज़ि -य क़ौमम्-बिमा कानू यक्सिबून
    (ऐ रसूल) मोमिनों से कह दो कि जो लोग अल्लाह के दिनों की (जो जज़ा के लिए मुक़र्रर हैं) तवक़्क़ो नहीं रखते उनसे दरगुज़र करें ताकि वह लोगों के आमाल का बदला दे।
  15. मन् अ़मि-ल सालिहन् फ़लिनफ़्सिही व मन् असा-अ फ़ अ़लैहा सुम्म इला रब्बिकुम् तुर्-जअून
    जो शख़्स नेक काम करता है तो ख़ास अपने लिए और बुरा काम करेगा तो उस का बवाल उसी पर होगा फिर (आखि़र) तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाए जाओगे।
  16. व ल-क़द् आतैना बनी इस्राईलल्-किता-ब वल्- हुक्म बन्नुबुव्व-त व रज़क्नाहुम् मिनत्तय्यिबाति व फज़्ज़ल्नाहुम् अ़लल् आ़लमीन
    और हमने बनी इसराईल को किताब (तौरेत) और हुकूमत और नबूवत अता की और उन्हें उम्दा उम्दा चीज़ें खाने को दीं और उनको सारे जहाँन पर फ़ज़ीलत दी।
  17. व आतैनाहुम् बय्यिनातिम् मिनल्-अम्रि-फ़-मख़्त-लफ़ू इल्ला मिम्बअ्दि मा जा- अहुमुल् अिल्मु -बग्यम् बइनहुम्- बैनहुम्, इन्-न रब्ब-क यक़्ज़ी बैनहुम् यौमल् क़ियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफ़ून
    और उनको दीन की खुली हुई दलीलें इनायत की तो उन लोगों ने इल्म आ चुकने के बाद बस आपस की जि़द में एक दूसरे से एख़्तेलाफ़ किया कि ये लोग जिन बातों से एख़्तेलाफ़ कर रहें हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार उनमें फैसला कर देगा।
  18. सुम्-म जअ़ल्ना-क अ़ला शरी-अ़तिम्-मिनल् – अम्रि फत्तबिअ्हा व ला तत्तबिअ् अह्वा-अल्लज़ी-न ला यअ्लमून
    फिर (ऐ रसूल) हमने तुमको दीन के खुले रास्ते पर क़ायम किया है तो इसी (रास्ते) पर चले जाओ और नादानों की ख़्वाहिशों की पैरवी न करो।
  19. इन्नहुम् लंय्युग़नू अ़न्-क मिनल्लाहि शैअ़न्, व इन्नज़्ज़ालिमी-न बअ्ज़ुहुम् औलिया-उ बअ्ज़िन् वल्लाहु वलिय्युल्- मुत्तक़ीन
    ये लोग अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ भी काम न आएँगे और ज़ालिम लोग एक दूसरे के मददगार हैं और अल्लाह तो परहेज़गारों का मददगार है।
  20. हाज़ा बसा-इरु लिन्नासि व हुदंव्-व रहमतुल्- लिकौमिंय्-यूक़िनून
    ये (कुरान) लोगों (की) हिदायत के लिए दलीलो का मजमूआ है और बातें करने वाले लोगों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत व रहमत है।
  21. अम् हसिबल्लज़ीनज्त-रहुस्- सय्यिआति अन् नज्अ़-लहुम् कल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति, सवा-अम्- मह्याहुम् व ममातुहुम्, सा-अ मा यह्क़ुमून
    जो लोग बुरा काम किया करते हैं क्या वह ये समझते हैं कि हम उनको उन लोगों के बराबर कर देंगे जो ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम भी करते रहे और उन सब का जीना मरना एक सा होगा ये लोग (क्या) बुरे हुक्म लगाते हैं।
  22. व ख़-लक़ल्लाहुस्-समावाति वल्- अर्ज़ बिल्हक़्क़ि व लितुज्ज़ा कुल्लु नफ़्सिम्-बिमा क सबत् व हुम् ला – युज़्लमून
    और अल्लाह ने सारे आसमान व ज़मीन को हिकमत व मसलेहत से पैदा किया और ताकि हर शख़्स को उसके किये का बदला दिया जाए और उन पर (किसी तरह का) ज़़ुल्म नहीं किया जाएगा।
  23. अ-फ़-रऐ-त मनित्त-ख़-ज़ इला-हहू हवाहु व अज़ल्लहुल्लाहु अ़ला अिल्मिंव्- व ख़-त-म अ़ला सम्अिही व क़ल्बिही व ज-अ़-ल अ़ला ब-सरिही ग़िशा-वतन्, फ़-मंय्-यह्दीहि मिम्बअ्दिल्लाहि, अ-फ़ला तज़क्करून
    भला तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने अपनी नफसियानी ख़वाहिशों को माबूद बना रखा है और (उसकी हालत) समझ बूझ कर अल्लाह ने उसे गुमराही में छोड़ दिया है और उसके कान और दिल पर अलामत मुक़र्रर कर दी है (कि ये ईमान न लाएगा) और उसकी आँख पर पर्दा डाल दिया है फिर अल्लाह के बाद उसकी हिदायत कौन कर सकता है तो क्या तुम लोग (इतना भी) ग़ौर नहीं करते।
  24. व क़ालू मा हि-य इल्ला हयातुनद्-दुन्या नमूतु व नह्या व मा युह्लिकुना इल्लद्-दह्-रु व मा लहुम् बिज़ालि-क मिन् अिल्मिन् इन् हुम् इल्ला यज़ुन्नून
    और वह लोग कहते हैं कि हमारी जि़न्दगी तो बस दुनिया ही की है (यहीं) मरते हैं और (यहीं) जीते हैं और हमको बस ज़माना ही (जिलाता) मारता है और उनको इसकी कुछ ख़बर तो है नहीं ये लोग तो बस अटकल की बातें करते हैं।
  25. व इज़ा तुल्ला अ़लैहिम् आयातुना बय्यिनातिम् मा का-न हुज्ज-तहुम् इल्ला अन् क़ालुअ्तू बिआबा – इना इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    और जब उनके सामने हमारी खुली खुली आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनकी कट हुज्जती बस यही होती है कि वह कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो हमारे बाप दादाओं को (जिला कर) ले तो आओ।
  26. क़ुलिल्लाहु युह्यीकुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम्-म यज्मअुकुम् इला यौमिल् क़ियामति ला रै -ब फ़ीहि व लाकिन् न अक्सरन्-नासि ला यअ्लमून
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अल्लाह ही तुमको जि़न्दा (पैदा) करता है और वही तुमको मारता है फिर वही तुमको क़यामत के दिन जिस (के होने) में किसी तरह का शक नहीं जमा करेगा मगर अक्सर लोग नहीं जानते।
  27. व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ी, व यौ-म तक़ूमुस्सा-अ़तु यौमइज़िंय्-यख़्-सरुल्-मुब्तिलून (27)
    और सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत ख़ास अल्लाह की है और जिस रोज़ क़यामत बरपा होगी उस रोज़ एहले बातिल बड़े घाटे में रहेंगे।
  28. व तरा कुल्-ल उम्म-तिन् जासि यतन्, कुल्लु उम्म-तिन् तुद्आ़ इला किताबिहा, अल्यौ म तुज्ज़ौ न मा कुन्तुम् तअ्मलून
    और (ऐ रसूल) तुम हर उम्मत को देखोगे कि (फैसले की मुन्तजि़र अदब से) घूटनों के बल बैठी होगी और हर उम्मत अपने नामाए आमाल की तरफ़ बुलाइ जाएगी जो कुछ तुम लोग करते थे आज तुमको उसका बदला दिया जाएगा।
  29. हाज़ा किताबुना यन्तिक़ु अ़लैकुम् बिल्हक़्क़ि, इन्ना कुन्ना नस्तन्सिख़ु मा कुन्तुम् तअ्मलून
    ये हमारी किताब (जिसमें आमाल लिखे हैं) तुम्हारे मुक़ाबले में ठीक ठीक बोल रही है जो कुछ भी तुम करते थे हम लिखवाते जाते थे।
  30. फ़-अम्मल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्- सालिहाति फ़-युद्ख़िलुहुम् रब्बुहुम् फ़ी रह्मतिही, ज़ालि-क हुवल् फ़ौज़ुल् मुबीन
    ग़रज़ जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किये तो उनको उनका परवरदिगार अपनी रहमत (से बेहिश्त) में दाखि़ल करेगा यही तो सरीही कामयाबी है।
  31. व अम्मल्लज़ी-न क-फ़रू, अ-फ़ लम् तकुन् आयाती तुल्ला अ़लैकुम् फ़स्तक्बर्तुम् व कुन्तुम् क़ौमम् – मुज्रिमीन
    और जिन्होंने कुफ्र एख़्तेयार किया (उनसे कहा जाएगा) तो क्या तुम्हारे सामने हमारी आयतें नहीं पढ़ी जाती थीं (ज़रूर) तो तुमने तकब्बुर किया और तुम लोग तो गुनेहगार हो गए।
  32. व इज़ा क़ी-ल इन्- न वअ्दल्लाहि हक़्क़ुंव् वस्सा-अ़तु ला रै-ब फ़ीहा क़ुल्तुम् मा नद्-री मस्सा-अ़तु इन्- नज़ुन्नु इल्ला ज़न्नंव्-व मा नह्नु बिमुस्तैक़िनीन
    और जब (तुम से) कहा जाता था कि अल्लाह का वायदा सच्चा है और क़यामत (के आने) में कुछ शुबहा नहीं तो तुम कहते थे कि हम नहीं जानते कि क़यामत क्या चीज़ है हम तो बस (उसे) एक ख़्याली बात समझते हैं और हम तो (उसका) यक़ीन नहीं रखते।
  33. व बदा लहुम् सय्यिआतु मा अ़मिलू व हा-क़ बिहिम्-मा कानू बिही यस्तह्-ज़िऊन
    और उनके करतूतों की बुराईयाँ उस पर ज़ाहिर हो जाएँगी और जिस (अज़ाब) की ये हँसी उड़ाया करते थे उन्हें (हर तरफ़ से) घेर लेगा।
  34. व क़ीलल्-यौ-म नन्साकुम् कमा नसीतुम् लिक़ा – अ यौमिकुम् हाज़ा व मअ्वाकुमुन्नारु व मा लकुम् मिन्- नासिरीन
    और (उनसे) कहा जाएगा कि जिस तरह तुमने उस दिन के आने को भुला दिया था उसी तरह आज हम तुमको अपनी रहमत से अमदन भुला देंगे और तुम्हारा ठिकाना दोज़ख़ है और कोई तुम्हारा मददगार नहीं।
  35. ज़ालिकुम् बि-अन्न-कुमुत्तख़ज़्तुम् आयातिल्लाहि हुज़ुवंव् व ग़र्रत्कुमुल्- हयातुद्-दुन्या फ़ल्यौ-म ला युख़्रजू-न मिन्हा व ला हुम् युस्तअ्-तबून
    ये इस सबब से कि तुम लोगों ने अल्लाह की आयतों को हँसी ठट्ठा बना रखा था और दुनयावी जि़न्दगी ने तुमको धोखे में डाल दिया था ग़रज़ ये लोग न तो आज दुनिया से निकाले जाएँगे और न उनको इसका मौका दिया जाएगा कि (तौबा करके अल्लाह को) राज़ी कर ले।
  36. फ़लिल्लाहिल्- हम्दु रब्बिस्समावाति व रब्बिल् अर्ज़ी रब्बिल् आ़लमीन
    पस सब तारीफ़ अल्लाह ही के लिए सज़ावार है जो सारे आसमान का मालिक और ज़मीन का मालिक (ग़रज़) सारे जहाँन का मालिक है।
  37. व लहुल्- किब्रिया- उ फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि, व हुवल् अ़ज़ीज़ुल हकीम
    और सारे आसमान व ज़मीन में उसके लिए बड़ाई है और वही (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है। (पारा 25 समाप्त)

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