06 सूरह अल-अनआम हिंदी में पेज 1

सूरह अल-मायदा में 165 आयतें हैं। यह सूरह पारा 7, पारा 8 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई। 

आयत 139 से 141 तक और 146 से 147 तक की आयतों में कुछ मवेशियों के हराम होने और कुछ के हलाल होने के सम्बन्ध में अरब वालों के अंध विश्वासों का खंडन किया गया है। इसलिए इसका नाम अल-अन्आम (मवेशी) रखा गया है।

सूरह अल-अनआम हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ व ज-अलज़्-ज़ुलुमाति वन्नू-र, सुम्मल्लज़ी-न क-फरू बिरब्बिहिम् यअ्दिलून
    सब तारीफ अल्लाह ही को (सज़ावार) है जिसने वहुतेरे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उसमें मुख़्तलिफ कि़स्मों की तारीकी रोशनी बनाई फिर (बावजूद उसके) कुफ्फार (औरों को) अपने परवरदिगार के बराबर करते हैं।
  2. हुवल्लज़ी ख़-ल-क़कुम् मिन् तीनिन सुम्-म क़ज़ा अ- जलन, व अ-जलुम् मुसम्मन् अिन्दहू सुम्-म अन्तुम् तम्तरून
    वह तो वही अल्लाह है जिसने तुमको मिट्टी से पैदा किया फिर (फिर तुम्हारे मरने का) एक वक़्त मुक़र्रर कर दिया और (अगरचे तुमको मालूम नहीं मगर) उसके नज़दीक (क़यामत) का वक़्त मुक़र्रर है।
  3. व हुवल्लाहु फिस्समावाति व फिल् अर्ज़ि, यअ्लमु सिर्रकुम् व जहरकुम् व यअ्लमु मा तक्सिबून
    फिर (यही) तुम शक करते हो और वही तो आसमानों में (भी) और ज़मीन में (भी) अल्लाह है वही तुम्हारे ज़ाहिर व बातिन से (भी) ख़बरदार है और वही जो कुछ भी तुम करते हो जानता है।
  4. व मा तअ्तीहिम् मिन् आयतिम् मिन् आयाति रब्बिहिम् इल्ला कानू अन्हा मुअ्-रिज़ीन
    और उन (लोगों का) अजब हाल है कि उनके पास अल्लाह की आयत में से जब कोई आयत आती तो बस ये लोग ज़रुर उससे मुँह फेर लेते थे।
  5. फ़-क़द् कज़्ज़बू बिल्हक्क़ि लम्मा जा-अहुम्, फ़सौ-फ़ यअ्तीहिम् अम्बा-उ मा कानू बिही यस्तह़्ज़िऊन
    चुनान्चे जब उनके पास (क़ुरान बरहक़) आया तो उसको भी झुठलाया तो ये लोग जिसके साथ मसख़रापन कर रहे है उनकी हक़ीक़त उन्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगी।
  6. अलम् यरौ कम् अह़्लक्ना मिन् क़ब्लिहिम् मिन् क़रनिम् मक्कन्नाहुम् फिल्अर्ज़ि मा लम् नुमक्किल्लकुम् व अर्सल्नस्समा-अ अलैहिम् मिदरारंव् व जअ़ल्नल अन्हा-र तज्री मिन् तह़्तिहिम् फ़-अह़्लक्नाहुम् बिज़ुनूबिहिम् व अन्शअ्ना मिम् – बअ्दिहिम् कर्नन् आख़रीन
    क्या उन्हें सूझता नहीं कि हमने उनसे पहले कितने गिरोह (के गिरोह) हलाक कर डाले जिनको हमने रुए ज़मीन मे वह (कू़वत) क़ुदरत अता की थी जो अभी तक तुमको नहीं दी और हमने आसमान तो उन पर मूसलाधार पानी बरसता छोड़ दिया था और उनके (मकानात के) नीचे बहती हुयी नहरें बना दी थी (मगर) फिर भी उनके गुनाहों की वजह से उनको मार डाला और उनके बाद एक दूसरे गिरोह को पैदा कर दिया।
  7. व लौ नज़्ज़ल्ना अलै-क किताबन् फ़ी किरतासिन् फ़-ल-मसूहु बिऐदीहिम् लक़ालल्लज़ी-न क-फरू इन् हाज़ा इल्ला सिह़रूम्-मुबीन
    और (ऐ रसूल!) अगर हम कागज़ पर (लिखी लिखाई) किताब (भी) तुम पर नाजि़ल करते और ये लोग उसे अपने हाथों से छू भी लेते फिर भी कुफ्फार (न मानते और) कहते कि ये तो बस खुला हुआ जादू है।
  8. व क़ालू लौ ला उन्ज़ि-ल अलैहि म-लकुन्, व लौ अन्ज़ल्ना म-लकल् लक़ुज़ियल्-अम्रू सुम्-म ला युन्ज़रून
    और (ये भी) कहते कि उस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाज़िल किया गया (जो साथ साथ रहता) हालाँकि अगर हम फ़रिश्ता भेज देते तो (उनका) काम ही तमाम हो जाता (और) फिर उन्हें मोहलत भी न दी जाती।
  9. व लौ जअल्नाहु म-लकल् ल-जअल्नाहु रजुलंव् व ल- लबस्-ना अलैहिम् मा यल्बिसून
    और अगर हम फ़रिश्ते को नबी बनाते तो (आखि़र) उसको भी मर्द सूरत बनाते और जो सुबहे ये लोग कर रहे हैं वही सुबहे (गोया) हम ख़ुद उन पर (उस वक़्त भी) उठा देते।
  10. वल-क़दिस्तुह़्ज़ि-अ बिरूसुलिम्-मिन् क़ब्लि-क फ़हा -क़ बिल्लज़ी-न सखिरू मिन्हुम् मा कानू बिही यस्तह़्ज़िऊन *
    (ऐ रसूल! तुम दिल तंग न हो) तुम से पहले (भी) पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया गया है फ़िर जो लोग मसख़रापन करते थे उनको उस अज़ाब ने जिसके ये लोग हॅसी उड़ाते थे घेर लिया।
  11. क़ुल् सीरू फ़िल्अर्ज़ि सुम्मन्ज़ुरू कै-फ़ का-न आक़ि-बतुल् मुकज़्ज़िबीन
    (ऐ रसूल! उनसे) कहो कि ज़रुर रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (अम्बिया के) झुठलाने वालो का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ।
  12. क़ुल लिमम् मा फिस्समावाति वल्अर्ज़ि, क़ुल-लिल्लाहि, क-त-ब अला नफ्सिहिर्रह़्म-त, ल-यज्म अ़न्नकुम् इला यौमिल-क़ियामति ला रै-ब फीहि, अल्लज़ी-न ख़सिरू अन्फु-सहुम् फ़हुम् ला युअ्मिनून
    (ऐ रसूल! उनसे) पूछो तो कि (भला) जो कुछ आसमान और ज़मीन में है किसका है (वह जवाब देगें) तुम ख़ुद कह दो कि ख़ास अल्लाह का है उसने अपनी ज़ात पर मेहरबानी लाज़िम कर ली है वह तुम सब के सब को क़यामत के दिन जिसके आने मे कुछ शक नहीं ज़रुर जमा करेगा (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (क़यामत पर) ईमान न लाएंगे।
  13. व लहू मा-स-क-न फ़िल्लैलि वन्नहारि, व हुवस्समीअुल अलीम
    हालाँकि (ये नहीं समझते कि) जो कुछ रात को और दिन को (रुए ज़मीन पर) रहता (सहता) है (सब) ख़ास उसी का है और वही (सब की) सुनता (और सब कुछ) जानता है।
  14. क़ुल अग़ैरल्लाहि अत्तख़िज़ु वलिय्यन् फ़ातिरिस्समावाति वल्अर्ज़ि व हु-व युत्अिमु व ला युत् अमु, क़ुल इन्नी उमिरतु अन् अकू-न अव्व-ल मन् अस्ल -म व ला तकू नन्-न मिनल्मुश्रिकीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि क्या अल्लाह को जो सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला है छोड़ कर दूसरे को (अपना) सरपरस्त बनाओ और वही (सब को) रोज़ी देता है और उसको कोई रोज़ी नहीं देता (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मुझे हुक्म दिया गया है कि सब से पहले इस्लाम लाने वाला मैं हूँ और (ये भी कि ख़बरदार) मुशरेकीन से न होना।
  15. क़ुल इन्नी अख़ाफु इन् असैतु रब्बी अज़ा-ब यौमिन् अज़ीम
    (ऐ रसूल!) तुम कहो कि अगर मैं नाफरमानी करुँ तो बेषक एक बड़े (सख़्त) दिल के अज़ाब से डरता हूँ।
  16. मंय्युस्रफ् अन्हु यौमइज़िन फ़-क़द् रहि-महू, व ज़ालिकल् फौज़ुल्मुबीन
    उस दिन जिस (के सर) से अज़ाब टल गया तो (समझो कि) अल्लाह ने उस पर (बड़ा) रहम किया और यही तो सरीही कामयाबी है।
  17. व इंय्यम् सस्कल्लाहु बिज़ुर्रिन् फला काशि-फ़ लहू इल्ला हु-व, व इंय्यम् सस्-क बिख़ैरिन् फहु-व अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    और अगर अल्लाह तुम को किसी कि़स्म की तकलीफ पहुचाए तो उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं है और अगर तुम्हें कुछ फायदा) पहुॅचाए तो भी (कोई रोक नहीं सकता क्योंकि) वह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  18. व हुवल्क़ाहिरू फ़ौ-क़ अिबादिही, व हुवल् हकीमुल्- ख़बीर
    वही अपने तमाम बन्दों पर ग़ालिब है और वह वाकि़फकार हकीम है।
  19. क़ुल अय्यु शैइन् अक्बरू शहा-दतन्, कुलिल्लाहु, शहीदुम् बैनी व बैनकुम्, व ऊहि-य इलय्-य हाज़ल क़ुरआनु लिउन्ज़ि-रकुम बिही व मम्-ब-ल-ग़, अइन्नकुम् लतश्हदू-न अन्-न मअ़ल्लाहि आलि-हतन् उख़्रा, क़ुल ला अश्हदु क़ुल इन्नमा हु-व इलाहुंव्-वाहिदुंव्-व इन्ननी बरीउम् मिम्मा तुश्रिकून •
    (ऐ रसूल!) तुम पूछो कि गवाही में सबसे बढ़के कौन चीज़ है तुम खुद ही कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान अल्लाह गवाह है और मेरे पास ये क़ुरान वही के तौर पर इसलिए नाजि़ल किया गया ताकि मैं तुम्हें और जिसे (उसकी) ख़बर पहुँचे उसके ज़रिए से डराओ क्या तुम यक़ीनन यह गवाही दे सकते हो कि अल्लाह के साथ और दूसरे माबूद भी हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै तो उसकी गवाही नहीं देता (तुम दिया करो) तुम (उन लोगों से) कहो कि वह तो बस एक ही अल्लाह है और जिन चीज़ों को तुम (अल्लाह का) शरीक बनाते हो।
  20. अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल किता-ब यअ्-रिफूनहू कमा यअ्-रिफू-न अब्-ना अहुम्, अल्लज़ी-न ख़सिरू अन्फु-सहुम् फहुम् ला युअ्मिनून *
    मै तो उनसे बेज़र हूँ जिन लोगों को हमने किताब अता फरमाई है (यहूद व नसारा) वह तो जिस तरह अपने बाल बच्चों को पहचानते है उसी तरह उस नबी (मोहम्मद) को भी पहचानते हैं (मगर) जिन लोगों ने अपना आप नुक़सान किया वह तो (किसी तरह) इमान न लाएगें।
  21. व मन् अज़्लमु मिम् मनिफ़्तरा अलल्लाहि कज़िबन् औ कज़्ज़-ब बिआयातिही, इन्नहू ला युफ्लिहुज़्-ज़ालिमून
    और जो शख्स़ अल्लाह पर झूठ बोहतान बाधें या उसकी आयतों को झुठलाए उससे बढ़के ज़ालिम कौन होगा और ज़ालिमों को हरगिज़ नजात न होगी।
  22. व यौ-म नह़्शुरूहुम् जमीअ़न् सुम्-म नक़ूलु लिल्लज़ी-न अश्रकू ऐ-न शु-रकाउ कुमुल्लज़ी-न कुन्तुम् तज़्अुमून
    और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम उन सबको जमा करेंगे फिर जिन लोगों ने शिर्क किया उनसे पूछेगें कि जिनको तुम (अल्लाह का) शरीक ख़्याल करते थे कहाँ हैं।
  23. सुम्-म लम् तकुन फ़ित्-नतुहुम् इल्ला अन् क़ालू वल्लाहि रब्बिना मा कुन्ना मुश्रिकीन
    फिर उनकी कोई शरारत (बाक़ी) न रहेगी बल्कि वह तो ये कहेगें क़सम है उस अल्लाह की जो हमारा पालने वाला है हम किसी को उसका शरीक नहीं बनाते थे।
  24. उन्ज़ुर् कै-फ़ क-ज़बू अला अन्फुसिहिम् व ज़ल्-ल अन्हुम् मा कानू यफ्तरून
    (ऐ रसूल! भला) देखो तो ये लोग अपने ही ऊपर आप किस तरह झूठ बोलने लगे और ये लोग (दुनिया में) जो कुछ इफ़तेरा परदाज़ी (झूठी बातें) करते थे।
  25. व मिन्हुम् मंय्यस्तमिअु इलै-क, व जअ़ल्ना अला क़ुलूबिहिम् अकिन्नतन् अंय्यफ्क़हूहु व फ़ी आज़ानिहिम् वक़रन्, व इंय्यरौ कुल-ल आयतिल ला युअ्मिनू बिहा, हत्ता इज़ा जाऊ-क युजादिलून क यक़ूलुल्लज़ी-न क-फरू इन् हाज़ा इल्ला असातीरूल अव्वलीन
    वह सब ग़ायब हो गयी और बाज़ उनमें के ऐसे भी हैं जो तुम्हारी (बातों की) तरफ कान लगाए रहते हैं और (उनकी हठ धर्मी इस हद को पहुँची है कि गोया हमने ख़ुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं और उनके कानों में बहरापन पैदा कर दिया है कि उसे समझ न सकें और अगर वह सारी (ख़़ुदाई के) मौजिज़े भी देखे लें तब भी ईमान न लाएगें यहाँ तक (हठ धर्मी पहुची) कि जब तुम्हारे पास तुम से उलझे हुए आ निकलते हैं तो कुफ़्फ़ार (क़ुरान लेकर) कहा बैठे है (कि भला इसमें रखा ही क्या है) ये तो अगलों की कहानियों के सिवा कुछ भी नहीं।

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